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पर नया साल तो हर साल आता हैं, फिर यह क्या नया और पुराना छोड़ जाता हैं। नया साल तो हर साल आता हैं, अमीरों को अमीरी की ओर ले जाता हैं, और गरीबों को उनकी अमीरी में वैसे ही कही नीचे दबा जाता हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, नया साल तो प्रतीक हैं, नए संकल्पों, उम्मीदों और नए परिवर्तनों का।
पर नया साल तो हर साल आता हैं, फिर यह क्या नया और पुराना छोड़ जाता हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, अमीरों को अमीरी की ओर ले जाता हैं, और गरीबों को उनकी अमीरी में वैसे ही कही नीचे दबा जाता हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, फिर भी, बेरोज़गार, उसी तरह यहाँ-वहाँ धक्के खाता हैं और रोजगार प्राप्त, अपनी नौकरी बचाने लिए गधा-सा बना जाता हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, फिर भी, बिन घर बच्चे वैसे ही मरते हैं, अपने बचपन और शिक्षा के परिचय तक, को नहीं समझते हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं फिर भी, कई अपने हक़ के लिए कचहरी के चक्कर लगाते हैं तो कुछ, अपराध कर, धन के बल पर, सच को झूठ बनाते हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, तब भी तो, यौन हिंसा के नाम पर, हर लिंग, वैसे ही डरता हैं।
नया साल तो हर साल आता हैं, फिर भी, माँ घर पर काम करती हैं, और “तुम करती क्या हो” के ताने सुनती हैं तो पिता, अपने बच्चों की हर ज़रूरतों को, पूरा करने की ख़ातिर, अपनी इच्छाओं को, अदृश्य रखते हैं।
तो नया साल, नया क्या लाता हैं, जो पुराना हैं वही तो नए में शामिल हो जाता हैं।
मूल चित्र: Sylvester DSouza via Unsplash
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