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कई ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर बिना सोचे-समझे सिज़ेरियन डिलीवरी करवा देते हैं ताकि पैसे कमाए जा सकें, जिसकी जरुरत नहीं होती है।
नेश्नल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट ने अनेक बातों को सामने लाकर समाज के आंखों में बंधी पट्टी को खोलने का काम किया है। एनएफएचएस की रिपोर्ट में जहां एक ओर महिलाओं की स्थिति को सबके सामने रखने का काम किया है, वहीं बच्चों की स्थिति को भी लोगों के सामने रखा है।
2019-20 की इस रिपोर्ट ने महिलाओं की डिलीवरी अर्थात् बच्चे पैदा करने के आंकड़ों को भी सामने रखा है, जिसके आंकड़े महिलाओं के स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलते हैं। हाल में जारी रिपोर्ट में यह सामने आया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने ऑपरेशन से बच्चों को जन्म दिया है, जिसे सी-सेक्शन बर्थ कहा जाता है। साल 1985 में वलर्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार 10-15 प्रतिशत सी-सेक्शन के जरिये बर्थ हो सकते हैं मगर इससे ज्यादा के आंकड़ों में सी-सेक्शन डिलीवरी का होना महिलाओं की सेहत पर बुरा प्रभाव डालता है क्योंकि इससे एक महिला के शरीर में कई तरह के क्पलिकेशनस आ जाते हैं।
हालांकि असलियत यह है कि साल 2015-16 और 2019-20 के बीच भारत के ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में सिज़ेरियन सेक्शन डिवीलरी में वृद्धि दर्ज की है। तेलंगाना राज्य में 58 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण जन्मों के साथ सी-सेक्शन डिलीवरी में सूची में सबसे ऊपर है। राहत की खबर केवल मिजोरम से आई है, जहां सी-सेक्शन डिलीवरी में महिलाओं की स्थिति सामान्य है।
आंकड़ों को आप इस ग्राफ से समझ सकते हैं- (नोट- Period 1 & Period 2 denotes here NFHS Survey 5 and 4)
एनएफएचएस-5 सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी सुविधा-आधारित डेटा प्रदान करता है। आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण पश्चिम बंगाल में निजी सुविधाओं में 84.4 प्रतिशत जन्म सी-सेक्शन डिलीवरी है, जो देश में सबसे अधिक है। तेलंगाना 80.6 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर है।
सर्वे एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के बीच केरल के ग्रामीण इलाकों में निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में सी-सेक्शन डिलीवरी का प्रतिशत 38.1 से बढ़कर 40.4 प्रतिशत हो गया है। साथ ही इसी अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सिजेरियन प्रसव 29.8 प्रतिशत से बढ़कर 36.1 प्रतिशत हो गया है।
(सोर्स- एऩएफएचएस-5 की सर्वे रिपोर्ट)
सी-सेक्शन डिलीवरी अक्सर इसलिए की जाती है क्योंकि नोर्मल डिलीवरी से बच्चे या मां को खतरा होता है। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ ग्रामीण भारत में सी-सेक्शन डिलीवरी में वृद्धि के कई कारणों का हवाला देते हैं। इसमें शादी की बढ़ती उम्र, कंट्रासेप्शन का इस्तेमाल ना करना और देर से गर्भाधान भी शामिल हैं मगर अब अनेक जगहों पर डॉक्टर बिना सोचे-समझे सिजिरेयन डिलीवरी करवा देते हैं ताकि पैसे कमाए जा सकें, जिसकी जरुरत नहीं होती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा अप्रैल वर्ष 2005 में शुरू की गई जननी सुरक्षा योजना के तहत यदि कोई गर्भवती महिला सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में बच्चे को जन्म दोती है, तब उसे नकद सहायता प्रदान की जाती है। एक ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के लिए 1,400 रुपये और 700 रुपये क्रमशः कम और उच्च प्रदर्शन वाले राज्यों में लाभार्थियों को दिए जाते हैं। एक शहरी स्वास्थ्य सुविधा में यह राशि 1,000 रुपये और 600 रुपये तक होती है।
यह आंकड़े चिंताजनक हैं क्योंकि इतनी अधिक संख्या में सी-सेक्शन डिलीवरी के जरिए बच्चों का होना महिलाओं के स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डाल सकता है। क्या यह बहुत बड़ी चिंता का विषय नहीं होना चाहिए कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के ग्रामीण इलाकों में निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में 84 प्रतिशत और 80 प्रतिशत से अधिक सिजेरियन डिलीवरी क्यों होते हैं?
मूल चित्र: hadynyah from Getty Images Signature via Canva Pro
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