कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

ये तुम्हारी इस गृहणी बीवी की बचत है जनाब…

"वाह, क्या बात है मेरे जन्मदिन पर मेरे पैसों से खरीदकर मुझे ही उपहार दिया जाएगा। और एहसान भी कि बचत पर मेरा अधिकार है", रमन ने कहा। 

“वाह, क्या बात है मेरे जन्मदिन पर मेरे पैसों से खरीदकर मुझे ही उपहार दिया जाएगा। और एहसान भी कि बचत पर मेरा अधिकार है”, रमन ने कहा। 

“कब से क्या ढूंढ रही हो आलमीरा में? एक घंटे से देख रहा हूं”, रमन ने अपनी पत्नी रमा से कहा।

“कुछ नहीं यहाँ पर मैंने पैसे रखे थे, वही ढूंढ रही थी”, रमा ने कहा।

“अच्छा वो तो मैंने ले लिए”, रमन ने कहा।

“क्या? तुमने मेरे पैसे मुझसे बिना पूछे क्यों लिए? और मुझे बताया भी नहीं? चलो लाओ दो मेरे पैसे मुझे, मुझे जरूरी काम था”, रमा ने कहा।

“मंथ एंड आ गया है। तुम्हें खर्चे के लिए अगले महीने की दो तारीख को मिल जाएंगे पैसे”, रमन ने कहा।

“ये क्या बात हुई रमन? एक तो तुमने बिना मुझे बताये पैसे ले लिए और अब देने से भी मना कर रहे हो?” रमा ने कहा।

“वो पैसे मेरे हैं तो मैं तुमसे क्यों पूछूं लेने के लिए?और तुम्हें तो खुद ही बचे हुए पैसे मुझे ईमानदारी से वापिस कर देने चाहिए। तुम कहीं से कमा कर नहीं लायी थीं, ना तुम्हारे मायके वालों ने दिये हैं  कि वो पैसे तुम्हारे हुए। समझीं?” रमन ने कहा।

“रमन अब इसमें मेरे मायके वाले कहां से आ गए बीच में?और रही बात उन पैसों की, तो मैंने बचाये थे तब पैसे बचे हुए थे, वरना तुम्हारी तरह मैं भी फिजूलखर्ची करती तो कब के खत्म हो गए होते। तो बचत मेरी, तो अधिकार भी मेरा ही हुआ। समझे? वैसे उन पैसों से मैं तुम्हारे लिए ही गिफ्ट लाने वाली थी ताकि कल तुम्हें सरप्राइज गिफ्ट दे सकूँ। तो अब ले लेना जो  तुम्हारा मन करे”, रमा ने कहा।

“वाह, क्या बात है मेरे जन्मदिन पर मेरे पैसों से खरीदकर मुझे ही उपहार दिया जाएगा। और एहसान भी कि बचत पर मेरा अधिकार है”, रमन ने कहा।

“देखो रमन, मैं तुम्हारी पत्नी हूं तो ये मेरा अधिकार है। तुम ना मानो तुम्हारी मर्जी। और दूसरी बात कि ये बचाये हुए पैसे ही अचानक किसी इमरजेंसी की स्थिति में काम आते हैं, और बात बात में एहसान जताने की जरूरत नहीं मुझे कि तुम नौकरी करते हो और मैं एक हॉउस वाइफ हूँ, समझे?” रमा ने कहा।

रमन स्वभाव से बहुत ही खर्चीला और पैसों का घमंडी था। वो बात बात में रमा को नौकरी ना करने के ताने मरता। महीने के खर्च के पैसे भी पूरे हिसाब किताब से देता। उसकी अपनी तरफ से पूरी कोशिश होती कि कम से कम पैसों में रमा से घर के सभी काम हो जायें। इसके उलट रमा बचत करने में भरोसा रखती।

अगले दिन रमन को सब ने जन्मदिन की बधाई दी। और शाम को जल्दी घर आने के लिए कहा। लेकिन रमन कहाँ किसी की सुनने वाला था? रमा जानती थी कि रमन नहीं आएगा समय पर।
शाम को रमन के पापा सुरेश जी, माँ कमला जी और दोनो बच्चें उसका इंतजार कर रहे थे। बहुत बार फोन मैसेज किया, लेकिन रात के दस बजे तक रमन का कोई पता नहीं था। तभी अचानक सुरेश जी के सीने में दर्द होने लगा। कोई कुछ समझ पाता तब तक सोफे पर बैठे सुरेश जी जमीन पर गिर गए।

रमा ने एम्बुलेंस बुलाकर सुरेश जी को अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया। इधर सब रमन को फोन लगा कर परेशान थे। रमन रात को 12 बजे घर पहुंचा तो पहुँचते ही माँ को सामने देखकर चिल्लाने लगा और कहा, “क्यों सबके सब पागल हो गए हो? क्यों लगातार फ़ोन किये जा रहे थे? मैं दोस्तो के साथ जन्मदिन की पार्टी कर रहा था। इतना भी अक्ल नहीं कि कम से कम एक दिन तो फ्री छोड़ दें?”

तभी रमन के छोटे बेटे ने कहा, “पापा दादाजी को मम्मी अस्पताल लेकर गयी हैं।”

इतना सुनते रमन का दिमाग सुन्न हो गया। उसने अपनी माँ की तरफ देखा तो वो रो रही थीं। रमन ने उनको ढाढस देते हुए कहा, ”मां, आप चिंता मत कीजिए। पापा को कुछ नहीं होगा। मैं अभी अस्पताल जाता हूं।”

रमन रास्ते भर सोचता रहा कि उसने कितनी बड़ी गलती की फोन ना उठाकर। रमा के रखे पैसे भी ले लिए थे। कहाँ से दिए होंगे पैसे? खुद को कोसता हुआ अस्पताल पहुंचा तो देखा कि रमा बिल काउंटर पर जा रही थी। रमा को देखते रमन ने एक के बाद एक लाखों सवाल कर दिए, ”रमा, पापा कैसे हैं? तुम कैसे लायी उनको? क्या कहा डॉक्टर ने?”

“बस बस रमन कितने सवाल करोगे? बाबुजी को हार्ट अटैक आया है। आई.सी.यू में हैं और ये पैसे जमा करने हैं। कुछ तो मैंने कर दिए”, रमा ने कहा।

“लाओ तो मुझे मैं देखता हूं”, रमन ने कहा कि तभी नर्स ने आवाज लगाई कि डॉक्टर बुला रहे हैं। डॉक्टर ने सुरेश जी के बारे में सारा डिटेल बताया, और कहा ऑपरेशन करना ही पड़ेगा। रमन ने अपने सभी दोस्तों और जानने वालों को फोन किया पर किसी ने भी मदद नहीं की। बहुत मुश्किल से कुछ पैसों का इंतजाम कर पाया था।

रमन को परेशान देखकर रमा ने कहा, “क्या हुआ रमन? सब ठीक है ना?”

“कुछ नहीं। तुम जानकर भी क्या कर लोगी? करना तो मुझे ही होगा, बुरे वक्त में सबके असली चेहरे दिख जाते हैं। जिनको मदद की मैंने, वही अब मदद से इनकार कर रहे हैं। कल पापा को डिस्चार्ज कराने से पहले पूरे पैसे जमा करने होंगे और अब भी कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं। वही सोच रहा हूं कहाँ से और कैसे करूँ?”

“कितने और चाहिए तुम्हें?” रमा ने पुछा।

“करीब डेढ़ लाख”, रमन ने कहा।

“ठीक है मैं आती हूँ थोड़ी देर में, घर से होकर।” थोड़ी देर बाद रमा लौट कर आई तो उसने रमन के हाँथ में डेढ़ लाख रुपये दिए और कहा, “ये लो! पैसे अब पूरे हो गए?” रमन एकटक रमा को देखता ही रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे? कैसे पूछे कि कहाँ से लेकर आयी पैसे?

अगले दिन सुरेश जी को लेकर रमा और रमन घर आ गए। लेकिन रमन का मन अभी तक उसी सवाल के जवाब ढूंढ रहा था कि पैसे आये कहां से? रमन ने रहा नहीं गया तो फिर उसने सवाल पूछा, “रमा अब  बताओ तुम्हारे पास पैसे आये कहाँ से? किसी से उधार मांगा क्या?”

रमा ने हँसते हुए कहा, “नही जनाब वो मेरे बचत किये हुए पैसे थे किसी से मांगे हुए नहीं।”

“लेकिन बचत के पैसे तो मैं ले लेता था, तो तुमने बचाये कैसे? और कहाँ छिपाए थे?” रमन ने पुछा।

“गृहणी बचत के पैसे कहाँ कहाँ रखती हैं और कैसे कैसे बचाती हैं, ये तुम कभी नहीं जान पाओगे। ये तो हम गृहणियों का सीक्रेट होता है। समझे? इसलिए तो तुमसे मैंने कहा था कि बचत मेरी तो अधिकार भी मेरा।”

रमन ने कहा, “हाँ सही कहा तुमने। अगर आज तुमने बचत के पैसे ना रखे होते, तो क्या होता? मैं तो सोचकर भी डर जाता हूं, इसलिए वादा करता हूं कि अब तुम्हारे पैसे कभी तुमसे बिना पूछे नहीं  लूंगा और लेकर उतने ही बाद में वापिस भी कर दूंगा।”

सही कहा कि जिसकी बचत, अधिकार भी उसी का होना चाहिए।

मूल चित्र :

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

79 Posts | 1,624,564 Views
All Categories