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सीमा पहावा ने जिस अंदाज में रामप्रसाद की तेरहवीं की कहानी कही है, उसका नरेटिव दुनियादारी, रिश्ते और रिश्तों के पीछे का मतलब समझने का है।
दूरदर्शन के शुरुआती धारावाहिक हम लोग कई थियेटर नाटक और फेमली ड्रामा फिल्मों में काम करने के बाद सीमा पहावा ने अपना डारेक्टर डेब्यू रामप्रसाद की तेरहवीं से किया है, जो एक फैमली सटायर है।
सीमा पहाव ने रामप्रसाद की तेरहवीं से हमारी जिंदगी पर एक एमोशनल सटायर, हल्की सी थपकी लगाई है। वह यह है कि हमारी जिंदगी सुर के साज़ के तरह से है। अगर एक भी तार ठीक से नहीं कसा, तो पूरा का पूरा सुर ही खराब हो जाएगा। इस सूत्र-शब्द को अपनी कहानी से कहने की कोशिश सीमा पहावा ने जिस प्रसंग से की है वह तेरहवी के कर्म संस्कार हैं जिससे शायद ही कोई घर-परिवार नहीं गुजर हो। सीमा पहावा ने जिस अंदाज में कहानी कही है उसका नैरेटिव दुनियादारी, रिश्ते और रिश्तों के पीछे का मतलब समझने का है।
फिल्म की कहानी एक फैमली ड्रामा है जिसमें कई शानदार कांमेडी पंच के साथ-साथ भावुक करने वाले क्षण भी है। कहानी में रामप्रसाद(नसरुद्दीन शाह) के मौत के बाद चार बेटे और दो बेटियों का भरा-पूरा परिवार पिता के क्रियाकर्म के लिए और रामप्रसाद की पत्नी अम्मां(सुप्रिया पाठक) के अकेलेपन को बांटने के लिए इकठ्ठा हुए हैं। क्रियाकर्म का सारा काम विधिवत कर्मकांड से हो भी रहा है।
परिवार के सारे सदस्यों की रामप्रसाद से इतनी अधिक शिकायते हैं कि सभी इस बात में अधिक मशरूफ रहते है कि पिता ने उनके लिए क्या नहीं किया, उस पर ही बहस करते रहते है। उन्हें अपनी मां के मन के उस अकेलेपन का जरा भी एहसास नही है जो पिता के जाने के बाद उनके जीवन में आ गया है। तब अम्मां को यह एहसास होता है कि अपने बच्चों को जीवन का एक पाठ सीखाना भूल गई इसलिए उसके जीवन गीत का सुर ठीक से नहीं लग पा रहा है। मानवीय रिश्तों के छोटी-छोटी पेंच और तमाम दुनियादारी में अकेले फंसा इंसान की भावनाओं को शानदार कलाकारों के साथ अगर एक साथ देखना हो, तो रामप्रसाद की तेरहवीं ज़रूर देखनी चाहिए।
पुष्पा जोशी, नसीरुद्दीन शाह, सुप्रीया पाठक, मनोज पाहवा, विनय पाठक, राजेंद्र गुप्ता, विनीत कुमार, कोंकणा सेन, परमब्रत, बृजेंन्द्र काला, निनाद कामत, विक्रांत मेसी, दिव्या जगदाले, दीपिका अमिन, सादिया सिद्दीकी जैसे दिगज्ज कलाकारों को सीमा पहावा ने राम प्र्साद के परिवार के रूप में एक जगह जमा किया है। पुष्पा जोशी जैसे शानदार अभिनेत्री की यह आखरी फिल्म है जिन्होंने रेड जैसी फिल्म से बहुत प्रभावित किया। इतने सारे कलाकारों से अपने हिस्से का काम निकलवाना आसान काम कतई नहीं है। इसके लिए सीमा पहावा का पूर क्रेडिट मिलना चाहिए।
सीमा पहावा ने सारे कलकारों का किरदार इस खूबसूरती से बुना है कि कोई किसी पर हावी हो ही नहीं पाता है। सभी अपनी-अपनी जगह पर एक आम परिवार के सदस्य के तरह ही लगते है। एक-दूसरे के बारे में अपने शिकवे-शिकायत करते हुए भी किसी का अभिनय नेगेटिव शेड का नहीं जाता है। हर कलाकार के पास अपना अभिनय दिखाने का जो स्पेस कहानी में बना है, वह बिल्कुल अनुपात है, न ही ज्यादा है न ही कम है।
कमाल की स्टोरी लाइन, कलाकारों के संवाद और संतुलित अभिनय के कारण पूरी फिल्म रियलिस्टिक अप्रोच के काफी करीब लगती है। इसका कारण सीमा पहावा का थियेटर से जुड़ाव लगता है। थियेटर में अभिनय करने वालों को पता है कि कौन सा तार कितना ढीला छोड़ना और किस तार को कितना कसना है तभी सुर-सरगम सही लग सकता है। सीमा पहावा ने कई फैमली ड्रामा में अभिनय किया है इसलिए उन्हें अनुभव भी है फैमली ड्रामा को अधिक रियलस्टीक रखने की कोशिश की है।
सीमा पहावा कहानी के माध्यम से अपनी बात करने के लिए माध्यम के रूप में जिस चरित्र अम्मां को चुना है वह एक महिला है। जिससे लोग संवेदना व्यक्त करते समय एक ही सवाल पूछते हैं, “कैसे हुआ?” एक भरा-पूरा परिवार है उसके साथ फिर भी वह अकेला महसूस करती है। उनका यह चयन बहुत ही साहसिक है क्योंकि आम तौर पर हम कभी उस महिला के अकेलेपन के बारे में सोचते ही नहीं है जिसके वज़ह से हम इस दुनिया में है। वह महिला परिवार के हर बच्चों ने न केवल जनती है उसका परवरिश भी करती है। पति और बच्चों का जीवन सवारते-सवारते वह उसमें ही गुम हो जाती है। जब अकेलेपन का एहसास होता है तो कोई उसके पास नहीं बचता सबों की अपनी-अपनी दुनियादारी है।
सीमा पहावा की रामप्रसाद की तेरहवीं पारिवारिक मूल्यों, एक-दूसरे के प्रति प्यार-मोहब्बत का आज के दौर में जो स्थान है, उसे एक कामेडी, इमोशनल और ट्रेजड़ी का शानदार बुके में रखा है।
मूल चित्र : Screenshot of Movie Poster
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