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रेणुका शहाणे की इस फ़िल्म त्रिभंग की कहानी में तीनों स्त्रियों का दर्द टूटता नहीं बल्कि एक से दूसरे के पास खूबसूरती से पहुँच जाता है।
अगर आपको नायिका प्रधान फ़िल्में पसंद हैं और अगर आप आम बॉलीवुड मसाला फिल्मों से कुछ अलग, बेहद रोचक और मनोरंजन से भरपूर फ़िल्म इस वीकेंड देखना चाहते हैं तो आपके लिये फ़िल्म त्रिभंग सही चॉइस रहेगी।
नेटफ्लिक्स पर 15 जनवरी 2021 को रिलीज़ हुयी फ़िल्म त्रिभंग से जहाँ एक ओर काजोल अपना डिजिटल डेब्यू कर रही हैं, तो वहीं रेणुका शाहने, जो इस फ़िल्म को निर्देशित कर रही हैं, उनकी भी ये पहली हिन्दी फ़िल्म है। अभिनेत्री के रूप में प्रशंसा पा चुकी रेणुका ने 2009 में मराठी फ़िल्म रीटा से निर्देशन की दुनिया में अपना कदम रखा था। रेणुका की ये फ़िल्म त्रिभंग जो कि एक माँ बेटी के जिंदगी पर आधारित है, तीन पीढ़ियों की कहानी है। अजय देवगन, सिद्धार्थ पी मल्होत्रा के एल्केमी फिल्म्स और बान्निजय आसिया के साथ मिल कर अपने बैनर अजय देवगन फिल्म्स के तहत इस फ़िल्म का निर्माण किया है।
त्रिभंग नाम ने मुझे बहुत आकर्षित किया और मेरे तरह आप दर्शक भी ये जानना चाहेंगे कि इस नाम का क्या अर्थ है? तो बताना चाहूंगी कि त्रिभंग एक ओडिसी नृत्य की मुद्रा है जो कि इस फ़िल्म की पात्रों की तरह अलग-अलग हो कर भी जुड़ी हुई है।
हिन्दी सिनेमा के लम्बे इतिहास में गिनती की ही फ़िल्में माँ-बेटी पे आधारित हैं। उनमें कितनी दर्शकों को याद हैं, ये कहना तो मुश्किल है। लेकिन त्रिभंग देखने के बाद मैं जरूर ये दावा कर सकती हूँ कि चुलबुली और बिंदास काजोल का अभिनय आपको ये फ़िल्म आसानी से भूलने नहीं देगा।
मुख्य भूमिकाओं में काजोल, मैथिली पालकर और तन्वी आजमी देखने को मिलेगी। माँ के रोल में तन्वी आजमी जहाँ नयनतारा आप्टे तो वही उनकी बेटी के रोल में काजोल ने अनुराधा आप्टे का किरदार निभाया है जो की एक बॉलीवुड स्टार और ओडिसी डांसर बनी हैं। माँ-बेटी की इस जोड़ी ने अपनी सारी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी है। समाज के रीती-रिवाजों, रूढ़िवादी मान्यताओं के खिलाफ जा हर वो काम किया है जिसकी समाज आमतौर पर एक स्त्री को इज़ाज़त नहीं देता।
नयन और अनुराधा ने अपने जीवन में जो भी पाया अपने संघर्ष और ज़िद से पाया। दोनों के जीवन में पुरुष आये, लेकिन स्थिर जीवन किसी ने नहीं जिया। शादी को बंधन और सोसाइटल टेररिज़म मानने वाली अनुराधा एक रुसी लड़के के साथ लिव इन रिलेशन में रहते हुए प्रेग्नेंट होती है, लेकिन कभी शादी नहीं करती। वही अपनी माँ अनुराधा से बिलकुल अलग उसकी बेटी माशा है, जो अपनी माँ और नानी की तरह उथल पुथल से भरी जिंदगी नहीं बल्कि अपने और अपने बच्चों को एक स्थिर जीवन देने में विश्वास करती है।
महिला कलाकारों के साथ इस फ़िल्म में दो अहम् पुरुष किरदार भी हैं, जिनका जिक्र करना मैं नहीं भूल सकती – वो हैं, वैभव तत्ववादी और कुणाल रॉय कपूर। दोनों ने ही अपने किरदार के साथ न्याय किया है और फ़िल्म ख़त्म होने के बाद भी दर्शकों के ज़हन में उनके अभिनय की छाप रहेगी। लम्बे समय बाद कुणाल को एक सशक्त किरदार मिला है, जिसे उन्होंने जीवंत कर दिया है।
रेणुका की इस फ़िल्म त्रिभंग की कहानी में तीनों स्त्रियों का दर्द टूटता नहीं बल्कि एक से दूसरे के पास पहुंच जाता है। परिस्थिति कुछ ऐसी होती है कि तीनों ही पीढ़ियां एक दूसरे के सामने कभी ना कभी आती हैं। आखिर में किस तरह तीनों की जिंदगी एक मोड़ पर आ ठहरती है, क्या रुख लेती है उनकी जिंदगी, इसके लिये आपको ये फ़िल्म देखनी पड़ेगी।
रेणुका की ये कहानी त्रिभंग सीधी सरल है लेकिन कहीं भी ऊबाऊ नहीं लगती। घटनाक्रम के साथ भावना को भी बराबर रखा गया है। दर्शकों का ध्यान कहीं भी नहीं भटकता। कसी स्क्रिप्ट, सुन्दर एडिटिंग और सधा हुआ निर्देशन इस फ़िल्म को पुरस्कार का पात्र बनाता है। तीनों महिला कलाकारों ने कहानी में जान डाल दी है ख़ास कर काजोल ने। इतना ही नहीं, ये फिल्म महिला जीवन से जुड़े कई अहम मुद्दों को भी छूती है।
मुझे लगता ही नहीं बल्कि विश्वास हो रहा है कि आज हिन्दी सिनेमा बदल रहा है। तभी तो काजोल और उन जैसी कई प्रतिभावान अभिनेत्रीयों को, जिन्हें शादी और बच्चों के बाद रिटायरमेंट का ठप्पा लगा घर बिठा दिया जाता था अब लगातार फ़िल्में करती दिखती हैं। मुझे बेहद ख़ुशी होती है जब किसी कलाकार को उसके कला से कद्र की जाती है, ना कि उम्र से। अंत में काजोल और रेणुका को उनकी फ़िल्म त्रिभंग के लिये बधाई दूंगी और भविष्य के लिये ढेरों शुभकामनायें।
मूल चित्र : Screenshot of Film Poster, Netflix
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