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ये तस्वीरें देख निष्ठा को दो महीने पहले की बात याद आ गई जब वो हनीमून से वापस आयी थी तब सासूमाँ ने कैसा बखेड़ा शुरू किया था।
सारे काम निपटा निष्ठा आराम से फ़ोन ले सोशल मीडिया चेक करने लगी तभी अपनी नन्द अंशु की पिक्चर देख वह चौंक उठी। शॉर्ट्स, क्रॉप टॉप और जीन्स में अपने हनीमून की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अंशु ने पोस्ट की थी।
वैसे तो आज के समय की ये आम बात थी, लेकिन निष्ठा के लिये चौंकने वाली बात ये थी कि निष्ठा की सासूमाँ ने सभी तस्वीरों को लाइक भी किया था और प्यारे-प्यारे कमेंट्स भी किये थे। इसमें कोई शक़ नहीं था कि अंशु बेहद प्यारी लग रही थी लेकिन ये तस्वीरें देख निष्ठा को दो महीने पहले की बात याद आ गई जब वो हनीमून से वापस आयी थी तब सासूमाँ ने कैसा बखेड़ा शुरू किया था।
निष्ठा के पति राघव और नन्द अंशु जुड़वा भाई-बहन थे, दिखने में भी काफ़ी समान लगते थे तो निष्ठा की सासूमाँ की खवाहिश थी कि दोनों भाई-बहन की शादी भी एकसाथ ही हो। अंशु की शादी निष्ठा और राघव की शादी से दो दिन पहले हुई थी। अंशु के पति आर्मी में थे और छुट्टियां कम मिलने के कारण वो शादी के तुरंत बाद घूमने नहीं जा पायी थी, जबकि राघव ने शादी के पंद्रह दिन के बाद के अपनी और निष्ठा की गोवा के टिकट कटवा लिए थे।
जब हनीमून की बात हुई, तो गोवा जाने का प्लान राघव ने ही बनाया। निष्ठा ने कश्मीर जाने की इच्छा जताई थी। निष्ठा को बर्फ से भरे पहाड़, डल झील देखने का बहुत दिल था लेकिन राघव के कहने पर कि वहाँ हम फॅमिली के साथ चलेंगे, लेकिन हनीमून पे गोवा ही ठीक रहेगा, तो निष्ठा ने भी हां कर दी थी।
“निष्ठा अच्छे-अच्छे ड्रेसेस ले लेना और शॉर्ट्स भी, बीच पर आराम रहेगा और घूमने में भी सहूलियत रहेगी।”
“लेकिन राघव अगर मम्मीजी को पता चला की मैंने ऐसे कपड़े पहने थे और वो नाराज़ हो गईं तो?” निष्ठां ने अपनी चिंता राघव के सामने रखी।
“मम्मी क्यों नाराज़ होने लगी? अब हनीमून पर ये सब नहीं तो क्या साड़ी पहनोगी?” हसंते हुए राघव ने कहा तो निष्ठा भी मुस्कुरा उठी।
शादी बहुत धूमधाम से संपन्न हो गई। दुल्हन बन निष्ठा अपने ससुराल आ गई। राघव जैसा हंसमुख और खुले विचारों का जीवनसाथी पा निष्ठा बेहद ख़ुश थी। शादी के कुछ दिन मेहमानों से घर भरा रहा ऐसे में निष्ठा अपनी सासूमाँ के स्वाभाव से ठीक से परिचित नहीं हो पायी थी। घर का माहौल और अपने रिश्ते के नन्द-देवर को देख निष्ठा ने अपने ससुराल वालों को खुले विचारों का समझ लिया था।
निश्चिंत समय पर निष्ठा और राघव हनीमून पर चले गए। राघव का प्यार और व्यवहार देख निष्ठा बहुत ख़ुश थी। दोनों ने वहाँ बहुत खूबसूरत पल बिताये तो कुछ प्यारे पलों को कैमरे में भी कैद कर लिया।
एक हफ्ता बीता कर जब दोनों घर आये तो घर से सारे मेहमान जा चुके थे। निष्ठा बहुत ख़ुश थी और अगले दिन हनीमून की कुछ तस्वीरों को निष्ठा से सोशल मीडिया पर भी शेयर कर दिया। तस्वीर शेयर करते वक़्त निष्ठा ने सिर्फ जीन्स-टॉप या केप्री वाली तस्वीरें ही डाली थीं। थोड़ी देर बाद ही निष्ठा की सासूमाँ नाराज़ हो निष्ठा के कमरे में आ गई।
“ये क्या तस्वीरें डाली हो बहु सोशल मीडिया पर? क्या एक संस्कारी बहु को ये सब शोभा देता है?”
“लेकिन माँजी मैंने तो सिर्फ जीन्स कुर्ते की पिक ही डाली है और ये कपड़े तो मैं शादी के पहले भी पहनती थी।”
“शादी के पहले जो किया सो किया, लेकिन अब तुम मेरे घर की बहु हो। हमारी कुछ इज़्ज़त है सोसाइटी में। हमारी घर की बहुएं जीन्स पहन के नहीं घुमा करतीं। अभी के अभी डिलीट करो इन तस्वीरों को।”
नई-नई बहु बनी निष्ठा अपनी मॉडर्न सास का ऐसा रूप देख दंग रह गई और उस वक़्त माफ़ी मांग चुप रह गई और बुझे दिल से तस्वीरों को भी डिलीट कर दिया। लेकिन आज अपनी बेटी के ऐसे मॉडर्न तस्वीरों पर सासूमाँ के प्यारे-प्यारे कमेंट पढ़ निष्ठा को अपनी सासूमाँ के दोगले व्यवहार पर बहुत दुःख और नाराजगी हुई और उसने सोच लिया आज अपनी सासूमाँ को आईना दिखा के ही रहेगी।
“माँजी आपने दीदी के हनीमून की तस्वीरें देखी क्या?”
“नहीं तो बहु? कौन सी वाली?” अनजान बनती हुई सासूमाँ ने कहा।
“आपने कमेंट किया है ना आज, वही वाली माँजी।”
“अच्छा वो वाली? हां वो दामाद जी ने कहा होगा, वर्ना मेरी अंशु ऐसे कपड़े नहीं पहनती।”
“माँजी आपको याद है मेरे हनीमून की तस्वीरें देख आपने मुझे कितना कुछ सुनाया था? उस वक़्त तो मैं नहीं कुछ बोल पायी थी, लेकिन आज अंशु दीदी की तस्वीरें देख सोचा आपको बता दूँ कि मुझे भी वो कपड़े आपके बेटे ने ही ये बोल कर पहनने को कहा था कि मेरी मम्मी बहुत मॉडर्न ख़याल की है और हनीमून पर कोई साड़ी तो नहीं पहनेगा ना। वैसे भी मैंने लॉन्ग कुर्ती और टॉप पहना था जीन्स पर, अंशु दीदी की तरह शॉर्ट्स नहीं।”
“तुम कहना क्या चाहती हो बहु? तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई? क्या यही संस्कार हैं तुम्हारे बहु?”
“हिम्मत की क्या बात है माँजी? बात बस इतनी है माँजी कि कपड़े किसी के संस्कार का प्रतीक नहीं। साड़ी पहन अगर मैं आपकी इज़्ज़त ना करूँ, सास का मान ना दूँ तो क्या फायदा? क्या आपको ये अच्छा लगेगा? और ये मेरे संस्कार ही हैं जो मैंने आपकी बातों का मान रख तस्वीरें डिलीट कर दी थीं, वर्ना मैं चाहती तो उसे कभी ना हटाती।
माँजी ससुराल में कैसे रहना है, ये मैं अच्छे से जानती हूँ और अपने पति के साथ किन कपड़ों में घूमने जाना है, ये भी मैं अच्छे से जानती हूँ। अपनी मर्यादा की रेखा मुझे पता है माँजी। लेकिन माफ़ कीजियेगा जिन संस्करों की अपेक्षा आप मुझसे करती हैं, वो आपने अपनी बेटी को नहीं सिखाये। साड़ी ही मेरे संस्कार को परिभाषित करेंगे ये कहाँ लिखा है माँजी? मैं तो ऐसी कई बहु को जानती हूँ जो घूँघट करके भी अपनी ससुराल में किसी को मान नहीं देतीं।
ईश्वर ना करे, जैसा व्यवहार आपने मेरे साथ उस वक़्त किया था वैसा ही अंशु के साथ उसकी सासू माँ करें तब आपको कैसा लगेगा?”
निष्ठा की सासूमाँ की बोलती बंद हो चुकी थी क्यूंकि जो नियम अपनी बहु पर उन्होंने लगाया था वही उनकी बेटी ने तोड़ दिया था।
प्रिय पाठकगण, कहानी के माध्यम से मैं आप पाठकों से आपके विचार जानना चाहूंगी कि क्या सच में कपड़े संस्करों का प्रतीक हैं? क्या साड़ी पहना है तब ही बहु बड़ों की इज़्ज़त करती होगी और दूसरे कपड़ों में नहीं? मुझे तो ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता। सम्मान तो आँखों में होना चाहिये, दिल में होना चाहिये। आपकी क्या राय है इस विषय पर मुझे ज़रूर अवगत करवायें।
मूल चित्र : Photo by Arvind Menon on Unsplash
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