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आपकी सारी उम्मीदें सिर्फ बहु से ही क्यों हैं…

आखिर इतने समय से मैं अकेली ही तो सब कर रही थी। माँजी सारी उम्मीदें सिर्फ बहु से क्यों क्या बेटियों का कोई फ़र्ज नहीं मायके के तरफ।

आखिर इतने समय से मैं अकेली ही तो सब कर रही थी। माँजी सारी उम्मीदें सिर्फ बहु से क्यों क्या बेटियों का कोई फ़र्ज नहीं मायके के तरफ।

शर्मा निवास में रौनक लगी हुई थी अवसर था घर की सबसे छोटे बेटे की शादी का घर में मेहमानों का आना जाना लगा हुआ था तो साथ ही काम भी ढेरों थे। घर की बड़ी बहु शुचि को तो एक मिनट बैठने की फुर्सत नहीं थी, यहाँ तक की आपने बेटे शुभ को भी ठीक से संभाल नहीं पा रही थी। घर की अंतिम शादी थी तो दूर-दूर से सारे रिश्तेदार आये थे।

रोज़ ही कोई ना ना कोई महफ़िल जम जाती थी। आज लेडीज संगीत का कार्यक्रम था। मेहमानों से घर भरा हुआ था सुबह से एक मिनट भी बैठने की फुर्सत नहीं मिल पायी थी शुचि को। हर छोटी बड़ी चीज़ो के लिये सब शुचि को ही आवाज़ लगाते। कभी किसी को पार्लर वाली का नंबर चाहिये तो कभी किसी को नाश्ता या चाय। सासूमाँ और दोनों बड़ी शादीशुदा नन्दों को सिर्फ बातों से ही मतलब था। उम्र और अनुभव  में तीनों ही शुचि से बड़ी थीं, लेकिन जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली थी।

सुबह से रात शुचि बस भागती ही रहती इधर से उधर। सर्दियों की शादी थी तो मौसम में भी ठंडक घुली था। शुचि चाह कर भी शुभ पे ध्यान नहीं दे पा रही थी। शाम के समय शुभ बाकि बच्चों के साथ खेलते खेलते सीढ़ियों के पास चला गया और आपसी लड़ाई में किसी बच्चे ने शुभ को धक्का दे दिया। सीमेंट की सीढ़ियों से शुभ के दोनों हाथ बुरी तरह छील गए और खून भी आने लगा। शुभ को रोता देख बाकि बच्चे डर कर भाग गए। जब अशोक (शुचि के पति ) ने देखा तो जल्दी से शुभ को गोद में उठा शुचि के पास ले कर आये और तब तक शुभ रो रो कर बेहाल हो गया था।

शुचि और अशोक ने शुभ को दवा लगा पट्टी बांध दी। चार साल का छोटा बच्चा दर्द से बेहाल हो रहा था। एक मिनट भी शुचि को नहीं छोड़ रहा था गोद से बेड पे रखते रोने लगता, पूरी रात बेटे को गोद में ले बैठी रही। दर्द से शुभ को बुखार भी आ गया। अपने बच्चे को परेशान देख शुचि भी बहुत परेशान हो गई।

“अशोक मुझे लगता है एक बार शुभ को डॉक्टर से दिखा देना चाहिये। दर्द के साथ अब बुखार भी आ गया है। मुझे तो एक मिनट नहीं छोड़ रहा है, शादी का घर है इतने काम पड़े हैं”, रुआँसी हो शुचि ने अपने पति अशोक को कहा।

“हां शुचि, डॉक्टर से मिल लेते हैं। तुम परेशान ना हो और जाओ पहले फ्रेश हो कर कुछ खा लो?” शुचि का उतरा हुआ परेशान चेहरा देख अशोक ने पूछा कहीं ना कहीं अपनी माँ और घरवालों के अपेक्षित व्यवहार से अशोक का मन भी बुझ सा गया था।

“अशोक, शुभ मुझे कहीं जाने नहीं दे रहा है।”

तुम खा कर आओ शुभ को मुझे दो”, इतना कह अशोक ने शुभ को अपने गोद में ले लिया।

अशोक ने शुभ को थोड़ी देर पकड़ा तो जल्दी से शुचि ने खाना खाया तब तक शादी की तैयारी से जुड़े कुछ लोग आ गए और इन सब में अशोक डॉक्टर के पास जाने की बात बिलकुल भूल गया। शुचि बच्चे में उलझी थी तो घर आये मेहमान शुचि की सासूमाँ और नन्दों के सामने अपनी फरमाइशें रखने लगे। एक दिन भी नहीं बीता और दोनों नंदें चिढ़ कर अपनी माँ से लड़ने लगीं।

“ये अच्छा है माँ तुम्हारी लाडली बहु? कमरे में बैठी रहे और हम सारी भाग दौड़ करती रहें? कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ा लिया है शुचि भाभी को आपने। अभी तो एक बहु है तो ये हाल है हम नन्दों का जब नई बहु भी आ जायेगी तब क्या होगा? याद रखना माँ अपनी जेठानी के ये रंग ढ़ंग देख नई बहु को भी बदलते देर नहीं लगेगी।”

दोनों बेटियों की बातें सुन शुचि की सासूमाँ तैश में आ गई, “ये क्या बहु? तुम्हारे देवर की शादी है, सारा घर मेहमानों से भरा है और तुम कमरे से निकल भी नहीं रहीं? मेरी बेटियों ने सब कुछ संभाल रखा है। क्या मेरी बेटियां मायके काम करने आयी हैं? और अपनी ये क्या हालत बना रखी है? इतने मेहमानों के सामने तुम्हें ठीक से रहने की अकल नहीं? ऐसे बिखरे बाल, ऐसी साधारण साड़ी और क्या एक बिंदी तक लगाने का होश नहीं रहा तुम्हें? अरे इतने बड़े घर की बहु हो कुछ तो स्टैंडर्ड बना के रखो अपना कल को देवरानी आयेंगी क्या सीखेगी तुमसे?”

गुस्से से आगबबूला हो शुचि की सासूमाँ ने खूब खड़ी खोटी सुनायी शुचि को। उनकी तेज़ आवाज़ बाहर तक जा रही थी और घर आये सारे मेहमान भी सुन रहे थे। तन मन से ससुराल वालों की सेवा के बाद भी अपनी सासूमाँ का व्यवहार देख दुःख और अपमान से शुचि का धैर्य ज़वाब दे गया।

“सही कहा मम्मीजी आपने इतने बड़े घर की बहु हूँ तभी नौकरानी की तरह सुबह से रात तक बस भाग ही रही हूँ। इतना भाग रही हूँ कि मेरे बच्चे को देखने तक की फुर्सत नहीं मिल रही मुझे।”

“शुभ सीढ़ियों से गिर गया इसके हाथ पैर छील गए लेकिन इस बड़े से घर में किसी को फुर्सत नहीं मिली मेरे बच्चे का हाल पूछे और जहाँ तक दोनों दीदियों की बात है तो ये सिर्फ मेरे देवर की नहीं उनके भाई की भी शादी है अगर एक दिन संभाल भी लिया तो क्या हुआ आखिर इतने समय से मैं अकेली ही तो सब कर रही थी। माँजी सारी उम्मीदें सिर्फ बहु से क्यों क्या बेटियों का कोई फ़र्ज नहीं मायके के तरफ।”

“अब जुबान भी चलाने लगी शुचि बहु?”

“माफ़ कीजियेगा माँजी लेकिन अपने बेटे का दर्द अब मुझसे देखा नहीं जा रहा और तभी मैं बोल रही हूँ। शुभ आपका भी तो पोता है छोटे से बच्चे को दर्द से बुखार भी आ गया लेकिन अपने एक बार भी नहीं पूछा कैसा है शुभ? आपके बेटे की शादी की के लिये मैंने मेरे बेटे पे ध्यान नहीं दिया और माँजी मैं भी इंसान हूँ कोई मशीन नहीं जो सारा दिन सिर्फ काम ही करूँ। आप पूछ रही थीं ना कि क्यों मैं बड़े घर की बहु का स्टैंडर्ड से तैयार नहीं हूँ? वो इसलिए माँजी की अपने बीमार बच्चे को अकेली सारी रात गोद में लिये बैठी रही हूँ मैं।

माफ़ कीजिये माँजी लेकिन जितना मुझसे हो सकता था मैंने किया लेकिन अब इससे ज्यादा मेरे से आप उम्मीद ना करें और हाँ आगे से मुझसे इस लहजे में बात ना करें, अब मैं भी सिर्फ बहु नहीं हूँ इस घर की जेठानी बनने वाली हूँ। कल को मेरी देवरानी देखेगी तो क्या सोचेगी?”

शुचि की बात सुन उसकी सास दंग रह गई दरवाजे पे खड़े अशोक ने भी जब अपनी मौन सहमति शुचि को दे दी तब सासूमाँ ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी और शुचि ने भी अपने बेटे को गोद में उठाया डॉक्टर के पास चल दी।

मूल चित्र : KIJO77 from Getty Images via Canva Pro

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