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तुम खुलकर अपनी तड़पन को मुझसे कहना, मेरा वादा है सखी हम न सिर्फ मिलकर राह निकालेंगे। बल्कि अब उस ज़िन्दगी को भी संवारेंगे।
क्यों दीवारों से बात तुम करती हो? क्यों अंधेरे से आंख मिचौली खेलती हो? क्यों उन निशानों के पीछे की गूंज को तुम चुपचाप सुनती हो?
अब बस बहुत हुआ तुम्हारा गुमसुम रहना एक हाथ बढ़ाओ तो सखी नहीं होता बर्दाश्त मुझसे तुम्हारा यूं ज़ुल्म सहना। इस बार तुम्हारी तकलीफ़ पर कोई हंसेगा नहीं, एक महिला दूसरी महिला के जीवन पर तंज कसेगी नहीं।
तुम खुलकर अपनी तड़पन को मुझसे कहना मेरा वादा है सखी हम न सिर्फ मिलकर राह निकालेंगे बल्कि जो तू सह रही है अब उस ज़िन्दगी को भी संवारेंगे। क्यों बंदिशों और बेड़ियों को तू मान बैठी है अपनी तकदीर क्यों हाथों के रूखेपन में ढूंढ रही है सुनहरे भविष्य की लकीर
आज नहीं कल , कल नहीं परसों इस झूठे भ्रम में तूने बिता दिए हैं बरसों। कब तक ढोती रहोगी एकतरफा जिम्मेदारियों का बोझ बस कर सूनी राह को ताकना, अब अपने भीतर के सूरज को तू भी खोज।
मेरी सखी एक हाथ बढ़ा तू अपनी दबी हुई ख्वाहिश की ओर और थाम ले अभी से अपनी थमी हुई सांसों की डोर क्योंकि तेरे स्वागत को तैयार हैं उम्मीद की किरणें और भरोसे की भोर।
जी ले उन अनकहे एहसासों को जिन्हें बुन रही थी तू खयालों के सन्नाटे में अबकी बार जो तू तेरा हाथ बढ़ाना सखी खोल लेना अपने जंग लगे पंखों को झूमने खुले आसमान में।
मूल चित्र: Srimathi Jaiprakash via Unsplash
Hi I'm Ruby Jain, married with two grown up kids, I'm an experienced primary teacher, love to cook, dance and sometimes paint, currently enjoying my writing passion, women's web is an amazing read more...
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