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अपना वादा याद है ना आपको…

भाभी ने मज़ाक-मज़ाक में आभा के गरीबी का मज़ाक उड़ा दिया, "क्या आभा इतनी क्या प्यारी है ये साड़ी तुम्हें जो हर फंक्शन में इसे ही पहन लेती हो?"

भाभी ने मज़ाक-मज़ाक में आभा के गरीबी का मज़ाक उड़ा दिया, “क्या आभा इतनी क्या प्यारी है ये साड़ी तुम्हें जो हर फंक्शन में इसे ही पहन लेती हो?”

अमित के ऑफिस से आते ही उत्साहित हो आभा कहने लगी, “आज विभा (आभा के भाई की बेटी) की शादी का कार्ड आया है और माँ का फ़ोन भी आया था शादी में आने के लिये। हम चलेंगे ना? अमित बताओ ना?”

आभा को बच्चों सा उत्साहित हो सारी बातें बताते देख अमित मुस्कुरा उठा।

“आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं अमित? बताओ ना अमित हम चलेंगे ना?”

“हां बिलकुल चलेंगे।” अमित का आश्वासन पा आभा खिल उठी और जल्दी से खाना लगाने चली गई। उधर अमित इस उधेड़-बुन में फँस गया कि शादी मतलब खर्च और अभी तो माँ-बाबूजी को गाँव पैसे भी भिजवाने थे।

अगले दिन टिफ़िन के साथ आभा ने ये ताकीद भी कर दी की इस बात अच्छी साड़ी दिलवानी ही पड़ेगी, “पिछली बार क्या हुआ था याद है ना आपको? और आपका किया वादा भी याद दिलाऊँ  क्या?”

“सब याद है मुझे”, और हां-हूँ कर अमित ऑफिस निकल गया।

ये कहानी है अमित और आभा की और उनके संघर्ष की। आगे बढ़ने से पहले बताती चलूँ कि सिर्फ अमित की नौकरी के सहारे उसके माता-पिता और दो छोटे भाई बैठे थे गाँव में और ऊपर से अमित का अपना परिवार आभा और बेटा आदित्य।

आभा समझदार थी, परिस्थिति भी समझती थी, लेकिन पिछली बार जब अपनी बहन के गृह-प्रवेश के अवसर पर आभा ने तीसरी बार भी वही साड़ी पहनी, तो भाभी ने मज़ाक-मज़ाक में आभा के गरीबी का मज़ाक उड़ा दिया, “क्या आभा इतनी क्या प्यारी है ये साड़ी तुम्हें जो हर फंक्शन में इसे ही पहन लेती हो?”

आसपास की औरतों के चेहरे की वो व्यंग वाली मुस्कान देख गुस्से से आभा का चेहरा तमतमा गया लेकिन अमित के एक इशारे पर चुप रह गई थी और तभी अमित ने वादा किया अगला कोई भी फंक्शन होगा सबसे सुन्दर और कीमती साड़ी आभा की ही होगी। आज आभा वही वादा याद याद दिला रही थी।

अमित एक सरकारी दफ़्तर में क्लर्क की पद पे था घर का बड़ा लड़का और जिम्मेदारी से लदा हुआ वहीं आभा अपने घर की सबसे छोटी बेटी। आभा की दोनों बड़ी बहनों की शादी आभा के पिता ने अच्छे कमाने खाने वाले लड़कों से की लेकिन परिस्थिति ऐसी बदली कि अचानक उनकी मृत्यु हो गई और भाई ने आनन फानन में अमित से आभा की शादी कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी।

आज ऑफिस में भी अमित का दिल नहीं लग रहा था। अच्छी साड़ी तो कम से कम तीन चार हजार लग ही जायेंगे फिर महीने के अंतिम दिन तो हाथ वैसे ही तंग होते है। शादी में तोहफ़े भी देने होंगे, उसके खर्च अलग से।

“क्या सोच रहे हो अमित? लंच टाइम हो गया और तुम बैठे हो?” अपने उधेड़-बुन में खोए अमित को उसके दोस्त रवि ने जब टोका तो अमित झूठी मुस्कान चेहरे पे ले आया।

“क्या कहुँ यार कुछ खर्चे आ गए हैं, अगर तू कुछ मदद कर देता…?”

“मेरे हालात क्या तुझसे छिपे हैं रवि? अकेला कमाने वाला और पांच खाने वाले, उस पर छवि (रवि की पत्नी) भी प्रेग्नेंट है। डॉक्टर ने ऑपरेशन को बोला है। अब ऑपरेशन का खर्च तो तुझे पता ही है, इस बार माफ़ कर दे दोस्त।”

“कोई बात नहीं रवि”, अमित को अपनी उम्मीद टूटती सी नज़र आ रही थी।

शाम को घर आते ही आभा फिर से शुरू हो गई, “पैसे लाये हो तो दे दो। फॉल, पिको और ब्लाउज भी तो सिलवानी है, इन सब में समय लगता है।”

“आज भूल गया आभा, कल लेते आऊंगा।” आभा को कल तक के लिये तो अमित ने टाल दिया था लेकिन खुब समझ रहा था अमित, कल भी निराशा ही मिलेगी। आज जितने ख़ास थे सबने ना कर दिया था।

उधर आभा भी अमित के चेहरे की चिंता पढ़ रही थी। अमित की परेशानी देख जब उसका दिल डोलता, तो भाभी की हँसी कानों में गूंज उठती थी और एक झटके में साड़ी की ज़िद सी हो उठती आभा को।

इन्ही सब में दो चार दिन और बीत गए अब आभा ने ज़िद ठान ली आज पैसे लाना ही लाना वर्ना…

परेशान अमित ऑफिस चला गया। खुद पे बेहद शर्मिंदा सा हो गया था अमित, ‘इतने सालों तक जैसे रखा वैसे रही थी आभा। जाने कितने सपनों को अमित के परिवार की जरूरतों पर कुर्बान कर दिया था आभा ने और उसकी एक इच्छा भी पूरी करने में कितना असमर्थ हूँ मैं। लानत है मुझपे कैसा पति हूँ जो अपनी पत्नी को एक साड़ी भी नहीं दिला पा रहा।’ खुद की लाचारी पर बेहद शर्मिंदा और दिन भर कहाँ से पैसों का इंतजाम करे, ये बात सोचते-सोचते परेशान अमित का ब्लड प्रेशर बढ़ गया और वो अपने सीट पर ही बेहोश हो गिर पड़ा।

आनन फानन में अमित को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। रवि ने आभा को फ़ोन पर सारी बात बता जल्दी अस्पताल आने को कहा। बदहवास सी आभा अस्पताल पहुंची देखा तो बिस्तर पर अमित सोये थे, हाथों में ड्रिप लगी थी। अमित को देख आभा रोने लगी।

“क्या हो गया इन्हें रवि भैया?”

” भाभी, पिछले कुछ दिनों से पैसों को ले कर बहुत परेशान था अमित। शायद तभी बीपी बढ़ गया और बेहोश हो गया। लेकिन आप चिंता ना करें, खतरे की कोई बात नहीं।”

रवि की बात सुन आभा का दिल धक् से कर गया। ये क्या कर दिया मैंने? एक साड़ी के लिये इतना परेशान किया अमित को कि अस्पताल की नौबत आ गई?

थोड़ी देर में अमित को होश आ गया आभा को देख उसकी आँखे झलक उठीं, “माफ करना आभा अपना वादा पूरा ना कर पाया।”

रोते-रोते आभा अमित से लिपट गई, “कुछ मत बोलो अमित मुझे कुछ नहीं चाहिये। मैं ही पागल थी जो दूसरे क्या सोचेंगे क्या कहेंगे इन सब बातों में अपना विवेक खो दिया। सब जान-बुझ कर भी तुम्हें इतना परेशान किया। वादा करती हूँ, कभी तुम्हें परेशान नहीं करुँगी। मुझे जो तुम दिलाओगे वही मेरे लिये संसार का सबसे कीमती उपहार होगा।”

दोनों पति पत्नी लगे लग रो रहे थे और उनका प्रेम देख वहाँ सबकी ऑंखें भर आयीं थीं।

मूल चित्र : jessicaphoto from Getty Images via Canva Pro   

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