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पाँव की झांझर, कमर की करधनी, हाथो की चूड़ी कंगन, कंठ का हार, बिंदी ललाट की, मांग का सिंदूर लाल, लिख दिया गया रमणी का सारा श्रृंगार।
पाँव की झांझर, कमर की करधनी,हाथो की चूड़ी कंगन, कंठ का हार,बिंदी ललाट की, मांग का सिंदूर लाल,लिख दिया गया रमणी का सारा श्रृंगार।
पंकज पग, सरिता सी बलखाती कमर,सुसंगठित उर अंगों से ह्रदय हो जाये तरल,अधर है मानो प्रसून नैनो को कहा सागर,लिख दिया कान्ता का अंग प्रत्यंग विस्तार।
बन कर तनुजा रखती मन मे सदा पीहर,कोमलता से ह्रदय मे भरती पिय का घर,प्रसव भोग वो दैहिक क्षण भंगुर नहीं होती है।हे कवल! बोलो तुम्हारी कविता मे बातसुंदरी के ह्रदय की क्यों नहीं होती है!
मूल चित्र : Alok Verma via Unsplash
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