कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद से कहती हूँ…

अगर लगे कि सब बराबर है, तो फिर तो कोई गम ही नहीं, पर गर लगे कि मामला गड़बड़ है तो रास्ता बदलने में भी देर नहीं लगाती हूँ।

अगर लगे कि सब बराबर है, तो फिर तो कोई गम ही नहीं, पर गर लगे कि मामला गड़बड़ है तो रास्ता बदलने में भी देर नहीं लगाती हूँ।

जब मैं थक जाया करती हूँ तो खुद को समझाया करती हूँ
कि कोई बात नहीं,
थोड़ा सुस्ता ले…
थम जा थोड़ा और
अब तक के जिए पलों के थोड़ा हिसाब लगा ले।

कोई हर्ज़ नहीं है
थोड़ा गुणा भाग करने में,
क्या खोया, क्या पाया
इस जद्दोजहद की जांच करने में।

जब मैं थक जाया करती हूँ
तो खुद को समझाया करती हूँ,
सारी जिम्मेदारियों के बोझ तले
कुछ पल सुकूँ के
अपने लिए चुराया करती हूँ।

जहाँ ना बंदिश होती है ख्यालों पर
और ना ही किसी सोच का पहरा होता है,
आज़ादी होती है खुद से मिलने की,
उन चंद मिनटों का वक़्त भी कितना सुनहरा होता है।

जहाँ मैं खुद से मिला करती हूँ,
खुद से गिला करती हूँ,
रखती हूँ लेखा जोखा अपने सपनों का,
अपने अरमानों का,
जो पूरे हुए उनका
और जो छूट गए उनके हर्ज़ानों का।

जब मैं थक जाया करती हूँ
तो खुद को समझाया करती हूँ
कि कोई बात नहीं,
थोड़ा सुस्ता ले…
थम जा थोड़ा
और अब तक के जिए पलों के थोड़ा हिसाब लगा ले।

अगर लगे कि सब बराबर है
तो फिर तो कोई गम ही नहीं,
पर गर लगे कि मामला गड़बड़ है
और स्थिति काबू में नहीं है
तो रास्ता बदलने में भी देर नहीं लगाती हूँ।

जब मैं थक जाया करती हूँ
तो खुद को समझाया करती हूँ।

मूल चित्र : from author’s album, FB

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Deepika Mishra

I am a mom of two lovely kids, Content creator and Poetry lover. read more...

21 Posts | 140,164 Views
All Categories