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अब मुझे अपने लिये जीना है ज़माने के लिए नहीं…

आपने मेरे आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को झकझोर कर रख दिया कि आखिर क्यों सह रही हूं मैं? और फिर रश्मि की बातों ने मुझे मजबूत बना दिया।

आपने मेरे आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को झकझोर कर रख दिया कि आखिर क्यों सह रही हूं मैं? और फिर रश्मि की बातों ने मुझे मजबूत बना दिया।

“माँ! मुझे अनिल ने बताया कि लाल आप का पसंदीदा रंग है”, रश्मि ने अपने पति के द्वारा बतायी गयी बात का जिक्र करते हुए अपनी सास अनुपमा जी से कहा। 

“इस बार अपने जन्मदिन पर आप भी लाल रंग की ही साड़ी पहनना, आपके जन्मदिन की तारीख कितनी अच्छी है 1जनवरी, नया साल और आपका जन्मदिन कितना अद्भुत संयोग है। जीवन और साल, दोनों की एक नई शुरुआत है ना माँजी”, रश्मि रसोई में रोटियां सेंकते हुए अपनी सास से बातें भी किये जा रही थी। 

इधर अनुपमा जी साग साफ करते हुए रसोई के फर्श पर बैठी चुपचाप बहु की बातों को सुने जा रही थी, क्योंकि उनके मन में बहुत सी बातें चल रही थीं कि तभी रश्मि ने रोटियां सेंकने के बाद अनुपमा जी के पास आ के बैठते हुए बोली, “माँ क्या हुआ? आप चुपचाप क्यों हैं? आप कल रात की बात को सोच रही हैं। उसके लिए मैं माफी चाहती हूँ। मुझे नहीं पता था कि पापा को आप का मेकअप करना नही पसंद, वरना मैं आपका मेकअप करती ही नहीं। कल आपको मेरी वजह से…”, कहते हुए रश्मि चुप हो गयी।

अनुपमा जी  के हाँथ से एकाएक साग को छोड़ कर अपने गालों को सहलाया और वहाँ से उठ कर चुपचाप चली गयीं। रश्मि का मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था। दरअसल कल दोपहर में रश्मि ने अपनी सास से कहा, “माँजी आइये, आपकी कंघी कर के थोड़ा मेकअप कर देती हूं फिर आप पड़ोस की पूजा में चले जाइयेगा।” तभी कमरे में अचानक से अनुपमा जी के पति सुरेश जी आ गए और उन्होंने तुरंत एक तमाचा अनुपमा जी के गाल पर दे मारा। जब तक दोनों सास बहू कुछ समझ पाती, सुरेशजी वहाँ से चले गए।

रात को ये बात रश्मि ने अपने पति सोनू को बताते हुए कहा, “माँजी कल के बाद हुए घटना से कुछ नही बोल रही हैं.सोनू ! लेकिन ये गलत था पापा ने बिना कुछ बोले सीधा माँ को चाँटा मार दिया। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया। बोलने गयी तो माँजी ने हाँथ पकड़ कर रोक दिया। तुमने भी कुछ नहीं बोला। मुझे यहाँ आये 6 महीने भी नहीं हुए हैं। तुमने भी कभी कुछ नहीं बताया माँ-पापा के रिश्ते के बारे में।”

“क्या बताऊँ? कुछ हो बताने जैसा तब ना”, सोनू ने कहा। 

“मतलब?” रश्मि ने आश्चर्य से पूछा। 

“मतलब! ये कि बाबू जी का स्वभाव शुरू से शक्की रहा है। उनको औरतों का मेकअप करना, गैर मर्दों से बाते करना नहीं पसंद। उनके हिसाब से ये चरित्रहीन स्त्रियों का काम है। वो माँ को हमेशा से अपनी पसंद के ही कपड़े पहनाते आये हैं। कभी किसी से बात नहीं करने देते। यहाँ तक कि माँ के चचेरे भाइयों से भी रिश्ते खत्म करा दिए।

मुझे आज भी याद है कि एक बार माँ ने अपनी पसंद की लाल रंग की साड़ी पहन ली और पड़ोसी के घर पूजा में चली गयी थीं। लौट के आने के बाद बाबूजी ने बहुत मारा था माँ को। तब मैं सिर्फ नौ साल का था।  मैने माँ को बचाने के लिए बाबुजी को दांत से काट लिया। तो माँ ने मुझे ही दो थप्पड़ मारे, ये कहते हुए कि वो तुम्हारे पिता हैं और तुम्हें उनका सम्मान करना चाहिए। जिस दिन मैं तुम्हारी मदद मांगू तब मुझे मदद देना। तब से आज तक मैं माँ के ही बोलने का इंतजार करता हूं और शायद ये इंतजार कभी ख़त्म भी नहीं होगा। तुम भी अपने काम से काम रखा करो। और वैसे भी अब मैं और ये सब नहीं देख सकता मैंने सोच लिया है कि अब हम अलग रहेंगे।”

“मतलब कि ये सब हम रोक नहीं सकते? लेकिन माँजी को इन सब से बचाने के लिये कुछ तो करना ही होगा”, रश्मि ने कहा। 

“कुछ नहीं हो सकता, चलो सो जाओ! बहुत रात हो गयी है”, सोनू ने कहा। लेकिन आज रश्मि की आंखों से नींद गायब थी। उसके आँखों के सामने सासूमाँ का ही चेहरा घूम रहा था वो खुद को लाचार महसूस कर रही थी।

अगली सुबह रश्मि अपनी सास के पास उनके कमरे में गयी और कहा, “मां एक बात कहनी थी अपने मन की कि मेरा आप का रिश्ता सास बहू का है लेकिन मैं मन से आप को अपनी मां के सामान ही प्यार करती हूं।” अनुपमा जी रश्मि को देख रहीं थी।

तो रश्मि ने कहा, “माँ आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं? आखिर कब तक आप पापा के अत्याचार को बर्दाश्त करेंगी। अपने लिए आप को ही आवाज़ उठानी होगी, अब भी देर नहीं हुई। कहते हैं कि जब जागो तभी सवेरा। आप कोशिश तो कीजिये। हम औरतें कमजोर नहीं होते माँ, अगर हम परिवार के सम्मान और एकता को बनाये रखने के लिए चुप रह सकते हैं तो अपने आत्मसमान के लिए चुप्पी को तोड़ भी सकते हैं। चलती हूँ माँ, लेकिन एक बात हमेशा याद रखियेगा कि आपकी ये बेटी अब आपका अपमान देख कर चुप नहीं रहेगी।” इतना कह के रश्मि वहाँ से चली गयी।

अनुपमा जी अभी भी शांत ही रही। बाहर नए साल का जश्न पूरे शबाब पर था और भीतर अनुपमा जी गहन विचार में थीं। उनके अंदर समुंदर की लहरों सा तूफान चल रहा था या कहें कि किसी तूफान के आने से पहले की शांति अनुपमा जी के चेहरे पर थी जिसे सब नहीं समझ पा रहे थे। 

दोपहर को सभी नए साल के जश्न और अनुपमा जी के जन्मदिन की पार्टी की तैयारियां कर रहे थे। तभी अनुपमा जी के पति सुरेश जी ने अनुपमा साड़ी ला के दी और कहा, “ये साड़ी पहनना जन्मदिन पर। थोड़ी देर बाद रश्मि आयी और उसने भी एक साड़ी दी और कहा, “माँ आप ये पहनना। उन्होंने दोनों साड़ियां रख लीं।”

रात को सब अनुपमा जी का इंतजार कर रहे थे क्योंकि वो घर में नहीं दिख रही थीं। सभी परेशान थे कि आखिर गयी कहाँ? आसपास के रिश्तेदार और करीबियों को फ़ोन कर के पूछ लिया गया था। तभी रात 10 बजे के वक़्त जब अनुपमा जी घर आयी तो सब उनको देखते ही रह गए। अनुपमा जी ने अपनी पसंद की लाल साड़ी से मैच करते जेवर पहने थे लाल लिपिस्टिक भी लगा रखी थी। 

तब रश्मि ने कहा, “माँ आप तो बहुत सुंदर दिख रही हैं। कहाँ चली गयी थीं? हम सब आप को ढूँढ़ रहे थे। अच्छा चलिये पार्टी मनाते हैं।”

तब अनुपमा जी ने कहा, “तुम चलो, मैं अभी कमरे से होकर आती हूं।”

थोड़ी देर बाद सुरेश जी भी बाहर से आ गए और पूछा, “सोनू! तुम्हारी माँ का कुछ पता चला?”

“हाँ! बाबूजी अंदर कमरे में हैं”, सोनू ने कहा।

सुरेश जी ने गुस्से में अनुपमा जी को आवाज़ दी।अनुपमा जी अपने चिरपरिचित अंदाज में शांति से बाहर आयी। अनुपमा जी को देखते ही सुरेश जी का पारा और चढ़ गया और गुस्से से बोले, “ये क्या हुलिया बनाया है? और तुम्हारी इतनी हिम्मत बिना मुझसे पूछे कहाँ गयी थीं?” कहते हुए उनको गालिया देना शुरू कर दीं।

तभी अनुपमा जी ने कहा, “अब बस! इतनी ही नहीं इससे भी कहीं ज्यादा गालियां मुझे आती हैं और मैं गूँगी नहीं हूँ आपको वो गालियां दे भी सकती हूं, बस मेरे संस्कार मुझे ऐसा करने से रोक देते हैं”, और एक पेपर, पेन सुरेश जी के हाथ में देते हुए कहा, “ये लीजिये साइन कीजिये।”

सुरेश जी के चेहरे का रंग उड़ चुका था क्योंकि30 साल की शादी में आज अनुपमा जी ने बोला था और वो भी तलाक के पेपर के साथ। पेपर देखते ही सुरेश जी ने कहा, “पता है ज़माना ऐसी औरतों को क्या कहता है?”

तब अनुपमा जी ने कहा, “कौन जमाना? मैं किसी ज़माने को नहीं जानती?”

“अच्छा! तो अब ज़माने का भी पता नहीं? कहाँ जाओगी? कौन रखेगा?” सुरेशजी ने कहा

“जी सही कहा आप ने। बचपन से आजतक यही डर था कि कहाँ जाऊँगी? क्या करूँगी? कैसे जीऊँगी? ज़माना क्या कहेगा?” अनुपमा जी ने कहा। 

“कभी माता पिता की खुशी के खातिर जमाने का डर फिर लड़की है तो ज़माने का डर, पति ने तलाक दे दिया तो ज़माना क्या कहेगा का डर? ऐसे ना जाने कितने अनगिनत डर जमाने ने महिलाओं के लिए बना रखे हैं।

लेकिन यही ज़माना जिस के डर से पता नहीं कितनी अनुपमा हर रोज घरेलु हिंसा का शिकार होती हैं फिर भी चुपचाप सहती रहती हैं औऱ मुस्कुराते रहती हैं। लेकिन ये जमाना कभी उनकी कोई मदद नहीं करता।

रश्मि के सामने जो आपने जो थप्पड़ मुझे मारा, उसने पूरे 30 साल के थप्पड़ याद दिला दिए मुझे।  मेरे आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान को झकझोर कर रख दिया कि आखिर क्यों सह रही हूं मैं? और फिर रश्मि की बातों ने मुझे मजबूत बना दिया। रश्मि की कही बात कि औरत को खुद की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती हैं, बिल्कुल सत्य है। मेरी जिंदगी के आज तक के सभी फैसले औरों ने लिया।लेकिन आज मैं पहली बार अपना फैसला खुद लूंगी।”

तभी सुरेश जी ने गुस्से से हाँथ उठाया, “तेरी इतनी हिम्मत कि मुझ से जुबान लड़ाए?”

लेकिन आज अनुपमा जी ने सुरेश जी का हाथ पकड़ लिया और कहा, “मैंने कहा ना अब बस, हाथ उठाना मुझे भी आता है।”

“अच्छा! निकल जा अभी इस घर से देखता हूँ पैसे कहाँ से आते हैं और कौन रखता है? मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं।”

तभी सोनू ने कहा, “रूकिये बाबू जी! छोड़िये माँ को। मैं और माँ साथ रहेंगे। हमेशा से ही इसी पैसे और प्रोपर्टी का घमंड आप को था और आज भी है। रहिये आप अपनी प्रॉपर्टी और पैसों के साथ मैं  अपनी माँ के साथ हूं। उनको तो ये फैसला बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था लेकिन कोई बात नहीं  अभी सही। जीवन मे जब जागो तभी सबेरा”, और अनुपमा जी को एक तरफ सोनू तो दूसरी तरफ से रश्मि ने पकड़ लिया।

तभी अनुपमा जी ने रश्मि के पास से कहा, “बहु! मेरा साथ देने के लिए और हिम्मत बढ़ाने के लिए शुक्रिया बेटा”, और रश्मि को अपने गले से लगा लिया। 

दोस्तों आज भी ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो हर रोज घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। लेकिन कभी आवाज नहीं उठातीं सिर्फ इस डर से की ज़माना क्या कहेगा? इन सब से ऊपर उठ के हमें गलत के लिए आवाज़ उठानी चाहिए और हर महिला को एक दूसरे का साथ देना चाहिए।

मूल चित्र : Screenshot of Juice, YouTube

 

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