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हेवी सिल्क, शिफॉन और चंदेरी साड़ियाँ उसने उन्हें दी थीं लेकिन वे कभी फटी जींस में और कभी अन्य आधुनिक पोशाकों में ही नजर आती थीं।
बहुत देर से बालकनी में बैठी सीमा मन ही मन खुद पर नाराज़ हो रही थी कि उसे क्या होता जा रहा है कि वह हर बात का बुरा मान जाती है। कुछ भी अच्छा नहीं लगता। इतनी नकारात्मक तो वह कभी नहीं थी। अब क्या हो गया? वह क्या बताए?
उसे अपने बच्चों व पूरे समाज से शिकायतें ही शिकायतें थीं। ना तो उसे अपनी बेटी व बहू के कपड़े पसंद आते थे और ना ही रहन-सहन। कितनी ही हेवी सिल्क, शिफॉन और चंदेरी साड़ियाँ खुद उसने उन्हें दी थीं लेकिन फिर भी वे कभी फटी जींस में और कभी अन्य आधुनिक पोशाकों में ही नजर आती थीं।
नौकरानी के न आने पर घर में कुछ बनाने का मन हुआ तो बना लेती थीं, नहीं तो स्वीगी या जोमैटो थे ही जिनसे खाना आ जाता था। बेटे ने भी अपने पिता के समान धीर गंभीर व्यक्तित्व नहीं पाया था।उसका व्यवहार तो पहाड़ी झरने के समान उन्मुक्त था। पार्टियों में नाचना गाना और हँसी मजाक करना उसे बहुत पसंद था।
सीमा घर की सजावट से भी खुश नहीं रहती थी। उसे तो भव्य और आलीशान फर्नीचर से सजा हुआ, भारी परदों व कालीन वाला कमरा ही भाता था पर यहाँ तो कहीं बैठने के लिए लकड़ी का कटा तना रखा है तो कहीं मोटा गद्दा बिछा है। पेपर फ्राई से खरीदे गए महँगे फर्नीचर को देख कर उसे अपनी दादी को दहेज में मिले सामान की याद आ जाती थी। दीवारों पर लगी पेंटिंग्स कोई स्पष्ट चित्र नही दिखाती थीं। उसे लगता था इन्हें सब कुछ अनगढ़ ही क्यों पसंद है पर बच्चों के मित्र घर की सजावट की तारीफ करते नहीं थकते थे!
सीमा को बेगम अख्तर, फरीदा खानम और रेशमा की आवाज बहुत भाती थी तो बच्चे सेलेना गोमेज़ और जस्टिन बीबर के दीवाने थे। यही हाल भोजन का भी था। बच्चे हर वक्त कैलोरी नापते रहते थे।इतना खा लिया, तो इतना वर्कआउट करना ही पड़ेगा।
पूड़ी, पराठे से तो परहेज था ही। सब फिगर कांशियस थे। उनके जॉब की भी यही माँग थी स्मार्टनेस। एक हद तक तो ठीक था पर फिर भी कभी कभी तो तला भूना खा सकते थे, पर नहीं। क्या मजाल है कि रसोई देशी घी की खुशबू से महक जाय, बच्चों को तो ऑलिव ऑयल ही भाता था।
हमेशा से संतुलित व्यवहार करने वाली सीमा कभी-कभी बहुत खीज उठती थी। क्या हो गया है आज कल की जेनरेशन को? कुछ भी ढंग का पसंद ही नहीं और तो और इनकी पार्टियों में भी सभी मित्र घर से एक-एक डिश बनाकर ले आते थे और किसी एक के घर में बैठकर मिलजुल कर खा लेते थे। यह भी कोई पार्टी हुई? सीमा की पार्टियाँ जान-पहचान वालों में मशहूर रहा करती थीं। ना जाने कहाँ से खोज-खोज कर रेसिपी लाती थी और प्यार से अनेक व्यंजन बनाकर सबको जिद करके खिलाती थी।
उन्मुक्त व्यवहार वाले बच्चों के मित्र सीमा की गंभीरता की चिंता किए बिना उससे भी इतराते रहते थे। कभी लड़कियाँ सीमा की साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए कहती थीं, “आंटी यू आर लुकिंग गॉर्जियस”, तो कभी पूछती थीं, “इतनी अच्छी स्किन के लिए आप क्या लगाती हैं?” सीमा को बच्चों का उन्मुक्त व्यवहार बहुत भाता नहीं था पर सभ्यता के कारण उसे मुस्कुराना पड़ता था।
रात हो गई थी इसलिए सीमा उठकर अपने कमरे में सोने आ गई और हमेशा की आदत के अनुसार ट्रांजिस्टर पर विविध भारती पर पुराने गानों का कार्यक्रम सुनने लगी। अपनी पसंद के गाने सुनकर उसके दिमाग की नसें थोड़ी ढीली पड़ीं।
तभी गाना बजने लगा, “आगे भी जाने ना तू पीछे भी जाने न तू, जो भी है बस यही एक पल है।” सीमा गाने के साथ-साथ खुद भी गुनगुनाने लगी। गीत में एक पंक्ति आई, “इस पल के होने से दुनिया हमारी है।”
सीमा एकदम से चौंकी क्योंकि पहले कभी इस पंक्ति पर ध्यान दिया ही नहीं था। आज इसका अर्थ समझ आया। सच ही तो है जीवन के कुछ पल या वर्ष ही ऐसे होते हैं जिनमें व्यक्ति इच्छा के अनुसार कार्य करता है। उन वर्षों के निकलने के बाद तो जीवन से समझौता करना ही रह जाता है। अब वह समझ गई कि क्या खोने से वह सबसे नाराज़ रहती है।
अपने से पहले वाली पीढ़ियों के समान उसने भी जीवन के वे पल खो दिए जो स्वर्णिम थे। अब उसकी संतान के वे पल चल रहे हैं, जिनकी वजह से दुनिया आज उनकी है। आज सीमा के हृदय से बोझ हट गया। वह समझ गई कि जीवन की यही रीत है। कुछ ही वर्ष ऐसे होते हैं जिनमें इच्छा अनुसार कार्य किए जा सकते हैं।
उन वर्षों में ही दुनिया उस आयु वर्ग की होती है इसलिए व्यर्थ की निराशा छोड़कर और बीते हुए समय को याद ना करते हुए उसे भी आराम से जीवन बिताना चाहिए। हमेशा से यही होता चला आया है कि हर पीढ़ी की दुनिया कुछ वर्षों के लिए होती है। अब दुनिया उसके बच्चों की है इसलिए उसे खुशी से उसे बच्चों को सौंप देना चाहिए।
मूल चित्र : Suprabhat Dutta from Getty Images via Canva Pro
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