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होने लगा है जिस पल से मुझको खुद में तेरे होने का एहसास। मैं खो सी गई। मैं, मैं न रही, बस तू ही मुझमें, बस तू ही ख़ास।
होने लगा है जिस पल से मुझकोखुद में तेरे होने का एहसास।मैं खो सी गई। मैं, मैं न रही,बस तू ही मुझमें, बस तू ही ख़ास।
मेरे अन्तर्मन की गहराई में कभीबहती नदिया की अविरल धारा।और कभी लहरों का तूफान लेकरसागर समा जाता सारा।
जैसे बसन्त के आने परधरती करती अपना श्रंगार।तेरे एहसास की आहट से,बज उठता मन का तार-तार।
बार-बार ये करता प्रश्न,मेरा एकाकी और शंकित मन, कौन हो तुम? कहाँ से आए?बसन्त हो तुम या हो सावन?
निरंतर समाते जा रहे हो,मेरे हृदय के धरातल में।मैं मौन खड़ी सकुचाई सी,सिमट रही बस आँचल में।
यूँ ही सदा छाए रहना तुम,जीवन में मेरे ऋतुराज बसन्त।मदमस्त, बेफिक्र, अल्हड़ सीतितली सी उडूँ जीवन-पर्यन्त।
मूल चित्र : Rahul Pandit from Pexels
Samidha Naveen Varma Blogger | Writer | Translator | YouTuber • Postgraduate in English Literature. • Blogger at Women's Web- Hindi and MomPresso. • Professional Translator at Women's Web- Hindi. • I like to express my views on various topics read more...
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