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स्त्री खुश है या नहीं, कोई मायने नहीं रखता। आज भी स्त्री, गृहस्वामिनी की खुशी या दुख से, किसी को, कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
स्त्री खुश है या नहीं, कोई मायने नहीं रखता। आज भी स्त्री, गृहस्वामिनी की खुशी या दु:ख से, किसी को, कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
एक स्त्री,समाज की नज़रों में गृहस्वामिनी,निरंतर तलाशती रहती है,अपनी जगहपति के दिल,घर के कोने में,बच्चों और दुनिया की,नज़रों में।
यह इस पुरुषप्रधान समाज पर निर्भर है,कि स्त्री को क्या जगह दी जाएगी?यदि सब उससे खुश हैं,तो वह देवी बना दी जाएगी।और यदि तिल मात्र भी नाराज़ हैं,तो स्त्री जाति पर, दाग बता दी जाएगी।सीधे-सपाट शब्दों में कहूँ,तो उसकी औकात बता दी जाएगी।
स्त्री खुश है या नहीं,कोई मायने नहीं रखता।आज भी स्त्री, गृहस्वामिनीकी खुशी या दु:ख से,किसी को, कोई फ़र्क नहीं पड़ता।वह हमेशा तलाशती रहती है,अपनी जगह,अपना अस्तित्व,अपने और अपनों के मन में।
मूल चित्र : James Ranieri via Pexels
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