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गौरी ने अपनी बेटी को कभी अपना दर्द ना बताया था, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि बेटी की खुशियों में मां के दर्द का साया भी पडे़।
गौरी, यही नाम था उसका। वह मां बाप की इकलौती संतान थीं। उन्होंने बड़े प्यार से उसका नाम गौरी रखा था। मां बाप की जिंदगी की रौनक थी गौरी। जब उसने चलना शुरू किया था, तो पूरे आंगन में चिड़िया की तरह चह-चहाती फिरती थी।
पर जब गौरी 6 साल की ही थी तभी एक दिन बाप का साया उसके सिर से हमेशा के लिए उठ गया था। वह तो इतनी छोटी थी कि कुछ समझ भी ना पाई थी। महीनों मां से पूछती रही कि मां, पापा कब आएंगे।
बाप के जाने के बाद भरे-पूरे परिवार में भी अकेली हो गई थी मां-बेटी। जब तक दादा थे, प्यार से सिर पर हाथ भी रख देते थे पर ताऊ और चाचा ने कभी यह जहमत भी नहीं उठाई थी।
जैसे-जैसे गौरी बड़ी हो रही थी, उसे अपनी महरुमियों का अहसास होने लगा था। उसे बुरा लगता, जब उसकी मां सारा दिन घर का काम भी करती। और उसके बाद ताऊ और चाचा के परिवार के एहसानों के तले दबी रहती।
पहले वह मां से पूछ भी लेती थी कि मां यह तो हमारे अपने हैं। ये लोग हमसे बाहर वालों जैसा बर्ताव क्यों करते हैं। पर तब मां दुखी होकर उसे समझाते हुए बोलती थी कि यही क्या कम है बेटा कि मुझ विधवा और उसकी एक बेटी को यह लोग “दो जून की रोटी, तन ढकने को कपड़ा और एक छत दिए हैं नहीं मैं तुझे लेकर कहां जाती। उसके बाद गौरी ने अपनी मां से कभी कुछ न पूछा था।
और जब अठारह साल की ही हुई थी गौरी। तभी ताऊ और चाचा किसी तरह उसकी शादी करके अपने फर्ज से मुक्त हो लिए थे।
18 साल की दुबली पतली सुंदर सी गौरी जब ससुराल आई तो पति कुछ दिन तो आगे पीछे घूमता रहा पर फिर रोज-रोज मां-बहन के तानों से और जिम्मेदारियां गिनाने से वह तंग आकर उससे दूर हो गया था। पति भी क्या करता उसके परिवार में मां-बाप, एक छोटी बहन, एक छोटा भाई और एक बड़ी शादीशुदा बहन जो अपने ससुराल में कम मायके में ज्यादा पाई जाती थी। उन सब की जिम्मेदारी उसी के ऊपर थी,और अब तो बीवी भी आ गई थी। और वह वही जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में कहीं गुम होता चला गया था।
गौरी भी सब्र और संतोष पहले से ही सीख कर आई थी। वह भी घर के कामों और जिम्मेदारियों मे बंध गई थी। और वह करती भी क्या, जो ख्वाब और जो खुशियां एक लड़की शादी के बंधन में बंधने के पहले देखती है। वह बस कुछ दिन के लिए ही गौरी की जिंदगी में आई थी।
यहां भी उसे “दो जून की रोटी, तन ढकने को कपड़ा और रहने को छत मिल गई थी। पर ना मिला था, तो वह थोड़ा सा प्यार। जिसकी उम्मीद उसे अपने पति से थी पर पति तो जिम्मेदारियों के बोझ के तले ऐसा दबा की भूल गया, कि उसी घर में उसकी पत्नी भी रहती है और उसकी भी कुछ जरूरतें होंगी।
इसी बीच गौरी एक बेटी की मां बन गई थी। तब सास और ननदे ऐसे दुखी हुई थी कि कोई पहाड़ उनके सिर पर गिर गया हो। उसके बाद भी गौरी दो बार पेट से हुई थी। पर सास और ननदों ने उसके न चाहते हुए भी पहले से ही पता करा लिया था कि बेटी है और उसे दवा खिला दी थी। तब उसने अपना दुख एक बार पति से कहा भी था, पर पति ने यह कहकर टाल दिया था कि तुम क्या चाहती हो मैं पूरी जिंदगी पहले बहन की शादी फिर बेटियों की शादी करता रहूं।
उसके बाद से गौरी अपने पति से कभी कुछ ना बोली थी। खुद में ही घुटती रहती थी। पर हां ईश्वर ने एक एहसान उस पर जरूर किया था कि उसके बाद फिर वह कभी पेट से ना हुई थी।
गौरी भी अपने बेटी को पालने पोसने में लग गई थी। कर भी क्या सकती थी, जो पति इतने दुख में भी कभी उसका सहारा ना बना था। अरे उसने तो कभी वक्त निकालकर गौरी से प्यार भरी दो बातें भी ना की थी। कभी उसके साथ बैठकर अपने लिए या अपनी बेटी के लिए कुछ सपने भी न संजोये थे कि गौरी उसी पलों से अपने दिल को तसल्लीयां दे लेती।
शादी के पहले गौरी ने भी जिंदगी को लेकर बड़े सपने बुने थे पर पति ने इतने सालों में उस पर मोहब्बत भरी एक निगाह भी ना डाली थी। शायद उसी प्यार में वह सारी थकान और उस दर्द के अहसास को भूल जाती पर अब तो बहुत देर हो गई थी।
अब तो गौरी के दिल के अरमान भी बुझ गए थे। उसने अपने दिल का दर्द, मन की पीड़ा को अपने दिल में कहीं बंद कर दिया था। और वह दिल का दर्द वो यातनाएं भी दिल में नासूर बन गई थी। पर गौरी ने अपनी बेटी को कभी अपना दर्द ना बताया था, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि बेटी की खुशियों में मां के दर्द का साया भी पडे़।
और फिर बेटी के शादी के बाद से गौरी बीमार रहने लगी थी। एक दिन उसे ज्यादा दिक्कत थी। तब पति ने कहा कि बेटी की शादी की थकान की वजह से है और उसे दर्द की दवाइयां लाकर दे दी थी और बोला था कि कल अस्पताल चलेंगे। पर दूसरे दिन सुबह ही गौरी के दिल में बड़ा दर्द उठा और वह पसीने से डूब गई थी। किसी तरह कांपते हुए पति के पास आई और उसका हाथ पकड़ते ही झूल गई थी।
आज पति ने उसे अपनी बाहों में उठाया था और अस्पताल की तरफ भागा था। पर वह तो आज अपने दिल में दफन दर्द से हमेशा – हमेशा के लिए आजाद हो गई थी।
मूल चित्र : Photo Grapher via Pexels
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