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प्रेम आवेश में, मुक्त परिवेश में, पावनी बढ़े है, पावन प्रदेश में नदी - नारी और प्रकृति की उपेक्षा संबंधी विचार मंथन और परिणाम विनाश।
प्रेम आवेश में, मुक्त परिवेश में, पावनी बढ़े है, पावन प्रदेश में नदी – नारी और प्रकृति की उपेक्षा संबंधी विचार मंथन और परिणाम विनाश।
प्रेम आवेश में।मुक्त परिवेश में।पावनी बढ़े है,पावन प्रदेश में।
थिरकती है कभी।मटकती है कभी।झर-झर झरना बन,बरसती है तभी।
दंभ पुरुषत्व का।अंभ बाँध बँधता।अवरुद्ध हेतु खुद,लो स्तंभ बनता।
थाह आंकते हो।खूब झांकते हो।संवेदनाहीन,मगर हांफते हो।
इस प्रेम पाश में।बंध भुज पाश में।विस्मित हृदया वोघिर काल पाश में।
कटु शिला घात से।जगी ज्यों रात से।आंचल समेटतीचाल, चक्रवात से।
सब समझ बूझ कर।शुद्ध रौद्र रूप धर।बढ़ी उसी ओज सेफिर पूर्व पथ पर।
प्रहारी वो नहीं।संहारी वो नहीं।कारण तुम्हीं एकअपकारी वो नहीं।
नदी, नारी, प्रकृति।उपेक्षा अस्वीकृति।सम्मानित है गरजागृति, अलंकृति।
मूल चित्र : Nav Photography Via Pexels
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