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ऋतू बहु अपने गहने तो निकालो सारे के सारे। रेखा देख के पसंद कर लेगी उसे क्या क्या लेने हैं। क्या फ़र्क पड़ेगा भाभी की अलमारी में है या नन्द के?
आज ऋतू बेहद ख़ुश थी मौका भी ऐसा ही था। आज उसकी शादी अतुल से हो रही थी। वैसे तो ऋतू और अतुल की शादी अर्रेंज मैरिज थी, लेकिन सगाई के बाद दोनों बातों बातों में ही एक दूसरे को पसंद करने लगे थे।
मायके की दहलीज़ से विदा लें ऋतू अपने पति संग ससुराल आ गई। ऋतू के मायके वाले बहुत अमीर तो नहीं लेकिन खाते-पीते घर के थे और अकेली बेटी होने के कारण उसके पापा ने कोई कमी नहीं रखी थी। ऋतू को गहने भी अच्छे दिलवाये थे उसके पापा-मम्मी ने।
ससुराल में सास-ससुर के अलावा जेठ-जेठानी और एक छोटी नन्द रेखा और एक शादीशुदा बड़ी नन्द थी। खुब धूमधाम से ऋतू का गृहप्रवेश हुआ। अगले दिन सासूमाँ कमरे अपनी दोनों बेटियों के साथ कमरे में आ ऋतू की अटैची खोल सारी साड़ियां देखने लगी। ऋतू चुपचाप कोने में खड़ी माँ बेटी को देखे जा रही थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था ये हो क्या रहा है? ऋतू के कपड़ो में से पांच-दस भारी साड़ियों को दोनों नन्दो और सासूमाँ ने छांट कर अलग कर लिया।
“ऋतू ये साड़ियां रेखा को पसंद आ गई हैं, तो इसे मैं लें जा रही हूँ”, इतना बोल सासूमाँ कमरे से निकल गई।
उन्हें साड़ियां ले जाता देख ऋतू हतप्रभ रह गई। कितने प्यार से एक-एक साड़ियां उसके लिये उसके मम्मी-पापा ने खरीदी थीं। इतनी सुन्दर साड़ियां एक झटके में वे ले गईं। पूछा तक नहीं? दिल तो किया उनके हाथों से वापस ले ले, लेकिन दो दिन पहले आयी बहु को क्या ये शोभा देता? ये सोच चुप लगा गई ऋतू लेकिन दिल बहुत दु:खी हो गया।
कुछ समय बाद साड़ियों की बात दिल में दबा धीरे-धीरे ऋतू भी ससुराल के तौर तरीकों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करने लगी। कुछ समय बाद रेखा की शादी पक्की हो गई। घर में तैयारी भी शुरू हो गई। शादी से एक महीने पहले सासूमाँ और ससुरजी रेखा के साथ ऋतू के कमरे में आ गए।
“ऋतू बहु अपने गहने तो निकालो सारे के सारे। रेखा देख के पसंद कर लेगी उसे क्या क्या लेने हैं और हाँ वो तुम्हारे तिलक पर जो चाँदी के ग्यारह बर्तन पान सुपारी चढ़े थे, वो सब का सब निकाल देना। अब घर में चीज़ें पड़ी हैं, तो क्या बाज़ार जायें लेने? और क्या फ़र्क पड़ेगा भाभी की अलमारी में है या नन्द के?”
अब ऋतू का सब्र ज़वाब दे गया, “फ़र्क पड़ेगा माँजी! बहुत फ़र्क पड़ेगा। ख़ास कर मुझे बहुत फ़र्क पड़ेगा। एक-एक चीज़ मेरे पापा ने अपने गाढ़ी मेहनत के पैसों से अपनी बेटी के लिये ली है ना कि आपकी बेटी के लिये।”
“इतने तो गहने दिये हैं तेरे पापा ने बहु। दो-चार देने से क्या घट जायेंगे? तुझे और बनवा देंगे हम।” तुनक के सासूमाँ ने कहा।
“माफ़ कीजियेगा माँजी लेकिन अगर गहने बनवाने ही हैं, तो रेखा दीदी के लिये बनवाओ आप। वो आपकी बेटी हैं। मेरे गहने मेरे पापा ने मेरे लिये दिये हैं जो कि मैं नहीं दूंगी। मेरी साड़ियां तो आप सब ने लें ली लेकिन अब गहने मैं नहीं दूंगी।”
ऋतू की बातें सुन घर में हंगामा मच गया। तुरंत अतुल को बुलाया गया। सारी बात सुन अतुल भी आ ऋतू को समझाने लगा, “गहने दे दो ऋतू, फालतू में घर में कलेश हो रहा है।”
“कलेश मैं नहीं तुम्हारी मम्मी कर रही हैं अतुल। ज़रा सोचो एक लड़की को उसके घर वाले कितने प्यार से तोहफ़े-गहने शादी में देते हैं। वो सिर्फ लड़की के सिर्फ साज-श्रृंगार के लिये नहीं होते, बल्कि बुरे वक़्त पर काम आने के लिये भी होते हैं। मेरे पापा ने मेरे भविष्य को सुरक्षित करने के लिये ये स्त्रीधन अपनी बेटी को दिया है। अब आप सब की बारी है। आप अपनी बहन को उसका हक़, उसका स्त्रीधन दे इस घर से विदा करें। मेरे गहनों पर सिर्फ मेरा हक़ था और रहेगा।”
अतुल तो पहले से ही जान रहा था ऋतू के गहने ले रेखा को देना गलत है, लेकिन अब ऋतू के साफ रुख देख अतुल ने भी अपने मम्मी-पापा को कह दिया, “अब कोई फायदा नहीं है। ऋतू गहने नहीं देगी। आप रेखा के नये बनवा दीजिये।”
कुछ महीनों तक सास-ससुर ने अपनी नाराजगी ऋतू को दिखाई लेकिन ऋतू को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसे तो ख़ुशी थी उसके गहने जो उसके पास थे।
प्रिय पाठकगण, शादी में मिले गहने और सामान पर सिर्फ दुल्हन का ही हक़ होता है। भाभी के गहने और सामान नन्द को देना बहुत ही गलत रिवाज़ है। दुल्हन के गहने सिर्फ गहने नहीं, उसका स्त्रीधन भी होता है जिसपर सिर्फ नई दुल्हन का ही अधिकार है।
मूल चित्र : Photo by Farddin Protik from Pexels
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