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बहु तुम्हारा लंच बॉक्स अब मैं पैक करुँगी…

क्यों बहू मेड की क्या ज़रुरत है? वैसे हम कुल मिलाकर चार लोग ही तो हैं और हाँ हम मेड के हाथों का बना हुआ खाना नहीं खा सकते।

क्यों बहू मेड की क्या ज़रुरत है? वैसे हम कुल मिलाकर चार लोग ही तो हैं और हाँ हम मेड के हाथों का बना हुआ खाना नहीं खा सकते।

ऑफ़िस में जैसे ही स्वाति ने अपना लंच बॉक्स खोला तो उसके आँखों में आँसू आ गए। माँ का चेहरा आँखों के सामने घूम गया। शादी से पहले उसकी माँ जब उसका लंच बॉक्स तैयार करती थी तो इस बात का ज़रूर ख़्याल रखती कि  रोटी सब्ज़ी के अलावा थोड़े फल और सलाद भी उसमें रख दें पर शादी के बाद कितना कुछ बदल गया। सुबह जल्दी जल्दी उठकर सारे लोगों का नाश्ता बनाना पड़ता है और फिर अपने पति रवि का लंच बॉक्स भी तैयार करना पड़ता है। इस भाग दौड़ में स्वाति अपने लंच बॉक्स में बचा खुचा खाना ही रख पाती है।

स्वाति ने भारी मन से उन रोटियों के कोरों को निगला पर उसकी क्षुधा शांत न हो सकी। स्वाति सोचने लगी कि ये दोहरी ज़िम्मेदारी कहीं उसके सेहत पर ही न भारी पड़ जाए।

“माँ जी हम खाना बनाने के लिए एक मेड क्यों नहीं रख लेते हैं?”

“क्यों बहू मेड की क्या ज़रुरत है? वैसे हम कुल मिलाकर चार लोग ही तो हैं। और हाँ हम मेड के हाथों का बना हुआ खाना नहीं खा सकते। तुमसे काम नहीं हो रहा तो छोड़ दो। मैं ख़ुद खाना बना लूँगी, वैसे भी इन बूढ़े हाथों में अब भी  इतना तो दम है कि अपने परिवार के लिए रोटियाँ बेल सकूँ”, स्वाति की सास ने स्वाति को ताना देते हुए कहा।

स्वाति ने जब रवि से इस सिलसिले में बात की तो वो हत्थे से ही उखड़ गया और गुस्से में बोला, “मेरे सारे दोस्तों की पत्नियाँ भी तो ख़ुद ही खाना बनाती हैं। फिर तुम्हें इतनी थकान कैसे हो जाती है? वैसे भी तुम औरतें ऑफ़िस में कितना काम करती हो हम मर्दों को सब पता है।”

रवि और सास की बातें सुन स्वाति चुप हो गई पर घर परिवार संभालते संभालते उसके सेहत में गिरावट आने लगी। हमेशा चहकने और खुश रहने वाली स्वाति उदास और थकी थकी रहने लगी। एक दिन वो घर में चक्कर खा कर गिर पड़ी। रवि तुरंत ही उसे डॉक्टर के यहाँ ले गया।

सास ससुर को तो लगा कि बहू माँ बनने वाली है।

“क्यों डॉक्टर साहब कोई खुशखबरी है क्या?”

“खुशखबरी? अपनी बहू का ब्लड रिपोर्ट देखा है आपने? खून की कितनी कमी है उसको। उसकी हालत देख कर ऐसा लग रहा है मानो किसी क़ैदख़ाने में थी वो।”

सास ससुर और रवि डॉक्टर की बात सुन काफ़ी शर्मिंदा हो गए। उधर जब रवि की बहन को पता चला तो वो तुरंत पहुँच गई भाभी से मिलने।

“माँ क्या हुआ भाभी को?”

“वो उसको खून की काफ़ी कमी हो गई थी इसलिए चक्कर खा कर गिर गई।”

“रवि तुमको स्वाति का ख़्याल रखना चाहिए था न। तुम उसे  इस घर में अर्धांगिनी बना कर लाए थे न कि नौकरानी। वो तुम्हारी बीवी है और उसकी सारी  ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। और माँ आप? आपने ही न स्वाति को पसंद किया था रवि के लिए। फिर आप क्यों स्वाति के परेशानियों को अनदेखा करती रहीं? स्वाति जॉब करती है माँ। उसके लिए घर और ऑफिस मैनेज करना मुश्किल  होता होगा”,  रवि की बहन माँ भाई को समझाते हुए बोली।

रवि और उसकी माँ को अपनी हरकतों पर काफ़ी ग्लानि महसूस हुई। रवि ने घर में एक मेड रखवा दिया और स्वाति के ठीक होने तक उसकी ख़ूब सेवा सुश्रुता की।

“उफ़्फ़ आज से ऑफ़िस जाना है “, बड़बड़ाते हुए जैसे ही स्वाति रसोई में दाखिल हुई तो चौंक पड़ी।

“ये क्या माँ? आप रसोई में क्या कर रही हैं? ”

“वही जो मुझे पहले करना चाहिए था। रवि और तू तो मेरे बच्चे हैं, अब उन्हें लंच बॉक्स उनकी माँ नहीं देगी तो कौन देगा? पर हाँ ये याद रखना कि सप्ताहांत में तू हमें अच्छे पकवान खिलाना क्यूंकि तेरे हाथों में तो जादू है।”

“ओके माँ! जैसी आपकी मर्ज़ी”,  स्वाति खिलखिलाकर हँस पड़ी।

ऑफ़िस में लंच बॉक्स खोलते समय उसके मन में आज वहीं फीलिंग थी जो माँ के दिए लंच बॉक्स को खोलने में होती थी। इस लंच बॉक्स ने आज स्वाति की सास को उसकी माँ बना दिया।

मूल चित्र : YouTube  

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