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बेटा अगर तुमसे गलती हुयी है तो माफ़ी मांग लो…

रेखा की आँखों से नींद कोसों दूर थी, रात के क़रीब एक बज चुके थे लेकिन रेखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।

रेखा की आँखों से नींद कोसों दूर थी, रात के क़रीब एक बज चुके थे लेकिन रेखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।

वातानुकूलित कमरे में भी रेखा अजीब सी घुटन महसूस कर रही थी। ये उसने माँ जी को क्या अनाप शनाप बोल दिया। कितना बुरा लगा होगा उनको।

वैसे उन्होंने उसे कहा ही क्या था? बस इतना ही कहा था कि कहीं बाहर जाए तो कम से कम रवि या उन्हें कह कर जाए कि वो कहाँ जा रही है? पर उसने ही बेवजह बात का बतंगढ़ बना दिया।

रेखा की आँखों से नींद कोसों दूर था। रात के क़रीब एक बज चुके थे। रेखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। इन बिगड़े हुए हालात को कैसे सुधारे। इसी बेचैनी में उसने अपनी माँ को फ़ोन लगाकर सारी बातें बताई।

रेखा की बातें सुन कर उसकी माँ ने उसे समझाया, “बेटा! ग़लती किस से नहीं होती? अगर तुम्हें लग यहा है कि तुमने गलती की है तो माफ़ी माँग लो। सरला जी और रवि को मैं कई वर्षों से जानती हूँ। मुझे यक़ीन है कि वो तुझे माफ़ कर देंगे।

वैसे मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि दूसरे के चश्मे से दुनिया देखना बंद करो। मैं सब जानती हूँ कि ये सारे खुराफ़ात तेरे दिमाग़ में कौन भरता है। तेरी जो वो सहेली है जो दिन रात ससुराल वालों की बुराई लेकर बैठी रहती है, उसी ने तुझे वरगलाया होगा। लेकिन मैं उसको क्यों कोस रही हूँ? तेरी उम्र नहीं है किसी की बातों में आने की।”

“हाँ माँ! बात तो आप सही कह रही हैं। ”

“देख बेटा, मैं ये नहीं कहती कि हर ससुराल वाले अच्छे ही होते हैं या फिर बुरे होते हैं। मैं तुझे बस ये समझाना चाहती हूँ कि सोच सकरात्मक रखो और दूसरों की नकरात्मक सोच को ख़ुद के रिश्ते पर हावी न होने दो। ज़रूरी नहीं जो दूसरे के घर में हो वही तेरे घर में होगा।”

“तू ठीक कह रही है माँ! मैं ही बेवक़ूफ़ थी जो दूसरों की बातों से इस हद तक प्रभावित हो गई कि अपने भी ससुराल वालों को बुरा समझने लगी और उन की हर बात में मीन मेंख निकालने लगी।”

“बेटा! अगर तू बिना किसी पूर्वाग्रह के, खुले हृदय से ससुराल वालों को अपनाएगी तो जल्द ही तू उस घर की अभिन्न अंग बन जाएगी। और हाँ ! एक बात का ध्यान रखना कि कटु शब्द रिश्ते बनाते नहीं बल्कि बिगाड़ते हैं।”

“माँ! आप सही कह रही हैं।  सच आपसे बात कर के मेरा जी हल्का हो गया। मैं सुबह उठते ही माँ और रवि से माफ़ी माँग लूँगी।”

दूसरे दिन की सुबह ने रेखा के जीवन में सकरात्मक सोच की रौशनी बिखेर दी। रेखा ने सासु माँ और रवि से माफ़ी माँग ली। सासु माँ ने रेखा को गले लगा लिया। रवि भी रेखा में परिवर्तन देख खुश था। आज रेखा समझ चुकी थी कि दूसरे के नज़रिये से ख़ुद के रिश्तों को देखेगी तो रिश्ते धुँधले ही दिखेंगे।

दोस्तों कई बार हम समझदार होते हुए भी अपने रिश्तों को दूसरे के सोच के चश्मे से देखने लगते हैं जिसकी वजह से रिश्तों में कलेश और तनाव उत्पन्न हो जाता है, इसलिए ज़रूरी है कि हम विवेक से काम लें और सकरात्मक सोच बनाये रखें।

मूल चित्र : YouTube 

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