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मैं इस घर की बहू हूँ कोई बंधुआ मज़दूर नहीं…

इतने कहते ही, उसकी सास उस पर बरस पड़ी, "तुझे तो आराम फ़रमाने के बहाने चाहिए बस एक बहाना बना लो और सारा दिन बिस्तर तोड़ो।”

इतने कहते ही, उसकी सास उस पर बरस पड़ी, “तुझे तो आराम फ़रमाने के बहाने चाहिए बस एक बहाना बना लो और सारा दिन बिस्तर तोड़ो।

“सरला सरलाकहाँ हो तुम? अभी तक नाश्ता भी नहीं बना?” बोलते हुए ख़ूब तेज तेज से सरला की सास ने चिल्लाना शुरू किया। 

“ये तो महारानी जी अभी तक सो ही रही हैं लगता।”

इतना सुनते ही सरला कमरे से बाहर आती है और अपनी सास को बताती है कि उसको सर दर्द हो रहा है तेज, वो नहीं खाना बना पाएगी अभी। इतने कहते ही, उसकी सास उस पर बरस पड़ी, “तुझे तो आराम फ़रमाने के बहाने चाहिए बस एक बहाना बना लो और सारा दिन बिस्तर तोड़ो।

इतना सुनते ही सरला का सब्र का बांध आज टूट पड़ा। शादी को 15 साल हो चुके थे, कभी भी सरला काम करने से मना नहीं करती। चढ़े बुख़ार में भी वो घर का सबसे ज़्यादा काम करती, जबकि घर में और दो बहु भी हैं। लेकिन फिर भी सारा दिन चेहरे पर मुस्कान लिए सबकी आव-भगत करती रहती। 

अपने बच्चों को सम्भालती संयुक्त परिवार में भी रहते हुए उसने कभी अपनी देवरानी जेठानी से बराबरी नहीं की। वह सब काम आगे से आगे करने की सोचती और इसी वजह से वो काफ़ी दिनों से अपने सर दर्द की अनदेखी भी कर रही थी लेकिन आज उसे लगा की ये सर दर्द बहुत ज़्यादा ही है मानो जैसे सर में बिजली तड़क रही हो। 

लेकिन परिवार में किसी ने भी उसकी तबियत के बारे में नहीं जानना चाहा। यहाँ तक कि उसका पति विनोद, वो भी उसी पर चिल्लाने लगा, “तुम्हारे होते हुए मेरी माँ काम करेगी? अगर इतना ही आराम करना है तो अपने मायके जाओ, यहाँ क्यों बैठी हो? यहाँ क्या काम है तुम्हारा?

ये सुनते ही मानो सरला ने काली का रूप धर लिया। सरला ने चिल्लाते हुए कहा, “बस विनोद बहुत हुआ और माँ जी आप भी सुन ली जिए। आज तक मैंने कभी किसी से कुछ नहीं कहा। आप लोगों की हर ग़लत बात को भी परिवार समझकर भूल जाना उचित समझा लेकिन अब और नहीं। मैं आपकी बहु और आपकी पत्नी हूँ कोई बंधुआ मज़दूर नहीं, जो जब तक काम करेगी तब तक आप इस घर में रखोगे और अगर किसी वजह से वो काम ना कर पाए तो अपने मायके जाए।

घिन आती है आपकी इस सोच पर। शादी के पंद्रह साल देने के बाद भी मुझे अपने अपने घर का सदस्य नहीं समझा और तो और कम से कम इंसानियत के नाते ही मेरी बीमारी के बारे में पूछ लेते। लेकिन नहीं आपके लिए मेरी बीमारी, बीमारी नहीं सिर्फ़ बहाना है। लेकिन मैं भी अब आपके सामने गिड़गिड़ाने वाली नहीं। 

इस घर की बहु हूँ और यही रहूँगी मेरी तबियत ख़राब होने पर आप लोगों की ज़िम्मेदारी हूँ मैं। मेरी देखभाल करना आपका कर्तव्य है, मायके वालों का नहीं। इस घर के सदस्य होने के अधिकार मुझे भी चाहिएँ।”

ये सुनते ही सरला का देवर बीच में बोल पड़ता है,भाभी की बात तो एकदम सही है। इस घर में जो वर्षों से हो रहा है मैंने सब देखा है लेकिन कभी भी माँ के डर से बोलने की हिम्मत नहीं हुई। लेकिन आज मैं भी भाभी की बात से सहमत हूँ कि उन पर जाने अनजाने कितने जुल्म किए हैं हमने।” 

अपने छोटे भाई के मुह से ये बात सुनते हुए सरला के पति को भी शर्मिंदगी महसूस  हुई और उसने अपनी पत्नी का साथ देना उचित समझा। वो सरला को बोलता है,अब ये लड़ाई झगड़ा सब बंद करो। अभी डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी है। मैं तुम्हें डॉक्टर के यहाँ ले चलता हूँ।”

डॉक्टर सरला का निरीक्षण  करता है और बताता है कि उसे माइग्रेन की बीमारी हुई है। ये सुनते ही सरला का पति बहुत दुखी होता है और सोचता है कि काश उसने अपनी माँ की बातों को नज़र अन्दाज़ कर सरला पर पहले ध्यान दे लिए होता तो वो इस बीमारी से बच सकती थी। लेकिन आज वो ख़ुश भी था क्योंकि पहली बार सरला ने अपने लिए कदम उठाया था जो ज़रूरी भी था। और इसकी वजह से वो सरला की बीमारी के बारे में जान पाया और अब उसका अच्छे से ध्यान भी रख पाएगा।

दोस्तों अपने लिए आवाज़ उठाना ग़लत नहीं है। घर की बहु भी घर का सदस्य है, जो बीमार भी पड़ सकती है या जिसे आराम की भी ज़रूरत हो सकती है। बहु बहु होती है कोई बंधुआ मज़दूर नहीं!

मूल चित्र : YouTube 

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