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बजट 2021 में भी हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कोई प्राथमिकता नहीं दी गयी है

हाल में प्रस्तुत भारत बजट 2021 में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को 137% बढ़ाया गया, लेकिन इसमें मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा नहीं बढ़ा।

हाल में प्रस्तुत भारत बजट 2021 में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को 137% बढ़ाया गया, लेकिन इसमें मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा नहीं बढ़ा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार कोविड महामारी ने पूरे विश्व में 93 प्रतिशत देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं एवं सूक्ष्म मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं में व्यवधान डाला है। 10 अक्तूबर 2020 को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर डब्ल्यू एच ओ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस पहले से ही आर्थिक अभाव झेल रहे सेक्टर में नवीन और अधिक निवेश की आवश्यकता है। 

डब्ल्यू एच ओ  के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “कोविड-19 ने दुनिया भर में मानसिक सेवाओं में ऐसे समय में व्यवाधान पैदा कर दिया है, जब इन सेवाओं की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।”

हाल ही में प्रस्तुत हुए भारत के बजट 2021 में स्वास्थ्य सेवाओं पर ज़ोर देते हुए उनपर होने वाले खर्च को 137% बढ़ाया गया है, ये सराहनीय है लेकिन इसमें से मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा बढ़ाया नहीं गया है, वो अब भी काफी कम है। वित्त मंत्री के दो घंटे लंबे बजट भाषण में एक बार भी मानसिक स्वास्थ्य का ज़िक्र तक नहीं किया गया, ये निराशाजनक है।

महामारी और मानसिक स्वास्थ्य 

महामारी से न केवल बीमारी और मृत्यु आये बल्कि लॉक डाउन के कारण अकेलापन, बेरोज़गारी, अवसाद और बीमारी का डर भी आया। इससे हर आयुवर्ग के लोगों में तनाव और उत्सुकता बढ़ी और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में वृद्धि भी देखी गयी। यही कारण रहा कि 2020 में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सार्वजनिक बातचीत तो काफी होने लगी, लेकिन अफसोस कि बजट और सरकारी नीतियों में इसका उचित प्रभाव देखने को नहीं मिला।

इंग्लैंड और न्यूज़ीलैण्ड जैसे अनेक देशों में स्वास्थ्य ख़ास कर मानसिक स्वास्थ्य को बजटों में प्राथमिकता बनाया गया है। न्यूज़ीलैण्ड में तो इसमें प्राथमिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और आत्महत्या निरोध के लिए विशेष नीतियाँ बनायीं गयी और फण्ड दिए गए। 

डब्ल्यू एच ओ  के आंकड़ों के अनुसार भारत की 7.5 % आबादी पहले ही मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारी से जूझ रही है, 56 करोड़ लोग अवसाद से लड़ रहे हैं और करीब 38 करोड़ एंग्जायटी और इससे जुड़ी अन्य दिक्कतों से। इन संख्यों में बढ़ोतरी के पूरे आसार हैं और सुविधाएँ पहले ही कम हैं।

कोविड महामारी ने इस कमी को और अधिक उजागर कर दिया है। एक सच्चाई ये भी है करीब एक साल से महामारी से जुड़ी सेवाओं में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों को स्वयं भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सहयोग की अपेक्षा होना स्वाभाविक है।  

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इस कार्य के लिए आबंटित ५९७ करोड़ में से बड़ा हिस्सा केवल दो संस्थानों के लिए दिया गया है (निम्हांस और लोकप्रिय गोपीनाथ बारडोली क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान) केवल ७% ही राष्ट्रिय मानसिक स्वास्थ्य प्रोग्राम को मिला है जिसका उद्देश्य हर जान तक सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाना है। 

ये आबंटन किसी भी तरह से ठीक नहीं है। आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना जो विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़वाने के प्रति प्रतिबद्ध है, उसमें भी प्राथमिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कुछ भी अलग से रेखांकित नहीं किया गया है।

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य संस्थागत कमियाँ 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की भीषण कमी है। डब्ल्यू एच ओ के अनुसार न्यूनतम 3 मनोचिकित्सक हर 100,000 व्यक्तियों के लिए होने चाहिए, कुछ यूरोपीय देशों में ये संख्या 6 भी है लेकिन भारत में प्रति 100,000 व्यक्तियों के लिए औसतन 0. 75 मनोचिकित्सक हैं, ये भी राज्यों में अलग -अलग है, मध्यप्रदेश में  0.5% से लेकर केरल में 1.2 तक। हर वर्ष यहाँ केवल 700 मनोचिकित्सा स्नातक होते हैं जबकि इस संख्या को बनाये रखने के लिए ही ये बहुत कम हैं, बढ़ाना तो बहुत दूर की बात है। इनमें से अधिकतर भी बड़े शहरों तक सीमित हैं, तो छोटे शहरों, कस्बों और गाँवों में मनोचिकित्सक की उपलब्धता न के बराबर है। ऐसे में मनोचिकित्सा की पढ़ाई करवाने वाले संस्थानों को भी बढ़ाने के लिए बजट में कुछ भी नहीं दिया गया जो निराशाजनक है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य को क्या चाहिए 

कई शोध ये साबित कर चुके हैं कि देश की स्थिति पर मानसिक बीमारियां सामाजिक एवं आर्थिक असर डालती हैं। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाने, जनता को शिक्षित करने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पर्याप्त निवेश की त्वरित आवश्यकता है। 

सिर्फ बजट 2021 ही नहीं, कोई भी बजट, ख़ास कर जब वो स्वास्थ्य को सबसे बड़ी प्राथमिकता बता रहा हो, मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता। आने वाले समय में मानसिक स्वास्थ्य रोटी, कपड़ा और मकान जैसे ही एक मूलभूत सुविधा बनने वाला है और इस पर सरकार का ध्यान वांछनीय है। 

मूल चित्र : YouTube & ArmOrozco on pixabay

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Pooja Priyamvada

Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...

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