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क्या बच्चे की डिलीवरी के बाद मेरी योनि पहले जैसे हो पाएगी?

डिलीवरी के बाद योनि थोड़ी चौड़ी हो जाती है, इसकी वजह से प्रसव के बाद आपको योनि में ढीलापन महसूस हो सकता है...योनि में आते हैं ये 13 बदलाव। 

डिलीवरी के बाद योनि थोड़ी चौड़ी हो जाती है, इसकी वजह से प्रसव के बाद आपको योनि में ढीलापन महसूस हो सकता है…योनि में आते हैं ये 13 बदलाव।

योनि वह मार्ग है जो वल्वा सेसर्विक्स यूट्री  तक जाता है अर्थात यह औरत के सब प्रजनन अंगों का एक सामूहिक नाम है। कोमल पेशियों (muscles) से ढकी यह योनि, प्रसव के समय इतनी फेल जाती है कि एक सम्पूर्ण जीवन को सुविधाजनक रास्ता दे सके।

योनि औरतों की नव जीवन दायिनी सहेली है। यह सहेली योनि तो, एक औरत को माँ बना कर अपना कर्तव्य पूरा कर देती है। परन्तु क्या हम औरतें इस सखी के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करती हैं? क्या हम अपनी योनि की सुनती हैं? क्या उसका ध्यान रखती हैं? डिलीवरी के बाद योनि में क्या बदलाव होते हैं? क्या डिलीवरी के बाद से योनि में ढीलापन महसूस होता है? डिलीवरी के बाद कितने दिन आराम करना चाहिए?

डिलीवरी के बाद योनि के आकार-प्रकार में होने वाले बदलाव

प्रसव के बाद योनि का आकार-प्रकार सब बदल जाता है। यह बदलाव तकरीबन 6-8 सप्ताह तक ठीक हो जाते हैं परन्तु यह भी सत्य है कि योनि 100% पहले जैसी नहीं बन सकती। क्योंकि अब योनि उस घड़ी की गवाह बन जाती है जिससे एक लड़की, माँ बनने का सफर तय करती है।

इस पोस्ट में हम बात करेगें कि डिलीवरी के बाद योनि में क्या-क्या बदलाव आते हैं? (delivery ke baad yoni) इन बदलावों में से कौन से बदलाव सकारात्मक हैं और किनके प्रति ध्यान देते हुए हमें अपनी योनि का विशेष ध्यान देना चाहिए।

प्रसव के बाद योनी यानि डिलीवरी के बाद योनि में क्या-क्या बदलाव आते हैं (delivery ke baad yoni kaisi ho jati hai)

1. डिलीवरी के बाद सफेद पानी क्यों आता है?

डिलीवरी के कुछ घंटों बाद जब माँ अपने बच्चे के कोमल स्पर्श के साथ-साथ, अपने अंगों को भी महसूस करती है तो सबसे पहले उसे महसूस होता है लगातार रक्त स्राव, जो कि इस स्थिति में नार्मल है। यह बहाव अधिक से, धीरे-धीरे कम होता जाता है। स्राव का रंग गाढ़े गहरे लाल, हल्के लाल, गुलाबी, भूरे रंग से, पीले फिर उत्तरोत्तर सफेद स्राव में बदलता जाता है जो कि सामान्य है।

यही प्रक्रिया तो योनि को साफ और तंदरुस्त रखेगी। परन्तु अगर इस क्रम में गड़बड़ी हो तो अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। शुरु में प्रसव उपरांत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, विशेष तरह के डायपर का ऑप्शन बेहतर है जो कि अस्पताल से आसानी से मिल जाते हैं या बड़े पैड्स  परन्तु यदि रक्त स्राव बार-बार डायपर या पैड बदलने पर भी संभालने योग्य ना हो, या बहुत अधिक तीखी गंध या बदबू की समस्या हो तो डॉक्टर की सलाह आवश्यक है।

2. प्रसव के बाद योनि में ज़ख्म होने पर क्या करें?

प्रसव के दौरान पड़े दबाव, टाँकों के कारण, चिकने स्राव, के कारण वल्वा पर ऊपरी, अंदरूनी भाग के गहरे जख्म बैठने, उठने तथा ब्रेस्ट फीडिंग के समय मुश्किल पैदा करते हैं। यह जख्म दवाई से 3 सप्ताह बाद काफी हद तक ठीक हो जाते हैं। अगर तकलीफ कम होने की बजाय बढ़ती दिखाई दे तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

3.पेरेनियल टेरिंग 

पेरिनियम (perenium)अर्थात मलद्वार(anus) और वल्वा (vulva) के मध्य के क्षेत्र में लगातार दर्द और चुभन महसूस होती है। गंभीरता की दृष्टि से, ये जख्म चार तरह के हो सकते हैं।

प्रथम, यह वह स्थिति है जिसमें प्रसव के बाद टाँके लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और ऐसे जख्म तकरीबन चार हफ़्तों में, डॉक्टर द्वारा बताई गई, दवाई से ही ठीक हो जाते हैं।

द्वितीय, इस स्थिति मेंपेरिनियल मसल्स (perineal muscles) अगर जख्मी हों तो टाँके लगाये जाते हैं। यह पेरिनियल मसल्स मूलाधार के अंदरूनी अंगों को सहारा देते हैं जैसे बच्चेदानी, मलाशय, मूत्राषय आदि, जो कि चार हफ़्तों में ठीक हो जाते हैं।

तृतीय, बच्चे के बड़े आकार के कारण अगरपेरिनियल (perineal) क्षेत्र से लेकर ऐनस (anus) तक ऑपरेट करना पड़े तो ठीक होने में कम से कम 12 सप्ताह लगते हैं।

चतुर्थ, अगर किन्हीं स्थितियों की वजह से पेरिनियल, ऐनस या मूलाधार अंगों के ऊतकों या टिश्यू लाइनिंग को भी नुकसान पहुंचा हो तो इसमें भी ठीक होने में कम से कम 12 सप्ताह लगते हैं।

इन तृतीय, चतुर्थ स्थितियों के जख्म बहुत तकलीफ देते हैं। यह भी सत्य है कि पहले-पहल इनको सहने वाली माँओं के पास आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं परन्तु अब डॉक्टर इन सब हालातों में होने वाली परेशानियों को दूर करने संबंधी सुविधाओं की जानकारी दे देते हैं। तो अंतिम दो हालातों में अपने डॉक्टर के सम्पर्क में रह कर, जल्दी से स्वस्थ हुआ जा सकता है।

4. प्रसव के बाद मल त्याग यापूप  की परेशानी आने पर क्या करें?

पेरिनियल मसल्स के नुक्सान की गंभीरता के साथ नव प्रसूता को मल त्याग करते समय, कम या बहुत अधिक परेशानी झेलनी पड़ सकती है। अगर जख्म अधिक हैं तो इस समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए ताकि टाँकों पर अनावश्यक दबाव न पड़े। इस समय अगर टॉयलेट पेपर से साफ करने की ज़रुरत पड़े तो सॉफ्ट पैड्स का प्रयोग करें। हाथ से भी बाहर से अंदर की तरफ पोंछना ठीक नहीं।

पानी से साफ करने पर से या नम्बिंग स्प्रे से तकलीफ कम की जा सकती है। अगर तो फाइबर युक्त संतुलित भोजन लिया जा रहा है, पीने के पानी की उचित मात्रा ली जा रही है तो मुश्किल कम आती है। परन्तु अगर कब्ज है तो मल को सॉफ्ट करने के लिए डॉक्टर की सलाह से दवाई ली जा सकती है। डायरिया की स्थिति भी मुसीबत खड़ी कर सकती है। तो बस खाने-पीने का ध्यान रखना लाजमी है।

5.पी  या मूत्र त्याग

इस समय मल त्याग से भी गंभीर, मूत्र त्याग करना लगता है। इस परेशानी की गंभीरता पेरिनियल टेयरिंग की गंभीरता पर निर्भर करती है। अगर येएरिया  अधिक जख्मी है तो जितनी बार मूत्र त्याग करने जाएंगे उतनी बार पीड़ा के अति कठिन क्षणों से दो-चार होना पड़ता है।

ऐसे में आजकल सिट्ज़ बाथ, गुनगुने पानी से भरी स्क्वीज़ बोतल, डॉक्टर के बताए नम्बिंग सप्रेस  जैसी सुविधाएं चुभने की तीव्रता को कम कर सकती हैं। कपड़े में बर्फ लपेट कर भी आइस पैक जलन से राहत दिलवा सकते हैं। परन्तु इसमें भी सावधानी आवश्यक है। डॉक्टर की सलाह आवश्यक है।

6. After painsया आफ्टर पेंज़ 

जब तक पेरिनिएल टेयरिंग ठीक नहीं होती। स्कार्ज़  हैं, टाँके घुले नहीं हैं और रक्त स्राव हो रहा है तो प्रसूता या नयी माँ को योनि के अंदर-बाहर दर्द होती रहती है। हल्के गर्म पानी की बोतल के सेंक से दर्द में आराम मिलता है। परन्तु यह सब डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।

 7. क्या डिलीवरी के बाद से योनि में ढीलापन महसूस होता है? (vaginal looseness after delivery in hindi)

प्रसव के बाद योनि के आकार में बदलाव एक प्रसूता आसानी से महसूस कर सकती है। योनि का आकार बड़ा होने की बात पर तकरीबन हर माँ सहमत हो सकती है। परन्तु डरने की बात नहीं क्यूंकि आजकल डॉक्टर हल्की सी टेयरिंग को देखते हुए भी 1-2 टाँके लगा देते हैं तो हर माँ को योनि के आकार में बढ़ोतरी इतनी महसूस नहीं होती। अगर आप और आपका पार्टनर इसको लेकर असहज हैं तो डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है।

8. डिलीवरी के बाद योनि में सूखापन क्यों होता है? (baccha hone ke baad yoni me dryness kyon hoti hai)

डिलीवरी और ब्रेस्टफीडिंग के कारण एस्ट्रोजन लेवल काफी नीचे गिर जाता है जिससे योनि पहले की तरह सेल्फ लुब्रिकेटेड नहीं रहती। यौन संबंध बनाने के समय परेशानी को डॉक्टर की सलाह से ओरल लुब्रीकेंट का प्रयोग कर दूर किया जा सकता है। यह स्थिति ब्रैस्ट फीडिंग  के बाद अपने आप ठीक हो जाती है।

9. वल्वा के रंग में बदलाव

प्रसव के बाद आप या आपका पार्टनर vulva का pigment बदलते हुए देख सकते हैं। प्रसव समय पड़े दबाव, चोट के कारण रंग पहले की तुलना में हल्का सा गहरा हो सकता है। परन्तु यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। शरीर के बाकी बदलाव के साथ-साथ यह बदलाव भी सामान्य है।

10. डिलीवरी के बाद पीरियड कब तक आता है? (delivery ke baad period kab tak aata hai)

डिलीवरी के बाद पीरियड कब तक आता है? प्रसव के बाद के स्राव के ठीक होने के बाद जब तकरीबन महीने बाद पीरियड्स आते हैं तो आपके माहवारी चक्र में थोड़ा सा बदलाव आ सकता है। क्योंकि breast feeding से estrogen का स्तर कम रहता है जिससे पीरियड्स देर से या कम स्राव वाले या पीरियड्स किसी महीने नहीं भी हो सकते हैं।

अगर estrogen स्तर ऊँचा है तो पीरियड्स हैवी भी हो सकते हैं। इस हॉरमोनल बदलाव के समय में तकरीबन ढाई-तीन माह बाद डॉक्टर की सलाह उपरांत अगर आप यौन संबंध बना रहे हैं तो सतर्क रहना आवश्यक है, क्योंकि अभी गर्भधारण से योनि के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं।

11. डिलीवरी के बाद योनि में शिथिलता या कमजोरी (delivery ke baad yoni)

प्रसव के बाद कई माँएं पेल्विक फ्लोर मसल्स (pelvic floor muscles) में कमजोरी अनुभव कर सकती हैं। अर्थात् uterus, bladder, bowel muscles कमजोर होने के कारण अब अधिक देर तक मूत्र को रोकना मुश्किल हो सकता है। एक चौथाई माँएं जोर से हंसने, भागने, कूदने या चलते समय भी अपने आप मूत्र निकल जाने की स्थिति का सामना कर सकती हैं। अच्छा यही है कि अधिक देर तक इन क्रियाओं को ना रोकें।

कीगल एक्सरसाइज़ करें, जिसमें perineal क्षेत्र के muscles को 10-10 सेकंड के लिए सही क्रम से साँस लेते हुए, स्क्वीज़ , होल्ड, रिलीज़ , रिपीट (Squeeze, hold, release, repeat) किया जा सकता है। इसके तीन सेट, 10 बार करना काफी है। परन्तु ये सब भी डॉक्टर की सलाह से ही करें।

12. डिलीवरी के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए? (delivery ke kitne din baad sambandh banana chahiye)

वैसे तो तकरीबन 6-8 सप्ताह बाद ही यौन संबंध बनाने चाहिए। परन्तु हर केस में अलग स्थितियाँ हो सकती हैं तो डॉक्टर की सलाह ले ही लेनी चाहिए। सावधानी, धीरे से इस क्रिया का आनंद लेना ठीक रहेगा।

ताकि किसी तरह की पीड़ा कम से कम हो। क्योंकि टाँके की जगह पर खिंचाव महसूस हो सकता है या lubrication की कमी से भी संबंध बनाने में तकलीफ महसूस हो सकती है। जो कि धीरे-धीरे समय के साथ सामान्य हो जाती है।

13. ऑर्गैज़म  में बदलाव (delivery ke baad orgasm me badlaw)

प्रसव के बाद या ब्रेस्टफीडिंग के कारण, कई शारीरिक, मानसिक, व्यक्तिगत कारणों के कारण भी सेक्स ड्राइव में शिथिलता औरऑर्गैज़म  में बदलाव आ सकती है जो कम समय के लिए ही होती है। बच्चे के बढ़ने, ब्रेस्टफीडिंग कम होने, शरीर के पूरे स्वस्थ होने के साथ यह समय भी गुजर जाता है। परन्तु अगर यह चिंता का विषय बनने लगे तो डॉक्टर की सलाह लेने में कोई हर्ज़ नहीं।

डिलीवरी के बाद योनि की देखभाल (delivery ke baad yoni ki dekhbhal)

तो शिशु के जन्म के साथ-साथ एक औरत माँ के रूप में एक नये जन्म और जीवन के पायदान पर कदम रखती है। जिसका श्रेय सबसे अधिक योनि को जाना चाहिए। चुनौतियों से भरा होने के बावजूद, इस मन को गुदगुदाने वाले समय में, आपकी योनि, फिर जल्दी स्वस्थ हो सकती है।

बस महत्वपूर्ण है कि इस समय के कठिन पलों को सहनशीलता, सावधानी और अपने डॉक्टर के सम्पर्क में रह कर दूर या कम किया जा सकता है। और हाँ, घरेलु देसी इलाज़ के प्रयोग या इंटरनेट पर वाइरल सुझावों के प्रयोग में भी सावधानी रखनी चाहिए।

डिस्क्लेमर : यहां दी गयी जानकारी को इलाज न समझें, आपके डॉक्टर की सलाह हमेशा ज़रूरी होती है। 

मूल चित्र : guvendemir from Getty Images Signature via Canva Pro  

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