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गर्ल्स हॉस्टल था तो परिवार वालों को भी कोई अफसोस नहीं था और न ही कोई डर। मगर मुझे ही पता था मैं वहां किन हालातों में रह रही थी।
अगर मैं ये सब बताती तो शायद आज डॉक्टर न होती…
दिल्ली के लेडी इरविन गर्ल्स स्कूल से 12वीं पास कर के मैंने तमिलनाडु के वेल्लोर में स्तिथि क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। दिल्ली के एम्स में बहुत कोशिश की मगर शायद गॉड को कुछ और मंजूर था। मैंने एडमिशन तो ले लिया लेकिन मेरे पेरेंट्स बहुत ही पुरानी सोच के थे। वो मेरे को बिलकुल भी सपोर्ट नहीं करते थे। उन्हें मेरा घर से निकलना बिलकुल पसंद नहीं था
मैं ध्वनि और आज मुझे लगता है, मैं अपनी कहानी सभी से साझा करूं। बात 2013 की है। मैं हॉस्टल में रहने लगी थी। गर्ल्स हॉस्टल था तो परिवार वालों को भी कोई अफसोस नहीं था और न ही कोई डर। मगर मुझे ही पता था मैं वहां किन हालातों में रह रही थी।
सर्दी के दिन थे। क्रिसमस की पार्टी नज़दीक थी। हम सभी लड़कियों ने एक प्ले करने का सोचा। जिसके लिए हम कॉलेज का ऑडिटोरियम ही इस्तेमाल करते थे। हम 7 लड़कियां थीं। 2 ऑटो वाले भइया हमारे कॉलेज आने जाने के लिए लगे हुए थे। हमको उनके साथ बहुत सिक्योर महसूस होता था। इसलिए रात 10:30 पर वो हमको कॉलेज से हॉस्टल तक छोड़ देते थे।
23 दिसंबर की रात भी रोज़ाना की तरह भइया हमको हॉस्टल के गेट तक छोड़ गए। मैं लॉन से होती हुई जल्दी के चक्कर में अपनी बिल्डिंग की तरफ बढ़ रही थी। थोड़ी दूर चलकर हॉस्टल का कॉरीडोर है। वो बिल्डिंग अक्सर बंद रहती है। मैं वहीं से शार्ट कट लेकर अपनी बिल्डिंग में जाती थी। उस दिन भी मैंने वही किया।
बिल्डिंग की अंदर की दीवार पर कैंटीन का कुक पेशाब कर रहा था। वह गन्दे नशे में था। उसने जैसे ही मेरे को देखा, वो मेरी तरफ बढ़ा और बोला, “मैडम आज तो मैंने सुअर का मांस बनाया है खाओगी?”
मैं थोड़ी घबराई और झल्ला कर बोली, “दिमाग ठिकाने है या कहीं घास चरने गया है?”
इतना कहना था उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचने लगा और मेरे शरीर पर जगह-जगह हाथ लगाने लगा। मैं घबराहट कि वजह से कांप रही थी। मेरा मुंह सूख चुका था और गला भी बंद हो गया। मेरी आवाज़ नहीं निकल रही थी।
उस कुक ने अपने दो साथियों को और बुलाया और एक ने फोन पर कहा, “माल हाथ लगा है। हाथ सेंकने हैं तो ओल्ड बिल्डिंग के आंगन में आ।” मैं रोए जा रही थी लेकिन उसने मेरा मुंह अपनी शर्ट से बांध दिया था।
इसके बाद मुझे उन चार दरिंदों ने मिलकर तार-तार कर दिया। मैं उस वक़्त ऐसा सोच रही थी जैसे मैं कोई बुरा सपना देख रही हूं। मेरे साथ वो हैवानियत डेढ़ घण्टे होती रही और मैं कुछ न कर सकी। मैं उन्हीं अधूरे कपड़ों में और दर्द से कराहती हुई अपने रूम तक गई।
मेरी रूम पार्टनर गार्ड के पास मुझे पूछने गई थी। रूम में कोई नहीं था। मैं सीधा बाथरूम में गई। वहां जाकर मैं इतनी तेज़ चीख और दहाड़ मार कर रोने लगी। मेरी रूम मेट आई। उसके पूछने पर मैंने उसको सारी आपबीती सुनाई। उसने कहा कि जल्दी से पुलिस स्टेशन चल।
मैं भी न नुकुर कर के चलने को तैयार हो गयी। मैं अलमारी से चेंज करने के लिए कपड़े निकालने गई। मैंने वहां अपनी ट्रेनिंग का वाइट कोर्ट टँगा हुआ देखा। उस कोर्ट को देख एक बारगी मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी भी दर्द में नहीं हूं, मुझे मेरी छवि नज़र आने लगी, जैसे मैंने गले में आला लगाया हुआ है और कई मरीजों को देख रही हूं। उनसे हँस हँस का बातें कर रही हूं।
अगले ही पल मेरी रूममेट स्वाति की थपकी मेरी पीठ पर पड़ी। मुझे हंसता हुआ देख उसको अजीब लगा। मैंने फैसला कर लिया था। मुझे रेप विक्टिम बनने से ज़्यादा अज़ीज़ डॉक्टर बनना था। शायद वो कोर्ट मुझे मेरी इज़्ज़त से ज़्यादा प्यारा था। उस वक़्त भी मुझे अपने सपनों की पड़ी थी।
अपनी पढ़ाई करते-करते 2013 में उसी कॉलेज के हॉस्टल में मेरा दो बार रेप हुआ। किसी भी लड़की के लिए शायद ये बात बर्दाश्त करने लायक नहीं थी। वहीं शायद लोग यकीन भी न करें। मगर मेरे साथ ऐसा हुआ। मैं न चाहते हुए भी उस होस्टल में रुकी और वहीं से अपने सपनों को साकार किया।
न जाने कितनी बार मैं सेक्सुअल हैरासमेंट की शिकार बनी। इन सब के बाद जुनून सिर्फ इतना था कि मुझे किसी भी हालत में डॉक्टर बनना था। मेरे साथ जो भी हुआ मुझे ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं उसके ज़िम्मेदार मेरे पेरेंट्स थे। मेरे दिल ओ दिमाग में अगर पेरेंट्स के लिए एक ऐसी छवि बनी हुई होती कि वो मेरे सिर्फ पेरेंट्स नहीं बल्कि मेरे दोस्त भी हैं, तो शायद मैं उनसे सब कुछ बता पाती।
मैं उस रेपिस्ट का तो कुछ कर नहीं पाई हां, मगर मैंने कई लड़कों और लड़कियों की कॉउंसलिंग ज़रूर की। मुझे यकीन है चार सालों तक कॉउंसलिंग करते-करते मैंने कितने ही लोगों को इस अपराध से बाहर निकाला होगा, इस बात का अंदाज़ा न मैं और ना ही आप लगा सकते हैं।
आज मैं दिल्ली के मशहूर एम्स में जॉब करती हूँ। यहाँ से पढ़ तो नहीं पाई, हां काम ज़रूर करने लगी। इससे बड़ी बात मेरे लिए कोई हो ही नहीं सकती।
लेखक का नोट : उपरोक्त लेख असली कहानी पर आधारित है।
मूल चित्र : subodhsathe from Getty Images via Canva Pro
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