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प्रीति अपने पढ़ाई करने के बाद अच्छी नौकरी भी करने लगी और आज वो अपने पापा की आर्थिक सहायता करने में पूर्णतः सक्षम हो गयी।
कहते है आप जीवन में जो भी अच्छा या बुरा करते हैं एक ना एक दिन उसका परिणाम फलस्वरूप आपको मिलता है…
शर्मा जी के परिवार में पीढ़ियों से ये परम्परा चली आ रही थी कि घर के बेटों को हर बात में बेटियों से ज़्यादा सम्मान दिया जाता था। चाहे फिर खाने पीने के बात हो या फिर पढ़ाई लिखाई की, हर बात बेटों की ही मानी जाती थी। उन्हें जो करना हो करते थे।
परंतु प्रीति, शर्मा जी की बेटी, पढ़ाई में होशियार होने के बाबजूद उसे कॉलेज भेजने से भी उसके दादा जी ने माना कर दिया। शर्मा जी का तो बड़ा मन था कि वो अपनी बेटी को आगे पढ़ाएँ पर दादा जी के सामने उनकी एक ना चली। दादाजी का मानना था कि लड़कियों की शादी दूसरे घर में होती है तो हम क्यों उनकी पढ़ाई पर खर्च करें।
बेचारे बहुत परेशान की बेटी को पढ़ाना भी है और दादाजी की बात भी नहीं टाल सकता, करूँ तो क्या करूँ? उन्होंने अपनी इस समस्या को अपने मित्र गुप्ता जी से साँझा किया। गुप्ता जी ने पूरी बात समझने के बाद शर्मा जी की सुझाव दिया कि अगर वो चाहें तो इस समस्या को हल किया आ सकता है।
क्यों ना प्रीति बिटिया को डिस्टेन्स लर्निंग कॉलेज में दाख़िला करवा दिया जाए जिससे की उसे प्रतिदिन कॉलेज भी नहीं जाना पड़ेगा और वो आगे पढ़ भी सकेगी। गुप्ता जी की बात सुनकर शर्मा जी की आँखों में एक अजीब सी चमक और चेहरे पर उत्साह भर गया।
घर पहुँचकर उन्होंने ये ख़ुशख़बरी अपनी पत्नी और बेटी को दी। इस खबर को सुनते ही दोनो के चेहरे गुलाब की तरह खिल गये। प्रीति अपने पढ़ाई करने के बाद अच्छी नौकरी भी करने लगी और आज वो अपने पापा की आर्थिक सहायता करने में पूर्णतः सक्षम हो गयी। आज वो शादी होने के बाद भी अपने पिता की मदद कर पा रही है।
तभी तो कहा जाता है जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। शर्मा जी ने बदलाव का एकदम उठाया और आज उनकी बेटी उनका सहारा बन गयी।
मूल चित्र : Sharath Kumar via Pexels
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