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यदि पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह सीआरपीसी का उल्लंघन है क्यूँकि महिलाओं की गिरफ़्तारी के विशेष नियम हैं।
बेंगलुरु की 22 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने शनिवार शाम बेंगलुरु से गिरफ़्तार किया। ग्रेटा थनबर्ग के किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने के बाद दर्ज हुए मामले में यह पहली गिरफ़्तारी है।
दिशा पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत राजद्रोह, समाज में समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने और आपराधिक षड्यंत्र के मामले दर्ज किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील रेबेक्का जॉन के अनुसार दिशा की हिरासत के आदेश के समय उनके वकील का न होना कानून का उलंघ्घन है।
वहीं हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने सोमवार को दिशा रवि की गिरफ्तारी के समर्थन में ट्वीट किया कि ‘‘देश विरोध का बीज जहां कहीं भी हो, उसका समूल नाश कर देना चाहिए।”
दिल्ली पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया है कि “दिशा रवि जिसे दिल्ली पुलिस की साइबर टीम ने गिरफ़्तार किया है, वो उस टूलकिट की एडिटर हैं और उस दस्तावेज़ को तैयार करने और उसे सोशल मीडिया पर सर्कुलेट करने वाली मुख्य साज़िशकर्ता हैं।”
उनके वकील की ग़ैर-मौजूदगी में उन्हें पुलिस कस्टडी में भेजने को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है। वकील रेबेका जॉन ने इस मुद्दे पर फ़ेसबुक पर लिखा है, “पटियाला कोर्ट के ड्यूटी मजिस्ट्रेट के आज के आचरण से मुझे निराशा हुई है. उन्होंने महिला का प्रतिनिधित्व करने के लिए कोर्ट में वकील की मौजूदगी सुनिश्चित किए बिना उन्हें पांच दिन की पुलिस कस्टडी में भेजने का आदेश दिया।”
भारत में स्वतंत्रता संग्राम और उससे पहले भी विरोध करने वाली महिलाओं लंबा इतिहास रहा है। हाल ही के सालों में सोनी सोरी और सुधा भारद्वाज जैसी प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस के व्यवहार और उनकी गिरफ़्तारी को लेकर अनेक सवाल उठते रहे हैं। सभी सामजिक आंदोलनों में महिलायें न केवल अपनी यौनिक पहचान बल्कि अपनी धार्मिक, जातिगत पहचान और आर्थिक स्थिति के कारण भी अधिक प्रताड़ना झेलती हैं। ज़ाहिर सी बात है कि महिलाओं की गिरफ़्तारी के नियम आसानी से भूला दिए जाते हैं।
2020 के नागरिकता क़ानून विरोध आंदोलन के दौरान जामिया विश्वविद्यालय की छात्रा सफूरा ज़रगर को दंगे भड़काने के इल्ज़ाम पर गिरफ़्तार किया गया था, उस समय वो गर्भवती थीं। कोरोना के दौरान भी उनका इस अवस्था में जेल में होना मानवाधिकार का मुद्दा बना।
हाल ही में किसान आंदोलन में मज़दूर-किसान हक़ों के लिए कार्यरत नवदीप कौर को भी हिरासत में लिया गया। उनके परिवार का आरोप है कि हिरासत में उसका यौन उत्पीड़न भी किया गया।
भारतीय कानून में और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस कार्यों से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे मुकदमा दर्ज करने, गिरफ्तार नागरिक के साथ व्यवहार और पूछताछ के तौर-तरीकों से संबंधित प्रक्रियाओं का निर्धारण किया गया है।
आर्टिकल 22 (1) गिरफ्तार हुए और हिरासत में लिए गए लोगों को अपनी पसंद के एक वकील से सलाह करने का अधिकार देता है।
किसी को भी हिरासत में लेते समय पुलिस को नियमानुसार अपनी पहचान बतानी होती है, मेमो बनाना होता है जिसमें गिरफ्तारी की तारीख और समय दर्शाना होता है। हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति के निकट संबंधी को गिरफ्तारी की सूचना और हिरासत की जगह की जानकारी दी जानी होती है।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये और हिरासत में रखे गए प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए (आर्टिकल 22 (2))
जब गिरफ्तार किए गए अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाता है तो आरोपी को पुलिस हिरासत में या न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है।
पुलिस हिरासत में, पुलिस के पास आरोपी की शारीरिक हिरासत होगी और आरोपी को पुलिस स्टेशन में बंद कर दिया जाएगा। न्यायिक हिरासत में, अभियुक्त मजिस्ट्रेट की हिरासत में होगा और उसे जेल भेजा जाएगा। न्यायिक हिरासत में रखे गये आरोपी से पूछताछ के लिए पुलिस को संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।
हिरासत में लेने के बाद गिरफ्तार व्यक्तियों का नियमानुसार मेडिकल परीक्षण करवाना होता है, डॉक्टर को पहले से लगी चोटों का विवरण देना होता है।
यदि पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता मतलब सीआरपीसी का उल्लंघन है और भारतीय संविधान के आर्टिकल 20, 21 और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी विरूद्ध है।
भारतीय कानून में महिलाओं की गिरफ़्तारी को लेकर विशेष नियम हैं।
सीआरपीसी की धारा 46 (4) स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले कदापि गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, यदि किसी परिस्थिति में किसी महिला को गिरफ्तार करना ही पड़ता है तो इसके सर्वप्रथम क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट से इजाज़त लेनी होगी।
सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार महिला को केवल महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार करेगी। किसी भी परिस्थिति में किसी भी महिला को कोई पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं करेगा।
महिला की शारीरिक जांच एक महिला पुलिसकर्मी ही कर सकती है। कोई पुरुष पुलिसकर्मी, किसी भी सूरत में उसे हाथ नहीं लगा सकता।
पुलिस स्टेशन में किसी भी महिला से पूछताछ करने या उसकी तलाशी के दौरान महिला कॉन्सटेबल का होना ज़रुरी है। महिला अपराधी की डॉक्टरी जाँच महिला डॉक्टर करेगी या महिला डॉक्टर की उपस्थिति के दौरान कोई पुरुष डॉक्टर कर सकते हैं।
अक्सर महिलाओं के इन विशेषाधिकारों का ही नहीं मूल मानवाधिकारों का भी अक्सर हनन होता है। नवदीप कौर की ‘अवैध हिरासत’ पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट 6 और 8 फरवरी को दाखिल की गई शिकायत का वह संज्ञान ले रही है। दिशा रवि के केस में भी ट्रांज़िट रिमांड की अनुपस्थिति और अन्य बातों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
स्त्रियों के अधिकार भी मानवाधिकार ही हैं और चूँकि उनके साथ भेदभाव या उनका शोषण होने के मामले अधिक होते हैं ये समाज और कानून की ज़िम्मेदारी बनती है की सभी महिला नागरिकों के कानूनी अधिकारों का हिरासत और तफ्तीश में भी उलंघ्घन न किया जाए।
मूल चित्र : Facebook
Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...
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