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हर घर में एक स्त्री होती है और हर स्त्री में एक घर भी होता है! तुम घर से स्त्री को कितनी बेरहमी से निकाल देते हो न? जानते भी हो...
हर घर में एक स्त्री होती है और हर स्त्री में एक घर भी होता है! तुम घर से स्त्री को कितनी बेरहमी से निकाल देते हो न? जानते भी हो…
हर घर में एक स्त्री होती है, कोई खाना पकाने में निपुण, कोई आँगन बुहारने में, किसी को मेहमानवाजी करना पसंद होता है, तो कोई घूमने की शौकीन होती है, कोई रिश्ते संभालती है, तो कोई कर्ज़ की किश्तें संभालती है!
हर घर में एक स्त्री होती है और हर स्त्री में एक घर भी होता है! तुम घर से स्त्री को कितनी बेरहमी से निकाल देते हो न? जानते भी हो, उस स्त्री के भीतर से वो घर कभी नहीं निकलता!
मूल चित्र : Sharath Kumar via Pexels
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