कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
पिता की उसी बात ने मेरे पैरों के नीचे मेरे हक की जमीन ठहराई, वरना कैसे मेरे पंख नापते आसमान भर की ऊंचाई! आज यही सोच के आँख भर आई...
पिता की उसी बात ने मेरे पैरों के नीचे मेरे हक की जमीन ठहराई, वरना कैसे मेरे पंख नापते आसमान भर की ऊंचाई! आज यही सोच के आँख भर आई…
ब्याही बेटी कोमाँ की यादहर रोज़ आती है!पिता कीजिस रोज़ आ जाए,उस दिन समझोमौत आती है!
आज बेबात ही आँसू छलके,पिता की याद आईदिल में बीती बातें हुई रिवाईंड,बिदा करती माँ ने समझायाबनठन के रहिए!पिता ने ज्यादा कुछ नएक ही बात समझाईपायल कभी पैर न छुवाइए!
आज यही सोच के आँखभर आई!सिखाया धरा सब माँ कापीछे छोड़ आई!पिता की उसी बात नेमेरे पैरों के नीचेमेरे हक की जमीन ठहराई,वरना कैसे मेरे पंख नापतेआसमान भर की ऊंचाई!
मूल चित्र : Sharath Kumar via Pexels
read more...
Please enter your email address