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जिस रोज़ पिता की आ जाए…

पिता की उसी बात ने मेरे पैरों के नीचे मेरे हक की जमीन ठहराई, वरना कैसे मेरे पंख नापते आसमान भर की ऊंचाई! आज यही सोच के आँख भर आई...

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पिता की उसी बात ने मेरे पैरों के नीचे मेरे हक की जमीन ठहराई, वरना कैसे मेरे पंख नापते आसमान भर की ऊंचाई! आज यही सोच के आँख भर आई…

ब्याही बेटी को
माँ की याद
हर रोज़ आती है!
पिता की
जिस रोज़ आ जाए,
उस दिन समझो
मौत आती है!

आज बेबात ही आँसू छलके,
पिता की याद आई
दिल में बीती बातें हुई रिवाईंड,
बिदा करती माँ ने समझाया
बनठन के रहिए!
पिता ने ज्यादा कुछ न
एक ही बात समझाई
पायल कभी पैर न छुवाइए!

आज यही सोच के आँख
भर आई!
सिखाया धरा सब माँ का
पीछे छोड़ आई!
पिता की उसी बात ने
मेरे पैरों के नीचे
मेरे हक की जमीन ठहराई,
वरना कैसे मेरे पंख नापते
आसमान भर की ऊंचाई!

मूल चित्र : Sharath Kumar via Pexels

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