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ये बच्चा सिर्फ मेरा है और मेरा ही रहेगा…

डाक्टर रत्ना काफी गंभीर होकर कमरे की तरफ़ इशारा करती हैं। राधे अपनी पत्नी की आंखों में आसूं देख समझ नहीं पाता।

डाक्टर रत्ना काफी गंभीर होकर कमरे की तरफ़ इशारा करती हैं। राधे अपनी पत्नी की आंखों में आसूं देख समझ नहीं पाता।

“डाक्टर साहिब! मेरी बीवी को क्या हुआ?” राधे मुस्कुराते हुए डाक्टर से पूछता है।

डाक्टर रत्ना काफी गंभीर होकर कमरे की तरफ़ इशारा करती हैं। राधे अपनी पत्नी की आंखों में आसूं देख समझ नहीं पाता।

“क्या हुआ विमला कुछ तो बोल।”

उसकी पत्नी विमला बच्चे के शरीर से कपड़ा हटा देती है। राधे बच्चे को देख अवाक रह जाता है।

“ये ययये ये क्या है?”

“हमारे नसीब में ये ही था राधे।”

“हमारे नहीं तेरे नसीब में। मैं ऐसी चीज़ का बाप नहीं हो सकता या तो इसे किसी गटर में फेंक या किन्नरों को दे आ।”

“कैसी बातें कर रहे आप? इसमें आपका ख़ून है। कैसे इसको अपने सीने से अलग कर सकते हैं?”

“मुझे नहीं पता, अगर अलग नहीं कर सकती तो मेरे घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद…”

विमला अपने बच्चे शिवा को लेकर अपनी आई के पास चली जाती है। जैसे-जैसे शिवा के बारे में लोगों को पता चला वो कौतूहल की विषय वस्तु बन कर रह गया। कुछ समय बाद कुछ किन्नर आए शिवा को लेने पर, उसकी मां विमला ने उन्हें शिवा को देने से मना कर दिया, “मुझे नहीं देना किसी को भी अपने बच्चे को। ये जैसा भी है मेरे लिए भगवान का प्रसाद है। आप बस इसे आशीर्वाद दें। इसे आगे दुनिया में बहुत कुछ देखना और सुनना है…”

समय बीता। शिवा अब बड़ा होने लगा और उसे अपने अंदर कई सारे परिवर्तन दिखने लगे। उसे स्त्रियों से संबंधित सभी चीज़ें आकर्षित करने लगीं। शिवा को समझ आने लगा था कि वो अन्य सभी से अलग है। स्कूल में उसका मज़ाक बनाया जाता पर शिवा इन सब से दूर अपनी धुनी में रमा रहता।

अपने अंदर के स्त्रियोचित लक्षणों के कारण शिवा ने धीरे-धीरे अपने आपको शिवानी के रुप में ढाल लिया। विमला अपने बच्चे को पूरी तरीके से सहयोग दे रही थी। धीरे-धीरे शिवा जो अब‌ पूरी शिवानी हो चुकी थी, उसने कई स्वयं सेवी संस्थाओं में काम करना शुरू किया, जो कि बच्चों के लिए काम करते थे। बच्चों की देखभाल करते हुए  शिवानी बच्चों को पसंद करने लगी थी।

अपने समाज सेवा के काम में शिवानी एक एड्स पीड़िता के संपर्क में आई। जो एक पांच साल की बच्ची की मां थी। कुछ दिनों बाद उस एड्स पीड़िता की मृत्यु हो गई। इधर उस औरत के घर वाले बच्ची को बेचना चाहते थे पर शिवानी ने पांच साल की राधिका को गोद ले लिया। हालांकि, किसी किन्नर का मां बनना किसी को पच नहीं रहा था।

शिवानी ने भी कमर कस ली थी कि वो एक अच्छी मां बन कर दिखाएगी। शिवानी अपनी मां की सहायता से राधिका को बड़ा करने लगी। राधिका तो अब शिवानी के बिना एक भी पल नहीं रहती थी।

और एक दिन, “मां…मां…”, राधिका ने जब शिवानी को मां बोला तो जैसे उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। आज उसे अपने सम्पूर्ण होने का एहसास हो रहा था। उसका शरीर और मन मयूर की भांति नाच रहा था। आंखों से आंसू नदी की तरह बहे जा रहे थे क्योंकि शिवानी अब पूरी तरह से मां बन चुकी थी। राधिका ने उसके अधूरेपन को पूरा किया था। अब वो‌ माँ बन चुकी थी।

दोस्तों! मां कोई भी बन सकता है। एक किन्नर भी मां हो सकती है। समाज को हर किसी को स्वीकार करना चाहिए और रिश्ते को‌ कोई भी उपनाम नहीं देना चाहिए। किन्नर भी भगवान के फ़ूल हैं जो भगवान को उतने ही प्यारे हैं जितने बाकी के फ़ूल। तो हम कौन हैं उन्हें समाज से अलग करने वाले?

आपके क्या विचार है मुझे ज़रूर बताइएगा।

मूल चित्र : Zurijeta via Canva Pro  

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