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सोच को बदलने का समय आ गया है, कमजोर नहीं सशक्त बनने का समय आ गया है, सिर्फ परिवार नहीं उसका स्वाभिमान भी सब पर भारी है।
क्यों औरतें ही हर कदम पर परीक्षा देती रहें? क्यों औरतें ही अपनी इच्छा को दबाती रहें? क्यों औरतें ही दूसरे के लिए जीएं? क्यों औरतें ही बात बात पर रोएं?
सोच को बदलने का समय आ गया है, कमजोर नहीं सशक्त बनने का समय आ गया है, औरतें को भी इज्ज़त प्यारी है, सिर्फ परिवार नहीं उसका स्वाभिमान भी सब पर भारी है।
मानसिक रूप से मजबूत बनेगीं, अपनी लड़ाई खुद लड़ेगीं। किताबी ज्ञान के साथ सांसारिक ज्ञान भी ज़रूरी है, इतिहास के पन्नों से प्रेरणा लेना भी ज़रूरी है, रणभूमि में बेटे को पीठ पर बांधकर भी वह दुश्मनों से भिड़ी थी, विद्वानों की सभा में बड़े बड़ों को ज्ञान से पछाड़ी थी।
घूंघट में छिपा चाँद नहीं रहना उन्हें, सजावट का सामान नहीं बनना उन्हें, औरतों को दोयम दर्जे का समझना छोड़ दो, औरतों पर व्यंग्य कसना छोड़ दो, औरत और मर्द की महत्ता समान है, दोनों से ही परिवार और समाज की पहचान है।
मूल चित्र : ASphotowed from Getty images Pro via Canva Pro
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