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चुपचाप पथरायी आंखों से आईने की तरफ निहारती खुशी ने सिर्फ इतना कहा, "पापा मैं आप सब के लिए हमेशा परायी से ही तो थी।"
चुपचाप पथरायी आंखों से आईने की तरफ निहारती खुशी ने सिर्फ इतना कहा, “पापा मैं आप सब के लिए हमेशा परायी से ही तो थी।”
सुर्ख लाल जोड़े में सजी खुशी आज दुल्हन के लिबास में किसी आकाश की अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। रमा जी अपनी बेटी को दुल्हन के जोड़े में देखकर बार-बार बलायें लिए जा रही थीं कि तभी कमरे में रघुनाथ जी रमा जी को आवाज देते हुए आये, “अरे! रमा तुम यहाँ हो, नीचे चलो। बराती किसी भी समय पहुँचने वाले होंगे, चलो जल्दी करो।” तभी उनकी नजर खुशी पर पड़ी।
खुशी को देखते रघुनाथ जी के आंखों के कोर गीले हो गए। उन्होंने कहा, “खुशी आज मैं जितना तुझे दुल्हन के जोड़े में देखकर खुश हूं तो दूसरी तरफ मन दु:खी भी कि आज के बाद तू परायी हो जाएगी।”
चुपचाप पथरायी आंखों से आईने की तरफ निहारती खुशी ने कहा, “पापा मैं आप सब के लिए हमेशा परायी ही थी।”
इतना सुनते रघुनाथ जी ने खुशी के सिर पर हाँथ रखते हुए खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए वहाँ से तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल आये।
शादी खुशी-खुशी सम्पन्न हुई, रघुनाथ जी ने औकात से ज्यादा जो खर्च किया था। जो-जो सामान खुशी के ससुराल वालों ने मांगे, सोना, कार, फ्रिज ,ए.सी,सब कुछ। सभी घराती बाराती रघुनाथ जी की बेटी की ऐसी शादी सम्पन्न करने के लिए तारीफ कर रहे थे। लेकिन खुशी के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी क्योंकि रघुनाथ जी ने उसका विवाह बिना उसकी मर्जी के किया था। खुशी पढ़ना चाहती थी लेकिन रघुनाथ जी बेटी की शादी कर के बोझ से मुक्त होना चाहते थे।
शादी सम्पन्न होने के बाद विदाई का समय आया। सब रो रहे थे। लेकिन खुशी के चेहरे पर अब भी ना खुशी थी ना गम। रमाजी ने खुशी के आंचल में जैसे ही दूब, हल्दी, अक्षत का खोइच्छा दिया। खुशी ने बड़े ध्यान से अपने आँचल के खोइच्छे को देखा, फिर एक नजर अपने घर की दर दीवारों, खिलौनों, सामानों को देखते-देखते अपने पापा रघुनाथ जी के पास गयी और कहा, “पापा अब तो खुश है ना आप? अपना 20 सालों का बोझ उतार कर? मैं आप की बेटी थी डॉक्टर बनना चाहती थी। लेकिन आपने कहा कि आपके पास इतने पैसे नही की आप मेडिकल कॉलेज का फीस दे सको।
आपने मुझे ग्रैजुएट भी नहीं होने दिया। और मेरी शादी कर दी। मैं आपकी अपनी थी फिर भी मेरे मांगने पर भी आपने मुझे शिक्षा का अधिकार नहीं दिया। और इन अनजान लोगों को मुँह-माँगी चीज़ें दे दीं। वो भी अपने सिर पर कर्ज का बोझ रख कर। क्या मैं इस कर्ज के बोझ से भी ज्यादा बड़ी बोझ थी?” कहकर खुशी वहाँ से जाने लगी।
तभी उसकी नजर अपनी चार महीने की भतीजी पर पड़ी। उसको देखते उसने उसके सिर पर हाँथ फेरा और अपने भाई से कहा, “भाई आपसे गुजारिश करती हूं कि आप इसके सारे सपने पूरे करेंगे।”
तभी किसी ने आवाज लगायी। रघुनाथ जी भाई रोना बंद कीजिए। खुशी के आखिरी विदाई का समय हो गया है। जल्दी कीजिये। अब होनी को कौन टाल सकता है।
लेकिन रघुनाथ जी बेटी के शव से लिपटकर बिलख बिलख कर रोये जा रहे थे। उनके कानों में अपनी बेटी के कहे आखिरी शब्द गूंज रहे थे। जिसको सोच सोच कर पछतावे के शब्द उनके मुख से निकल रहे थे। वो लगातार कहे जा रहे थे, “काश उस दिन तूने पीछे मुड़कर ना देखा होता। काश तुझे मैंने पिता होने की दुहाई देकर घर छोड़ने से ना रोका होता। मैंने तेरी बात मान ली होती। और तुझको शिक्षा का अधिकार दे दिया होता। तो शायद आज तू मेरी खुशी बेटी दहेज की बलि ना चढ़ती।”
उन दहेज के लोभियों ने दिन पर दिन अपनी मांगे बढ़ानी शुरू कर दी। जिसके ना पूरा होने पर उन लोभियों ने खुशी को ही दहेज की आग में जला डाला। इंस्पेक्टर ने रघुनाथ जी से कहा, “आप चिंता मत कीजिए। उनको सजा भी मिलेगी और मुआवज़ा भी देना पड़ेगा।”
“लेकिन साहब मुझे तो सिर्फ मेरी बेटी चाहिए”, रघुनाथ जी ने रोते हुए कहा।
आज खुशी लाल जोड़े में अपनी आखिरी विदाई पर खामोश थी लेकिन बहुत से सवाल थे जो उसकी मृत शरीर पूछ रही थी कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन-कौन है? मुखाग्नि देते रघुनाथ जी के हाँथ कांप रहे थे। आज उनके पास छाती पीटने के अलावा कुछ भी नहीं था क्योंकि हाँथ खाली थे। तभी मूसलाधार बरसात भी होने लगी। शायद आज कायनात भी रो रही थी।
प्रिय पाठकगण ,आशा करती हूं कि मेरी ये कहानी आप सब को पसंद आएगी। कहानी काल्पनिक है लेकिन आज भी ना जाने किंतनी खुशी हैं जो दहेज की आग में जला दी जाती हैं या घरेलू हिंसा मारपीट, गाली गलौज का शिकार होती हैं।
कहानी के माध्यम से मैं ये कहना चाहती हूँ कि आप कर्ज लेकर बेटी को दहेज देने के बजाय उसको शिक्षा का अधिकार दें। जिस प्रकार आप अपने बेटों की शिक्षा पर जोर देते हैं क्योंकि वो आपके बुढापे का सहारा बनेगा। सिर्फ जुबान या दिखावे के लिए बेटा-बेटी एक समान ना कहें, बल्कि उसको यर्थाथ में भी अपनाएँ। शुरुआत हर घर से होंगी तभी समाज बदलाव सम्भव है।
मूल चित्र : jessicaphoto from Getty Images via Canva Pro
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