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बहु को भी तो हम लक्ष्मी के रूप में देखते हैं। लक्ष्मी के आने पर जैसे हम घर को सजाते हैं वैसे ही मन को भी सजा संवार कर तैयार कर लेना चाहिए।
‘रिश्ता’ शब्द सुनते ही चेहरे पर एक भिनी सी मुस्कान आ जाती है। आप ने कभी न कभी किसी न किसी को ये कहते सुना होगा कि हमारी लड़की का रिश्ता तय हो गया है। यह सुनकर आपके मुंह से अनायास ही बहुत सारी दुआएँ अपने आप ही निकल आती हैं, “चलो अच्छा हुआ भगवान इसे खुश रखे”, वगैरा-वगैरा।
परन्तु लड़की की माँ के मन में बहुत से सवाल उठ रहे होते हैं कि कैसा होगा अगला घर? क्या यही बात लड़के का रिश्ता तय होता है तब हम कहते हैं? नहीं उस समय हम कहेंगे, “वाह! क्या बात है, मिठाई खिलाओ।” कुछ ऐसा ही न?
लड़के की माँ दबे शब्दों में कहेगी, “बस लड़की अच्छी हो और हमें कुछ नहीं चाहिए।” भाई और चाहिए भी क्या? जब लड़की मिल गई समझो सब कुछ मिल गया। ‘उ’ से पहले ‘आ’ आता है, पहले ‘आचरण’ अच्छा करो तो ‘उच्चारण’ अपने आप ही सही हो जाएगा। हम अच्छे होंगे तो दूसरा भी अच्छा व्यवहार ही करेगा।
बहु को भी तो हम लक्ष्मी के रूप में देखते हैं। लक्ष्मी के आने पर जैसे हम घर को सजाते हैं वैसे ही मन को भी सजा संवार कर तैयार कर लेना चाहिए। ढ़ेरों आशिर्वाद और प्यार से बहु का स्वागत करें। स्वागत करें एक-दूसरे के सम्मान का। स्वागत करें प्रेम और विश्वास का। यदि हम रिश्तों की गहराई को समझ जाएँ, तो जीवन के सफर में हमें किसी भी मोड़ पर मायूसी का चेहरा नहीं देखना पड़ेगा।
रिश्ता चाहे कोई भी हो चाहे माँ-बेटी का, भाई-बहन का या फिर पति-पत्नि या कोई और जब तक इसमें प्रेम विश्वास और सच्चाई है तभी तक ये रिश्ता जिंदा है। नहीं तो हम रिश्तों की लाश के बोझ को उम्र भर ढोते हैं और आखिर में मर जाते हैं। तो क्यों नहीं हम अपने-अपने रिश्ते में प्यार और विश्वास का रंग भर कर जीवन में खुशियाँ बिखेरते हुए अमर हो जाएं?
मूल चित्र : Bhoopal M via Pexels
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