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ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।
“सुषमा! कहां चल दी नाश्ता तो करती जा।”
“मां! समय नहीं है मेरे पास, मेरे क्लाइंट मेरा वेट कर रहे होंगे। आपके नाश्ते के चक्कर में मेरा नुकसान ज़रूर हो जाएगा।”
“हां! सब कुछ तो मेरी वजह से है। इस उम्र में तो लड़कियां दो-दो बच्चों की मां बन जाती हैं और तुम हो की ये चद्दर तकिए बेचने में लगी हो।”
“मां! मैं होम डेकोर का बिज़नेस चलाती हूं।”
“ये हाई-फाई बातें करने से तेरा बिज़नेस बदलने वाला नहीं।”
“हां! जैसे आज तक आपका ताना देना नहीं बदला। मैं जा रही आफिस मेरे पास आपके जैसा समय नहीं जो आपके रोज़ के पुराण सुनूं।”
“अच्छा! ये तो बता कोई पसंद किया या तेरे लिए किसी बुड्ढे को देखूं? क्योंकि जवान तो तू रही नहीं। तीस की हो चली, पता नहीं कब शादी करेगी।”
“मां आपको जो देखना है देखो और जिससे करनी है बता देना। मैं आकर मंडप में बैठ जाऊंगी।”
“कैसी लड़की है शादी को लेकर कोई चाव ही नहीं। काश! तेरे पापा ज़िंदा होते तो तेरे कान खींचते।”
“फिलहाल तो बाॅस ज़रूर मेरे कान खींच लेगा, मैं तो चली बाय मां।”
“हैलो! चारु दीदी आज आ रही हैं ना आप? (स्वाति जी ने सुषमा की बुआ को फोन पर पूछा)। अच्छा वो सुषमा के लिए मैट्रीमोनियल में लड़के जो देखे थे वो भी फ़ोटो साथ लेकर आना।”
घर पहुंचते ही चारू बुआ ने स्वाति जी से बोला, “देख स्वाति! ये सारे के सारे लड़के एक से बढ़कर एक हैं। बस सभी के यहां बात कर फ़ोन पर। फ़िर मीटिंग करते हैं मिलने मिलाने का।”
काफी देखने सुनने के बाद स्वाति जी ने चार लड़के सिलेक्ट किए और मीटिंग फिक्स कर ली मिलने की। साथ ही सुषमा को भी फ़ोन कर बता दिया।
मीटिंग खत्म कर सुषमा सोच में पड़ गई। पता नहीं करियर की जद्दोजहद में प्यार तो नहीं कर पाई पर क्या एक अजान शख्स से प्यार हो पाएगा। अरे प्यार तो छोड़ो उस पर विश्वास कर पाऊंगी। इसी उधेड़बुन में सुषमा कार चलाते अपने बालों से जूझती जा रही थी। तभी उसके फ़ोन की घंटी बजती है।
“हां लता क्या हुआ?”
“यार मुझे किसी ज़रूरी काम के लिए निकलना है। क्या तुम मेरी इस मीटिंग को अटेंड कर लोगी। बहुत जरूरी है प्लीज़ ना मत कहना। मैंने सभी डिटेल मेल कर दी है।”
“ठीक है लता”, ठंडी सांसें लेते सुषमा ने कहा।
“एड्रेस तो यहीं का था। हां यही है मिल गया। बस जल्दी मीटिंग खत्म हो और मैं निकलूं। वरना मां के चार लेक्चर और सुनने पड़ेंगे।”
“मिस सुषमा!”
“जी आप कौन?”
“मैं गौतम। मेरे ही साथ आपकी मीटिंग है।”
मीटिंग से इंप्रेस होकर गौतम ने सुषमा को काॅफी का ऑफर दिया। गौतम भी अविवाहित था और सुषमा की ही तरह महत्वाकांक्षी भी। बातों-बातों में गौतम ने ये भी बताया कि उसे एक महत्वकांक्षी लड़की चाहिए लाइफ पार्टनर के तौर पर, जो अपने को घर तक सीमित ना रख कर उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले। सुषमा भी उसके विचारों से काफी इंप्रेस हुई।
इधर स्वाति जी ने लड़के वालों के साथ एक हफ्ते बाद का समय मिलने के लिए निकाला। इस बीच सुषमा और गौतम में मीटिंग को लेकर काफी बातें हुईं। साथ ही अब रोज़ का उठना-बैठना हो गया और गौतम और सुषमा दोनों को ही एक दूसरे की कंपनी पसंद आने लगी।
अब सुषमा का मन मां के बताए रिश्ते में नहीं था। गौतम ने भी बातों-बातों में अपनी पसंद ज़ाहिर कर दी थी। पर सुषमा जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती थी। हफ्ते भर बाद सुषमा अपनी बुआ और मां के साथ लड़के को देखने गई।
बेमन से देखने गई सुषमा ने जैसे ही गौतम को देखा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ। गौतम ने सभी को बताया, “हम पहले भी मीटिंग के सिलसिले में मिलते रहते हैं। मैंने अपनी फीलिंग सुषमा को बताई पर उसकी तरफ़ से कोई पाज़िटिव रिस्पांस नहीं मिलने की वजह से मैंने मां पापा को दूसरी लड़की देखने को हां कर दिया।
पर संजोग देखिए, डेस्टिनी ने हमको फाइनली मिला ही दिया। अब तो सबको मेरे वाले लव को अरेंज्ड मैरिज में बदलना है। क्यूं सुषमा? अब भी कुछ सोचना है।”
शर्म के कारण सुषमा कुछ बोल नहीं पा रही थी, बस उसने अपनी खुशी को जाहिर कर सबको इस शादी के लिए स्वीकृति दे दी।
ये है गौतम और सुषमा का शादी से पहले वाला प्यार जो लव कम अरेंज्ड में बदला। आपका प्यार कौन सा था अपने अनुभव ज़रूर सांझा करें।
मूल चित्र : Canva Pro
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