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माँ मैं भी तो एक औरत हूँ? तू भी तो एक औरत है? फिर बेटे का इतना मोह क्यूं? वंश को बढ़ाना ही क्या, हम स्त्रियों की ज़िंदगी का मकसद है?
बधाई हो बधाई!घर में खुश खबरी आई है,खुश खबरी तो तब गहरी होगी जब बेटा जन्मेगी।
माँ पर मैं भी तो एक औरत हूँ?तू मेरी जननी, तू भी तो एक औरत है?फिर बेटे का इतना मोह क्यूं?वंश को बढ़ाना ही क्या,हम स्त्रियों की ज़िन्दगी का मकसद है?
वंश को रोशन मैं करती हूं,एक नहीं दो-दो परिवारों का मान रखती हूं,उस बेटे को लायक और समझदार मैं बनाती हूं।
जब मेरी कोई अहमियत नहीं,तो मैं एक और को जन्म क्यूं दूं?जो क्या पता यदि बेटी हुईतो तू घोर पाप कर दे,उसे धिक्कार दे,घर आई हुई ख़ुशी को मातम का नाम दे।
माँ आज तूने अपने होने का वजूद मिटा दिया,तेरे नाम के गौरव को मिट्टी में मिला दिया।काश हर माँ तेरे जैसी ना होके मेरे जैसी होती,कितनी ही बच्चियां आज हंस खेल रही होतीं।
कब औरत पर औरत का अत्याचार थमेगा,पुरुषों को क्या कहा जाए,जब औरत ही औरत की दुश्मन बन जाए।क्यूं एक नारी दूसरी नारी का सम्मान डगमगाती है,उसके हौसलों पर लगाम लगाती है?
तभी होगा नारी का वाजिब सम्मान,जब समूची नारी जाति एकजुट हो जाए,और लगाए अत्याचारों पर विराम।नारियों तुम अपनी अंतरात्मा को जगाओ,नारी शक्ति का बिगुल बजाओ।
मूल चित्र : FatCamera from Getty images Signature via Canva Pro
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