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तुम्हें अपनी हार का पहले से है अंदेशा, पर मुझे अपनी जीत का, हमेशा से है भरोसा। देखे! कब तक पाबंदियों की बेड़ियां रोक पाएंगी...
तुम्हें अपनी हार का पहले से है अंदेशा, पर मुझे अपनी जीत का, हमेशा से है भरोसा। देखे! कब तक पाबंदियों की बेड़ियां रोक पाएंगी…
मेरी अभिव्यक्ति पर लगा पाबंदी,जीत तुम समझ बैठे हो अपनी,यह मेरी हार नहीं और ना ही तुम्हारी जीत है।
मेरे हौसले को कुचल कर सोचते हो,तुम्हारी जीत की है कोई नई रीत है।
सिसकती हुई अबला ने, जब धरा है रूप सबला का,इतिहास के पन्नों में तब दर्ज हुआ है नए समीकरणों का।
इसी भय से कुचलते आ रहे हो,मेरी अभिव्यक्ति का नारा,कई बार हिला चुकी हूं अपने हौसले से,पुरुषार्थ को तुम्हारे।
तुम्हें अपनी हार का पहले से है अंदेशा,पर मुझे अपनी जीत का, हमेशा से है भरोसा।देखे! कब तक पाबंदियों की बेड़ियां रोक पाएंगी,हमारी अभिव्यक्ति की रैलियां।
मूल चित्र : Dzenina Lukac via Pexels
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