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शिवरानी की बहादुरी की कहानी आपने सुनी, लेकिन मुझे लगता है कि हमारा समाज सिर्फ़ मर्दों की बहादुरी के किस्से सुनना पंसद करता है।
हमने मर्दों की बहादुरी कहानी बहुत सुनने हैं पर आज हम उन महिलाओं की बहादुरी के किस्से पढ़गे जिन्होंने न सिर्फ घर संभला हैं बल्कि सात लोगों की जान बचाई हैं। यह कहानी है मध्यप्रदेश की शिवरानी की जिसने सात लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम डाल दी।
16 फरवरी को मध्य प्रदेश के सतना में बस दुर्घटना हुई जिसके बाद लोगों में हड़कंप मच गया। रामपुर के नैकिन इलाके के पास अचानक से बस अनियंत्रित हो गई और फिर नहर में गिर गई। यह हादसा करीब सुबह साढ़े सात बजे हुआ। इस बस में करीब 54 यात्री सवार थे जिसमें 47 शव नहर से निकाला जा चुके हैं। बस को गिरता देख शिवरानी नहर में कूद पड़ी उसने अपनी जान को खतरे में डाल कर लोगों की जान बचाई है।
इस बीच दर्दनाक हादसे की जानकारी जब मुख्यमंत्री ने दी तब जाकर लोगों को यह पता चला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद ट्वीट कर कहा कि अनियंत्रित बस नहर में गिरी तो उस समय लड़की शिवरानी वहीं मौजूद थी। बस गिरते देख शिवरानी ने नहर में छलांग लगा दी।
शिवरानी की उम्र करीब 18 वर्ष की है, वह संतना की निवासी जब बस दुर्घटना ग्रसित हुई थी तब शिवरानी घर के बाहर बैठी थी। बस को नहर में गिरता देख, वह अचानक से चीख पड़ी और अपने भाई के साथ दौड़ गयी, बस के पिछले दरवाजे से कुछ लोगों को बाहर निकलता देख, उसने नहर में छंलाग लगाई और लोगों को सहारा देकर किनारे तक ले आई ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित सांसदो ने शिवरानी की तारीफ़ करते हुए कहा कि बेटी शिवरानी के साहस की तारीफ़ करता हुँ।अपनी जान की परवाह किए बिना उसने घटनास्थल पर नहर में छलांग लगाकर नागरिकों की जान बचाई है। मैं इस बेटी का धन्यवाद करता हूँ। पूरे प्रदेश को उस पर गर्व है।
ऐसा पहली बार नहीं जब महिलाओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर ऐसा काम किया है पर बात जब भी महिलाओं की होती हैं तो हम उन्हें कम आँकने की गुस्ताख़ी कर देते हैं। शिवरानी पहली महिला नहीं है जिसने इस तरह का काम किया है पर आज भी हम महिलाओं की बहादुरी को हम कम आँकते हैं।
शिवरानी को लेकर जो चर्चा चल रही है उससे ऐसा लगता है कि मानो इस देश में पहली बार किसी महिला ने लोगों की जान बचाई है। प्रतिदिन भारत में कई महिला अपनी जान लगाकर लोगों की जान बचाती हैं पर न उन्हें इतना सम्मान दिया जाता है न ही कभी उनकी चर्चा होती है।
महिलाएँ हमारे समाज में शुरु से ही कमजोर अंग मानी जाती हैं, हम हमेशा यही सोचते है यह क्या कर सकती है। इनको सिर्फ़ साज शृंगार आता है। यह बहुत ज़्यादा तो घर के काम कर सकती।
शिवरानी या किसी भी महिलाएं की बहादुरी को हम एक से दो दिन में भूल जाते है पर मर्दों की बहादुरी के किस्से हमें लगभग रोज़ ही सुनाये जाते हैं। जितना गर्व हम बेटों की बहादुरी पर करते हैं, उतना ही बेटियों पर भी करें तो हमारे समाज में शिवरानी जैसी बेटियों की कमी नहीं आएंगी।
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