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तुम एक पति बनते ही अजनबी क्यों बन गए?

दोनों की शादी जब हुई, माता-पिता और रिश्तेदार बुद्धिजीवी होते ही हैं, वो तो घोषणा कर बैठे कि ये रिश्ता नहीं चलना, छ: महीने भी।

दोनों की शादी जब हुई, माता-पिता और रिश्तेदार बुद्धिजीवी होते ही हैं, वो तो घोषणा कर बैठे कि ये रिश्ता नहीं चलना, छ: महीने भी।

“तुम मेरे लिए मेरी छत जैसे हो, इंसान बेशक ताउम्र आसमान को पाने की उम्मीद करता है। पर ये भी सच है आसमान पर वो रह नहीं सकता। सुकून से रहने के लिए उसे धरती ही चाहिए! धरती पर भी वो खुले आसमान के नीचे नहीं रह सकता। उसको छत चाहिए!” सुगंधा ने प्रसून से कहा।

प्रसून और सुगंधा की शादी को 5 साल हो चुके हैं फिर भी दोनों अब भी शादी से पहले की दोस्ती को बखूबी निभाते हैं। दोनों की शादी जब हुई तो दोनों के ही माता पिता इससे खुश नहीं थे।रिश्तेदार तो बुद्धिजीवी होते ही हैं, वो तो घोषणा कर बैठे की ये रिश्ता नहीं चलना छ: महीने भी।

ऐसा नहीं है कि दोनों के बीच कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ या कभी उन्हें लगा कि कहीं गलत फैसला तो नहीं हो गया। कहते हैं ना रसोईघर में रखे निर्जीव बर्तन भी एक दूसरे से टकराकर शोर कर देते हैं तो पति-पत्नी तो सजीव प्राणी हैं। वो भी एक ही छत, एक ही कमरा, एक ही बिस्तर। तो टकराव होना तो स्वाभाविक ही है।

साथ रहते रहते एक दूसरे से इतना वाक़िफ हो जाते हैं कि कभी कभी लगता है थोड़े अजनबी ही ठीक थे। अरेंज मैरिज वाले तो फिर भी एक-दो साल एक दूसरे को खोजने में लगा देते हैं, पर लव मैरिज वाले तो वो काम पहले ही निपटा चुके होते हैं। इसलिए उनके सामने सिर्फ रह जाती हैं ज़माने की दी हुई चुनौतियां।

सुगंधा और प्रसून ने बहुत सी ऐसी ही घोषणाओं को झूठा साबित कर दिखलाया। सुगंधा ने बच्चे के   होने के बाद नौकरी छोड़ दी थी लेकिन अब वो इतने गहरे अवसाद में चली गई कि एक वक्त ऐसा लगा जैसे उनका रिश्ता टूटने के कगार पर है।

प्रसून भी अपने काम और सुगंधा की तबीयत को लेकर बहुत परेशान रहने लगा था। इसलिए घंटों ऑफिस में ही बैठा रहता था। सुगंधा को ये बात और दुख देती कि अब तो कोई दोस्त भी नहीं जिससे अपने मन की बात कह सकूं।

सुगंधा ने एक दिन ये तक बोल दिया, “तुम तो दोस्त ही ठीक थे प्रसून। पति बनते ही एक अजनबी से बन गए हो।”

प्रसून ने भी महसूस किया कि पहले सुगंधा के एक दिन ऑफिस ना जाने पर भी कितना परेशान हो जाता था और अब घंटों यहीं बैठा रहता हूं ताकि घर जाकर मैं ये उदासी ना फैली देखूं। प्रसून ने फैसला किया कि अब सुगंधा को अपने पैशन को ही उसका प्रोफेशन बनाने में मदद करनी होगी तभी वो इस अवसाद से बाहर आ पाएगी। और यूँ प्रसून की प्रेरणा और मदद से सुगंधा का बुटीक भी खुल गया और खूब अच्छा चला भी।

यूंही एक दिन बात करते हुए प्रसून ने पूछा, ” देखो! पैसा कैसी चीज़ है। कुछ साल पहले हम दोनों ही परेशान थे। कभी लड़ाई इतनी हो जाती की लगता रिश्ते को ख़तम कर दें। पर जबसे तुम्हारा बुटीक खुला सब ठीक हो गया।”

“नहीं! यहां पैसे का कोई रोल नहीं। बात मन के सुकून की है। मैंने हमेशा जॉब करके अपने लिए सब किया, तो मुझे खुद को लग रहा था कि मैं बोझ सी हो गई हूं। मेरा मन खुश नहीं था तो झगड़े भी हो जाते थे।”

“तो अब तुम्हारा मन खुश है? क्या तुम्हें कभी मैंने किसी चीज की कमी महसूस होने दी या कभी तुम्हारी सैलरी या पैसा मांगा हो? तो तुम अवसाद की शिकार क्यों हो गई ये नहीं समझ पाया मैं।”

“तुमने कोई कमी नहीं रखी। बात होती है मन की संतुष्टि की। बचपन से हम पढ़ाई करते हैं खूब जी तोड़ मेहनत करते हैं कि कुछ करना है। बाद में सिर्फ पति के भरोसे ही बैठे रहो तो इतनी मेहनत का क्या फायदा था फिर? अगर अपनी कोई पहचान ही ना बना सके तो?”

“चलो भई मान लिया तुम्हारी बात को। अच्छा ये तो बताओ मैं दोस्त तो अच्छा था, प्यार भी अच्छा हूं, पर जीवनसाथी भी अच्छा हूं कि नहीं?”

“तुम जीवनसाथी ही नहीं जीवन सारथी भी बहुत अच्छे हो। मैं अगर मकान की दीवार हूं तो तुम छत हो।”

“छत तो तुम अपनी कमाई से भी खरीद सकती हो। इसमें कौन सी बड़ी बात है?”

“हां। छत जरूर अपनी कमाई से खरीद सकती हूं पर छत जैसी सुरक्षा और सुकून तुम्हारे अलावा और कौन दे पाएगा मुझे?”

“यार! मैंने सोचा था तुम मेरी तारीफ में कहोगी कि तुम मेरी ज़िन्दगी हो, मेरा दिल हो। तुम दीवार और छत की बातें करने लग गईं।”

“तुम्हें भी पता है ज़िन्दगी, दिल, सब इंसान का व्यक्तिगत होता है। हां, वो उसे किसी और को सौंप जरूर देता है पर छत जैसा होना हर जीवनसाथी के बस की बात नहीं है। लोग सोचते हैं कि पति कमाए, औरत घर चलाए पर औरत की पसंद नापसंद, उसका आत्मसम्मान, उसकी अपनी पहचान भी कोई चीज है। ये सब कोई जीवन सारथी ही सोच सकता है सारे जीवन साथी नहीं।”

प्रसून सुगंधा की बात की गहराई को जब समझा तो कुछ कहने की बजाय सुगंधा को गले से लगा लिया। फिर कहा, “इस छत की नीचे वीराना है, अगर उस मकान को घर बनाने के लिए तुम जैसी जीवनसाथी ना हो।”

दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर से पहली मुलाक़ात से प्रेम में खो गए।

दोस्तों, प्यार सिर्फ प्रेमी प्रेमिका के बीच ही नहीं होता। प्यार का हर रंग खूबसूरत होता है और अगर वो प्यार बरकरार रहे तो फिर क्या ही कहने, ज़िन्दगी इन्द्रधनुष सी बन जाती है!

मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty Images Signature via CanvaPro 

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