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मेरे पति सिर्फ एक एटीएम कार्ड बन कर रह गए…

कुछ बच्चे अपने माता-पिता को एटीएम कार्ड समझते हैं पर कुछ माता-पिता भी ऐसे होते हैं जिनके लिये कमाऊँ पूत उनके लिए एटीएम कार्ड की तरह होते हैं। 

शेखर देर रात को ऑफिस से थका हारा घर आता है पत्नी शिखा दरवाजा खोलती है और कहती है, “तुम कपड़े बदल लो मैं खाना लगाती हूँ।”

शेखर एक कम्पनी में अच्छे पद पर कार्यरत है और अच्छा कमा लेता है पत्नी शिखा गृहणी है क्योंकि शेखर नहीं चाहता कि पत्नी कोई जॉब करे। दो प्‍यारे बच्चे हैं। सब तरह से सुखी परिवार है।
शेखर कपड़े बदल कर डाइनिंग टेबल पर आ जाता है और शिखा खाना परोसती है।

“पापा का फोन आया था, उन्होने कोई प्लॉट देखा है वो उसे खरीद रहे हैं, घर बनाने के लिये।”

ये सुनकर शिखा का मुँह बन जाता है, पर वो कुछ नहीं बोलती, चुपचाप खाना खाती रहती है।
शेखर फिर कहता है, “पापा ने पैसे मांगे हैं।”

अब शिखा गुस्सा हो जाती है, “हम कहाँ से देंगे पैसे? उनके पास पहले से ही दो घर हैं। अब तीसरे घर की क्या ज़रूरत है? हम खुद किराये के घर में रहते हैं।”

शेखर चिल्लाकर बोलता है, “अब माँग रहे हैं तो देने तो पड़ेंगे ही। जिस घर में रह रहे हैं, वह छोटा पड़ रहा है।”

“तो दूसरे घर में क्यों नहीं रहते? वह तो बड़ा है।”

“अरे तो उसकी लोकेशन अच्छी नहीं है, शहर से दूर हैं वह घर।”

“आदमी कपड़ा भी सोच समझकर लेता है और यहां घर ऐसे ही ले लिये गये। कुछ समय बाद तीसरे घर में भी कोई समस्या आ जायेगी तब?”

शेखर कुछ नहीं समझना चाहता। दोनों के बीच बहस हो जाती और बातचीत बंद। शिखा का मन उचाट रहने लगता है। हर समय ससुराल से किसी न किसी बहाने से पैसे की माँग होती रहती और वे भेजते रहते, जिसकी वजह से उनके घर की शांति भंग होती रहती। पर शेखर अपने माता-पिता को मना नहीं करना चाहता था इसलिये उसने खाना-पीना छोड़ दिया और अनशन पर बैठ गया ताकि शिखा पर दबाव बना सके।

शिखा ने अपने ससुर से बात की पर वह नहीं माने। कहने लगे, “पैसे तो तुम्हें देने ही पड़ेंगे। बोलो कितने लाख दोगी?” शिखा यें सुनकर अवाक रह गयी। और उसने हथियार डाल दिये और पैसे भेज दिये गए।

शेखर शिखा को कहता रहता, “वहाँ प्रोपर्टी पर हमारा भी तो हक है। तो चिंता की क्या बात है?”

कुछ महीनों बाद शेखर रक्षाबंधन पर अपने घर गया। वहाँ से आने के बाद से वह उदास सा रहने लगा। जब शिखा पूछती तो कोई जवाब नहीं देता। एक दिन शिखा ने शेखर से प्रोपर्टी की बात की तब शेखर बोला, “पापा-मम्मी ने तीनों प्रोपर्टी में छोटे भाई (संजय) का नाम डलवा दिया है।”

“तो तुम्हारा भी नाम डलवा दें।”

“बोला था, पर उन्होने मना कर दिया। मैं रिटायरमेंट के बाद वहाँ रह सकता हूँ, पर प्रोपर्टी में मेरा नाम नहीं रहेगा। संजय की कमाई कम है तो पापा-मम्मी उसको ही सब कुछ देना चाहते हैं।”

“तुमने ही कहा था न कि वहाँ हमारा भी हक है। हम यहाँ किराये के घर में रहते हैं और वहां मकान पर मकान खरीदे जा रहे हैं। अगर उन्हें सब कुछ संजय को देना था तो पैसे की डिमाण्ड करते समय क्यों नहीं बताया? अपने ही बेटे के साथ धोखा कर गये?”

“मैं तो विश्वास करके हर बार पैसे भेजता रहा, मुझे क्या पता था वे लोग मेरे साथ ऐसा करेगें?”

शिखा ने उसी समय अपनी सास को फोन मिलाया पर सास ने दो टूक जवाब दे दिया, “प्रोपर्टी में शिखर का नाम नहीं डलवायेंगे और तुम लोगों ने जो पैसा दिया वह तुम्हारा फर्ज था। शेखर की और पैसा देने की इच्छा है तो वह दे सकता है।” ये सब सुनकर शेखर भौचक्का रह गया। शिखा को भी कोई जवाब नहीं सूझा और उसने फोन रख दिया।

बड़ों की नासमझी की वजह से कई रिश्तो में दरार आ गयी। जब माँ-बाप ही ऐसा करें तो इन्सान किस पर भरोसा करे?

शेखर उनके लिये सिर्फ एक एटीएम कार्ड बन कर रह गया।

मूल चित्र : gawrav from Getty Images Signature via, Canva Pro 

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