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प्रेगा न्यूज़ का ‘लता की तरह लतिका होगी’…आखिर कहना क्या चाहते हैं आप?

पहली बार देखा तो मोना सिंह वाला प्रेगा न्यूज़ का यह नया विज्ञापन बहुत अच्छा लगा लेकिन गहराई से सोचा तो इसमें छिपे कुछ पहलू हमें खटक गए।

पहली बार देखा तो मोना सिंह वाला प्रेगा न्यूज़ का यह नया विज्ञापन बहुत अच्छा लगा लेकिन गहराई से सोचा तो इसमें छिपे कुछ पहलू हमें खटक गए।

8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आने वाला है और इसी मौके के लिए प्रेगा न्यूज़ ने एक विज्ञापन रिलीज़ किया है। इस विज्ञापन के ज़रिए मां ना बन पाने वाली महिलाओं और उनके परिवार को एक ज़रूरी संदेश देने की कोशिश की गई है।

पहली बार देखा तो यह विज्ञापन अच्छा लगा लेकिन गहराई से सोचा तो इसमें छिपे कुछ पहलू हमें खटक गए। इस विज्ञापन का संदेश #SheIsCompleteInHerself तो अच्छा है पर यहां भी औरत की भूमिका को सबको ख़ुश रखने की ज़िम्मेदारियों में कैद कर दिया गया है।

ऐसा क्या है प्रेगा न्यूज़ के इस विज्ञापन में?

घर में छोटी बहू के मां बनने पर ख़ुशी का माहौल है। घर की दीवारों पर फूल सजे हैं, हर किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखरी हुई है और घर के एक हिस्से में रखे पालने को सब निहार रहे हैं। लेकिन इन सब के बीच है घर की वो बड़ी बहू जो शादी के कई साल बाद भी मां नहीं बन सकी। वो ख़ुश भी है और मायूस भी। उसकी आंखों में उम्मीद भी है और उदासी भी।

उसे हिम्मत देने के लिए विज्ञापन की कुछ पंक्तियां हैं –

तू मुस्कुराए औरों की ख़ुशी में मगर, क्यों महसूस करे एक कमी भी है

क्यों आंखो में नमी तेरे और होंठो पर चीख दबी सी है

अरे मकान को घर बनाया तूने, क्यों तू समझे ख़ुद को अधूरी

और भी कई किरदार हैं तेरे जो बनाए तेरी पहचान पूरी

चलिए ये तो अच्छा है कि घर के लोग बड़ी बहू को मां नहीं बन पाने पर ताने नहीं दे रहे, ये अच्छा है कि उसे कोई छोटी बहू से कम सम्मान दे रहा है और ये भी अच्छा है कि हमारे समाज में जिस तरह औरतों को बांझ कहकर उनका अपमान किया जाता है उसे भी सिरे से नकारा गया है।

इसमें बताया गया है कि शहरी भारत में हर 6 में से 1 दंपति इंफर्टिलिटी से लड़ रहा है जिसकी वजह से औरत को कई सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक परेशानियों से गुज़रना पड़ता है। ये मुद्दा उठाकर अच्छा संदेश दिया गया है।

लेकिन छिपी है पितृसत्तात्मक समाज की छाया

लेकिन एक बार फिर से देखेंगे तो पितृसत्तात्मक समाज की छाया नज़र आएगी। हर बार की तरह इसमें भी बहू को इंसान नहीं ‘सुपर वूमन’ दिखाने की कोशिश की गई है, जो सबका ख़्याल रखती है। पापा की शुगर कंट्रोलर है और जिसके हाथ में मां की बीमारी को ठीक करने का जादू। जो घर के बच्चों के पढ़ाती भी है और सबके दु:ख में चट्टान की तरह सबसे आगे खड़ी रहती है।

अरे भई, क्यों बहू के कंधों पर ही सबको ख़ुश रखने का दारोमदार है? क्यों आज भी लड़कियों से ये उम्मीद की जाती है कि वो घर की बहू है तो सबसे पहले उठेगी, खाना बनाएगी, ऑफिस भी जाएगी और ऑफिस से आकर भी घर संभालती रहेगी। घर के आदमी लोग क्यों नहीं सबसे पहले उठकर नाश्ता बना सकते और ऑफिस से थका-हारा आया आदमी कुछ करेगा, ये बात तो कभी की ही नहीं जाती।

परफेक्ट होना क्या सिर्फ बहु की ज़िम्मेदारी है?

ये 21वीं सदी का विज्ञापन है और हम आज भी वही बातें कर रहे हैं जो सदियों पहले करते थे।

घर में अगर लड़की होगी तो वो भी लता भाभी की तरह सुपर वूमन ही बनेगी, ये अधिकार आपको किसने दिया है? एक बच्ची को दुनिया में आने से पहले ही ज़िम्मेदारियों के बोझ में दबाने की कोशिश क्यों की जा रही है? लता तो चलो सबका ख्याल रखती है लेकिन उसका ख़्याल कौन रख रहा है? क्या उसके चेहरे की उदासी आप पढ़ पा रहे हैं?

#SheIsCompleteInHerself का मतलब है औरत जैसी भी है वो अपने आप में पूरी है। उसमें भी दूसरों की तरह कमियां और ख़ूबियां होती है। लेकिन ये बात शायद विज्ञापन पूरी तरह से समझा  नहीं पता।

शादी होने से पहले लड़कियों को अपने घर से ही सीख मिल जाती है। बेटा जल्दी उठ जाना, पति और सुसराल वालों का ध्यान रखना, अच्छा खाना बनाना। लेकिन अगर औरत इनमें से कुछ न कर पाए तो क्या वो शादी नहीं कर सकती? हमें परफेक्ट बहू होने जैसी दकियानुसी बातें और सड़े-गले पैमाने पर ऐतराज़ है।

इस विज्ञापन ने नारीवादी संदेश देने की कोशिश तो की है लेकिन काफ़ी हद तक ये कोशिश नाकाम हो गई है। हमारे दिमाग में ठूंस-ठूंस कर औरत की एक छवि को छाप दिया गया है। हम खुद ही सोच लेते हैं कि ये औरत है तो इसे खाना बनाना, घर संभालना, सबका ख़्याल रखना, सब आना चाहिए। हमें अपने इस दिमागी कचरे को साफ करके नई दिशा देनी होगी। मैं फिर से कहूंगी औरत को इंसान समझें, सुपर वूमन नहीं।

मूल चित्र : Screenshot, YouTube 

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