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थैंक यू प्रिया रमानी, हम सब की ताकत बन हमारे ख़ातिर लड़ने के लिए

29-शब्द के ट्वीट पर अट्ठाईस महीने, 53 सुनवाई, सत्ता में बैठे पावरफुल लोग, और हम सब के लिए सच्चाई के साथ खड़ी एक महिला - प्रिया रमानी!

29-शब्द के ट्वीट पर अट्ठाईस महीने, 53 सुनवाई, सत्ता में बैठे पावरफुल लोग, और हम सब के लिए सच्चाई के साथ खड़ी एक महिला – प्रिया रमानी!

“हर बार जब कोई महिला खुद के लिए खड़ी होती है, तो वह सभी महिलाओं के लिए खड़ी होती है।” – माया एंजेलो के कोट्स में से ये मेरा पसंदीदा है और आज इसी बात की ग़वाह हैं पत्रकार प्रिया रमानी। 

29-शब्द के ट्वीट पर अट्ठाईस महीने, अदालतों में 53 सुनवाई, सत्ता में बैठे पावरफुल लोग, और हम सब के लिए सच्चाई के साथ खड़ी एक महिला – आख़िरकार हम जीत गए।

मुझे याद है, 2018 में #MeToo आंदोलन के दौरान जब प्रिया रमानी ने एम जे अकबर के खिलाफ अपनी आवाज़ उठायी तो उन पर कई तरह के प्रश्नों की बौछार हो गयी थी। और ये सिर्फ रमानी के केस में ही नहीं, बल्कि कई महिलाओं, जिन्होंने हिम्मत जुटाकर अपनी बात कही, को इन प्रश्नों का सामना करना पड़ा है। कई लोग इसे पब्लिसिटी स्टंट का नाम दे रहे थे तो कई लोगों के आरोप थे कि पैसों के लिए औरतें ये सब कर रही हैं।

तो ये रहे आपके सवालों के ज़वाब :

इसके खिलाफ तब क्यों सामने नहीं आयी? 

वर्डिक्ट के अनुसार: “यह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि ज्यादातर केसेस में, यौन उत्पीड़न और यौन शोषण के अपराध बंद दरवाजे या निजी तौर पर किए जाते हैं। कभी-कभी पीड़ित खुद नहीं समझ पाता है कि उनके साथ क्या हो रहा है या उनके साथ जो हो रहा है वह गलत है।” हाँ, हमे नहीं पता होता है कि हमें क्या करना चाहिए क्योंकि जितना आसान ये सुनने में लगता है कि तुरंत उसके ख़िलाफ़ विरोध करो, ये उतना आसान नहीं होता है।   

समाज में इज़्ज़तदार लोग ऐसी हरकते नहीं कर सकते।

कोर्ट ने कहा, “समाज में सम्मानित व्यक्ति की गिनती में आने के बावजूद वे अपने व्यक्तिगत जीवन में महिलाओं के प्रति क्रूर हो सकते हैं।” आपको भंवरी देवी का केस याद है? नहीं याद तो मैं बता दूँ, पहले उसमे भी यही तर्क देकर आरोपियों को बरी किया गया था कि वे समाज के इज़्ज़तदार लोग हैं, वे ऐसा नहीं कर सकते।      

सोशल मीडिया पर बोलने की क्या ज़रूरत है?

इस पर कोर्ट का कहना है, “महिलाओ को अपनी पसंद के किसी भी प्लेटफार्म पर और दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।” तो अगली बार सवाल खड़ा करने से पहले इस स्टेटमेंट को याद कर लें। 

इन सवालों की लिस्ट बहुत लम्बी थी। लेकिन प्रिया रमानी ने सबका सामना किया और आज उनके डटे रहने के फ़ैसले ने सबके मुँह पर ताला लगा दिया है।  

फैसले के बारे में बात करते हुए, रमानी ने कहा कि उम्मीद करती हूं कि और महिलाएं यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएंगी। इसके साथ ही इस फैसले से ताक़तवर लोग पीड़िताओं को अदालत में घसीटने से पहले दो बार सोचेंगे। यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को यह फैसला समर्पित है। 

क्यों आज हम सब महिलाएँ इस फैसले से इतना जुड़ाव महसूस कर रही हैं?

इस पर भारत में महिलाओं की आवाज़ उठाने वाले ट्विटर समूह मी टू इंडिया ने ट्वीट किया, ‘हमने ये लड़ाई जीत ली है। अभी कहने के लिए शब्द नहीं हैं। बस आंख में आंसू हैं, रोंगटे खड़े हो रहे हैं। सभी के साथ एकजुटता। हम प्रिया रमानी की हिम्मत के आभारी हैं।’ 

साथ ही हज़ारों महिलाओं ने अलग अलग ज़रिये से इस फैसले पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की और प्रिया रमानी को शुक्रिया कहा। क्योंकि यह न केवल यौन उत्पीड़न के मामलों में कानून की मदद लेने वाली महिलाओं के लिए, बल्कि एक समाज के रूप में हमारे लिए महत्वपूर्ण क्षण है। जिस समाज में “छवि”, “प्रतिष्ठा” जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक महिला को चुप कराने और उन पर ही सवाल खड़े करने के लिए किया जाता है वहां अदालत से इस पर बयान आना हमारे लिए एक कदम आगे बढ़ने जैसा है।  

यही कारण है कि आज हम सब महिलाएँ इस फैसले से इतना जुड़ाव महसूस कर रही हैं। इस फैसले ने साबित कर दिया कि सत्ता में बैठे लोग किसी महिला को चुप कराने के लिए कानून को खरीद नहीं सकते हैं। महिलाएँ अपने हक़ और न्याय के लिए सच्चाई के साथ खड़ी हो सकती हैं क्योंकि उन्हें भी बिना किसी डर के घर से बाहर निकल कर सम्मान के साथ काम करने का अधिकार है। और जब भी इस सम्मान और गरिमा पर चोट लगेगी तो वो आवाज उठांएगी और जीत कर आऐंगी। 

इस वर्डिक्ट से क्या बदलेगा हमारे लिए? 

सबसे पहले जुडिशरी पर एक बार हम सबको भरोसा हो गया है। जिन महिलाओं ने न्याय की उम्मीद खो दी थी, आज उनको एक हिम्मत मिली है। अपराधियों को एक सबक मिलेगा कि हर बार वे बच कर नहीं निकल सकते हैं। काम के लिए महिलाओं के साथ होने वाले वर्क प्लेस हरासमेंट को अब गंभीर रूप से लिया जाएगा।

साथ ही एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रविंद्र कुमार पांडेय ने जो 91 पेज का फैसला सुनाया है उससे कई ऐसे अनछुए पहलुओं पर बात हुई है। कोर्ट ने भी माना कि इस तरह के शोषण महिलाओं को मानसिक रूप से भी चोट पहुंचाते हैं और ये एक सोशल स्टिग्मा है जिसके कारण महिलाएँ खुलकर सामने नहीं आ रही हैं।   

तो इस वर्डिक्ट से बहुत कुछ बदल जाएगा अगर आप अपने लिए भी चुनौती देने को तैयार हैं। क्योंकि हमारी सोसाइटी में ये यौन शोषण इस तरह से घुल चुका है कि अपराधियों को कोई गलत समझता ही नहीं है। सिर्फ सवाल आप खड़े किये जायेंगे। तो ये आप पर निर्भर करेगा कि आप चुप रहकर आगे बढ़ेगी या अपने लिए न्याय लेकर आगे बढ़ेंगी। शायद आज तक हमें एक उदाहरण की ज़रूरत थी जिसकी कमी भी प्रिया रमानी ने पूरी कर दी है। प्रिया रमानी हम सबके लिए खड़ी हो सकती हैं तो हम भी हो सकते हैं। 

प्रिया रमानी के साथ ये शुरू से लेकर अंत खड़े रहे 

प्रिया रमानी के पति समर हलर्नकर

प्रिया रमानी की ये लड़ाई की कहानी इन दो नाम का ज़िक्र किये बिना अधूरी है। पहले हैं उनके पति समर हलर्नकर, जो शुरुवात से लेकर अंत तक रमानी के साथ खड़े रहे। इस लम्बी लड़ाई में पार्टनर की तरह समर हलर्नकर ने अपनी पत्नी का साथ दिया। समर हलर्नकर भी एक भारतीय पत्रकार हैं। जीत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर समर ने प्रिया रमानी और उनकी वकील की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “आखिरकार, प्रमाण।”  साथ ही अन्य लोगो के ट्वीट भी शेयर किये। 

प्रिया रमानी की वकील रेबेका जॉन

दूसरी ताकतवर महिला हैं, पत्रकार प्रिया रमानी की वकील रेबेका जॉन। रेबेका जॉन कई हाई-प्रोफाइल मामलों का प्रतिनिधित्व चुकी हैं और  देश के सबसे सम्मानित वरिष्ठ वकीलों में से एक हैं। कोर्ट के फैसले के बाद जॉन ने अपनी ख़ुशी और एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहा कि ये एक बहुत मुश्किल ट्रायल था, जब आप शक्तिशाली लोगों से लड़ते हैं और आपके पास केवल सच्चाई होती है, तो ये लड़ाई व्यक्तिगत रूप से भी आपके लिए बहुत रिलेवेंट हो जाती है। यह शायद मेरे करियर का सबसे महत्वपूर्ण केस है।

हाँ, हमें ऐसी शक्तिशाली वकीलों की ज़रूरत है जो सच के साथ खड़ी रहे। रेबेका जॉन का प्रिया रमानी के केस में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसके लिए हम सभी शुक्रगुज़ार हैं।  

थैंक यू प्रिया रमानी 

डिअर प्रिया रमानी, आपके उठाये इस कदम से आज अनगिनत महिलाओं को हिम्मत मिली है। अब महसूस हो रहा है कि डर कर, घुट-घुट कर रहने के बजाय उनका सामना करना होगा। हम महिलाओं को एक दूसरे की ताकत बनना होगा और खुद के लिए स्टैंड लेना होगा। आप बहादुर हैं। आप इंस्पिरेशन हैं। थैंक यू हम सबके लिए लड़ने के लिए।   

अंत रमानी के द्वारा अपने वोग के लेख में किये गए अंत से करूंगी, “अब और बहादुर महिलाएँ हैं जो सूट पहने राक्षस को इंगित करने से डरती नहीं हैं। हम आपको एक दिन मिलेंगे।”

मूल चित्र : Twitter

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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