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रमानी-अकबर केस में, रमानी की जीत में कोर्ट के निर्णय के यह कुछ मुख्य अवलोकन बदलते समाज की आवाज़ बनकर सुनायी दिए हैं।
17 अक्टूबर 2021 को #metoo मूव्मेंट का देश ने एक ऐतिहासिक क्षण देखा, जिसमें रमानी अकबर केस के नतीजे पर पहुंचते हुए रमानी के योन शोषण के बदले में उन पर अकबर द्वारा लगाए गए मान हानि के इल्ज़ाम को नकारते हुए अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार ने अपना फ़ैसला सुनाया और रमानी को बा-इज़्ज़त बरी किया।
रमानी की 2 साल लम्बी लड़ाई के बाद आए, 3 जजेज़ द्वारा रमानी-अकबर केस निर्णय के 90 पेज के जज्मेंट के कुछ मुख्य अवलोकन:
कॉन्स्टिटूशन द्वारा गैरंटीड आर्टीकल 21 और राइट टू इक्वालिटी के अंतर्गत हर महिला को किसी भी मंच पर अपनी बात रखने का पूरा हक़ है। रमानी ने अपनी बात कहने का माध्यम उनका वोग में लिखा आर्टीकल और ट्विटर का प्लैट्फ़ॉर्म चुना। सार्वजनिक मंच पर अपनी बात बोलने के लिए महिलाओं पर मानहानि का दावा करके उन्हें रोका नहीं जा सकता। उन्हें अपनी बात किसी भी रूप में और किसी भी मंच पर कहने का पूरा हक़ है।
जब भी किसी बड़े या प्रभावशाली इंसान के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठाता है तो तुरंत लोग उसके ऊपर चढ़ जाते है, जैसे अगर वह कोई उनके पसंदीदा स्टार हो तो विश्वास नहीं कर पाते की उनके चहिते ऐसा कोई भी काम कर सकते हैं। पर किसी का सोशल स्टेट्स या उसकी सामाजिक छवि हमें यह नहीं बता सकती की वो अपनी निजी ज़िंदगी में औरतों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं। किसी का सामाजिक स्टैटस उनकी पवित्रता का प्रमाण नहीं माना जाना चाहिए।
काफ़ी समय औरतें अपने साथ हुए ग़लत को बताने में घबराती हैं कि समाज में लोग बातें करेंगे और इस घटना को उनके इज़्ज़त पर लगे धब्बे की तरह देखेंगे। कुछ केस में तो पीड़ित को बहुत समय तक समझ भी नहीं आता कि उसके साथ ग़लत हुआ है, वह इससे अपनी ही गलती मान कर चुप रहती है।आज भी कई केसेस में समाज पीड़ित को ही कुछ हद तक दोषी मानता है, लेकिन हमें समझना चाहिए उनके साथ हुई इस घटना में उनकी कोई गलती नहीं है, बल्कि फिर भी इसके दुष्प्रभाव उन्हें झेलने पड़ते है।
अकबर ने रमानी पे इलज़ाम लगाने द्वारा कहा था कि वे दशकों पुरानी बात को अब क्यूँ बोल रही हैं। बहुत से केसेस में जब औरतें अपनी कहानी बताती हैं तो यही कहा जाता है कि पुरानी बात अब क्यूँ बता रही हैं। पर जैसे टूटा हुआ पैर ठीक होने के बाद भी चलने में बहुत समय तक दिक़्क़त होती है वैसे ही आत्मा पे लगे ज़ख़्म समय के साथ भर जाने के बाद भी उसके बारे में बात करना मुश्किल होता है। और इसके बारे में जब वह मानसिक रूप से तैयार हो तब बताने के लिए औरतों को मुज़रिम करार नहीं कर सकते।
घटी हुई घटना के बारे में बात उस समय हो या सालों बाद, उससे सच नहीं बदलेगा कि वह घटना हुई थी।
यौन शोषण का पीड़ित पर सिर्फ़ मानसिक रूप से ही प्रभावित नहीं होती बल्कि साथ ही उसके आत्मविश्वास और गरिमा पर भी चोट होती है। यह कहना कि इस घटना को सामने ला कर औरत कसूरवार की प्रतिष्ठा ख़राब कर रही है। ग़लत है, यह उनकी आवाज़ को दबाने के रूप मे दिखायी पड़ता है। इस घटना से उस औरत की गरिमा पे जो चोट आयी है वो किसी की प्रतिष्ठा से ऊपर नहीं।
लक्ष्मण जी के उदाहरण के साथ कोर्ट ने महाभारत की बात करते हुए रानी द्रौपदी की न्याय का उदाहरण दिया कि कैसे उन्होंने दुष्शाशन द्वारा घसीटे जाने की वैधता पर सवाल उठाया। गहन व्यक्तिगत आघात की स्थिति में भी पूछे जाने वाले सवालों का सूक्ष्मता से जवाब देना, उनके मानसिक शक्ति और तार्किक विश्लेषण की क्षमता का संकेत है।
कोर्ट ने कहा कि यह महाकाव्य एक महिला की गरिमा के महत्व को दिखाने के लिए लिखा गया था और यह शर्मदायक है कि देश में ऐसी घटनाएं अभी भी हो रही हैं।
पूरे देश में रमानी-अकबर केस निर्णय की यह ख़बर उत्सव की लहर ले आयी है। यह जीत सिर्फ़ रमानी की नहीं बल्कि इस समाज में एक औरत के गौरव की जीत है। और कोर्ट के निर्णय के यह कुछ मुख्य अवलोकन बदलते समाज की आवाज़ बनकर सुनायी दिए हैं।
मूल चित्र : Twitter
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