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भारत के किसान आंदोलन पर इंटरनेशनल स्टार रिहाना ने भी की बात, हम कब करेंगे?

रिहाना के ट्वीट के बाद कई भारत में जारी इस किसान आंदोलन को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों और संस्थाओं का ध्यान भी इस मुद्दे की तरफ़ खिचा है।

रिहाना के ट्वीट के बाद कई भारत में जारी इस किसान आंदोलन को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों और संस्थाओं का ध्यान भी इस मुद्दे की तरफ़ खिचा है।

हमारे देश में इस वक्त अगर सबसे बड़ा कोई मुद्दा है तो वह है किसान आंदोलन का। 26 नवंबर, 2020 को ये आंदोलन तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार की ओर से पारित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग उठी।

हमारे देश का अन्नदाता पिछले 2 महीने से सड़क पर टैंट लगाकर, सब्ज़ियां उगाकर, अपने घर-परिवार से दूर रहकर प्रदर्शन कर रहा है। किसानों का ये आंदोलन इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि अब देश ही नहीं विदेशी हस्तियां भी इस मामले पर बात कर रही हैं। इंटरनेशनल पॉप स्टार रिहाना ने हाल ही में एक ट्वीट किया है जिसे देखकर लग रहा है कि आख़िर क्यों नहीं किसानों को उनके सवालों का जवाब मिल रहा है? ऐसा लगना वाजिब भी है क्योंकि किसानों और सरकार के बीच 11 बार मीटिंग हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है।

रिहाना ने #FarmersProtest हैशटैग के साथ ट्वीट करते हुए लिखा है why aren’t we talking about this?! (‘आखिर हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?)

रिहाना के ट्वीट के बाद कई भारत में जारी इस किसान आंदोलन को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों और संस्थाओं की ध्यान भी इस मुद्दे की तरफ़ खिंचा है। इनमें एक जाना-माना नाम 18 साल की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग का भी है। वो लिखती हैं – “हम भारत में किसान आंदोलन के साथ खड़े हैं।’

इसके अलावा रिहाना के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट वॉच ने पोस्ट करते हुए भारतीय सरकार की निंदा की।

ये साफ़-साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि इस आंदोलन से भारत का छवि दूसरे देशों में कोई अच्छी नहीं बन रही है। सरकार को कोई ना कोई निर्णय लेना ही होगा। देश का अन्नदाता जब अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर खड़ा है तो उसकी आवाज़ सुनी जानी चाहिए।

26 जनवरी, 2021 को जो लाल किले पर हुआ उसकी तस्वीरें हम सबने देखी जिसे लेकर कई बातें सुनने को मिल रही हैं। अंधे मीडिया के बीच में कुछ लोग सच दिखाने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन एक बात हमें याद रखनी होगी कि हमें स्वयं तय करना होगा कि सच क्या है। ना ही कोई चैनल, ना ही कोई अख़बार और ना ही कोई बड़ा पत्रकार हमें ये सिखा सकता है कि सच क्या है। ऐसे माहौल में हमें अपने लोकतंत्र को और भी समझने की ज़रूरत है।

घर की चारदीवारी में बैठकर टीवी की हैडलाइन पढ़ने से कुछ नहीं होगा। बाहर निकलकर अपने चुने हुए लोगों से सवाल अब पूछने ही पड़ेंगे। हर सिक्के के दो पहलू होते ही हैं और अगर आप ख़ुद की सोच और तर्कों को जस्टिफाई कर पा रहे हैं तो आप सही हैं। अपना पहलू ज़रूर चुनें लेकिन सोच-समझकर।

मूल चित्र : Twitter/ Danny Moloshok/Reuters 

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