कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
सविता जी का तो अब पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने सुधा से बदला लेने की सोची और जल्द ही उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया।
“अरुण! आपने घर पर हमारे लिए बात करी?”
“हां सुधा पर मां का वही हाल है। वो मेरी शादी एक अमीर खानदान में कराना चाहती हैं। पर तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे बिना किसी और की सोच भी नहीं सकता।”
“तो फिर तुम क्या करोगे?”
“वही आखिरी दांव मां के साथ…”
“पर वो क्या अरुण?”
“बस देखती जाओ और तैयार हो जाओ मेरे घर और मेरे दिल में बसने के लिए (हंसते हुए)।”
अरूण और सुधा को एक कंपनी में काम करते पहले प्यार हुआ और अब वो शादी करना चाहते हैं। पर अरुण की मां सविता जी एक अमीर और पैसे वाली बहू लाना चाहती थीं। और साथ ही वो अरुण की पसंद से बिल्कुल भी सहमत नहीं थीं।
“मां…मां…कहां हो आप?”
“रसोई में बेटा।”
“काम छोड़ो इधर आओ आप, मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है।”
“हां बोलो बेटा क्या बात करनी है।”
“मां मैंने आपको एक लड़की के बारे में बताया था ना।”
सविता जी अनजान बनते हुए… “कौन लड़की मुझे याद नहीं।”
“वही मां जो मेरे साथ आफिस में काम करती है।”
“देख अरूण मैंने पहले ही बोल दिया था किसी कंगाल की बेटी नहीं आएगी मेरे घर।”
“मां एक बार उससे मिलो तो वो आपको भी पसंद आएगी और सुधा दिखने में सुंदर होने के साथ समझदार भी है। आपका घर भी बहुत अच्छे से संभालेगी।”
“पर पैसे तो नहीं लाएगी और ना तो हमारे घराने का मुकाबला होगा। कल को रिश्तेदारों में भी नाक कटेगी जो स्वागत सत्कार ना कर पाएंगे।”
“मां अगर आप अपनी ज़िद्द पर हो तो सुन लो मैं भी उसी से शादी करुंगा। वरना बैठी रहना अपनी ज़िद्द पकड़े।”
उस दिन के बाद सविता जी ने अपने बेटे को बहुत समझाने की कोशिश करी। पर उसने उनकी एक ना सुनी, आखिर थक हार कर उनको बेटे की बात माननी पड़ी। सुधा के घर शगुन लेकर आई सविता जी ने बातों-बातों में उसके परिवार से अमीरी के बखान करने ना भूले।
“देखिए तिवारी जी(आलोक जी सुधा के पिता) हम दान दहेज में तो विश्वास नहीं रखते बस इतना चाहते हैं कि मेहमानों की आवभगत अच्छे से कर देना आप। बाकी तो आप लोगों से ज्यादा की उम्मीद नहीं। हमारे अरुण को एक से एक अमीर खानदानों के रिश्ते आए थे। पर पता नहीं आपकी लड़की में उसे क्या दिखा कि वो लट्टू हो गया। अब अपने इकलौते बेटे की पसंद को मना भी नहीं कर सकते थे।” सुधा जी एक सांस में बोल गईं।
सविता जी के जाने के बाद सुधा के माता-पिता परेशान दिखे। पर सुधा ने अरुण का हवाला दे अपने पैरेंट्स को मना लिया। काफ़ी धूमधाम से ये शादी संपन्न हुई। सविता जी ने सोचा मेरे बिना कहे बहू के परिवार वालों ने कुछ तो दिया होगा। पर सुधा तो अपने साथ कुछ लेकर ही नहीं आई थी। सविता जी का तो अब पारा सातवें आसमान पर था। उन्होंने सुधा से बदला लेने की सोची और जल्द ही उन्होंने इस पर काम भी शुरू कर दिया।
सुधा इधर कमरे में अरुण का इंतज़ार कर रही थी। पर सविता जी कमरे में आ धमकती हैं, “अरे सुधा बहू! सो गई क्या?”
सुधा घबरा कर बोलती है, “नहीं मां जी।”
“सुन बेटा हमारे यहां एक रिवाज़ है जो मैं शादी के रीति-रिवाजों के बीच बताना भूल गई। आज तुम्हें स्टोर के बगल जो कमरा है वहां सोना होगा। कल पूजा के बाद ही तुम दोनों साथ रह सकते हो।” बेचारी सुधा सासू मां की बातों को टाल नहीं पाई। इधर उन्होंने अरुण को भी कसमें वगैरह देकर मना लिया।
सुधा ने देखा ये तो अजीब सा कमरा था और वो किसी तरह नींद का इंतज़ार करने लगी। सविता जी ने १२ बजते ही अजीब आवाज़ें निकालना शुरू किया और सुधा इन आवाज़ों को सुन डरने लगी। दूसरे दिन उसने अरूण को सारी बात बताई। पर वो मानने को तैयार नहीं, “कैसी बात करती हो सुधा मेरा बचपन बीता है। मुझे तो कभी भूत नहीं दिखा।” सुधा ने भी सोचा शायद मैं कुछ ज्यादा सोच रही और बातों को भुला दिया।
कुछ दिनों बाद सुधा रात में रसोई में सारा सामान व्यवस्थित कर गई। सुबह जब वो रसोई में गई तो सारा सामान फैला हुआ था। सुधा याद कर रही थी कि उसने अच्छे से रसोई जमाई थी फिर ये कैसे हो गया। सविता जी ये सब देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रहीं थीं। उनको लगा रहा था कि अब सुधा डर कर वापस अपने घर भाग जाएगी। सुधा के साथ रोज़ कुछ ना कुछ ऐसा ही हो रहा था। सुधा जब अरुण को कुछ बताती तो वो हंस कर टाल देता और बोलता, “ये सब तुम्हारा वहम है।”
आखिरकार सुधा ने ठान लिया कि वो जानकर रहेगी कि सच्चाई क्या है। रात का काम निपटा सुधा रोज़ की तरह अपने कमरे में गई। पर असल में वो छुपकर नज़र रख रही थी। उसने देखा सासू मां चुपके से उसके कमरे के पास कुछ लाल रेखा खींच रहीं थीं और उन्होंने नींबू काट कर डाल दिए और चुपचाप अपने कमरे में चलीं गईं। सुधा को अब सारा माज़रा समझ आ गया था और उसने भी सासू मां को मज़ा चखाने की सोची।
अगले दिन अरुण को किसी काम से दूसरे शहर जाना था। सुधा को ये अच्छा समय मिला। उसने रात होते ही अजीब सा मेकअप कर लिया। और कमरे में अजीब सी आवाज़ें आने लगीं जो उसने पहले से सेट की थीं। सविता जी को बड़ा अजीब लगा और उन्होंने बहू को आवाज़ लगाई। बहुत ढूंढने पर सुधा उसी स्टोर के बगल वाले कमरे में दिखी।
सुधा को देखते ही घबराते हुए सविता जी ने बोला, “बहू कितनी आवाज़ें दीं…तुमने सुना नहीं क्या?” पर सुधा ने उनकी बातों का कुछ जवाब नहीं दिया। सविता जी ने जब पास जाकर सुधा को पलटा तो उनकी हालत खराब हो गई। सुधा को देखते ही उनकी चीख निकल पड़ी। उन्होनें बोला, “तुमने ये क्या किया है बहू?”
सुधा हंसी को रोकते हुए बोली, “मैं वहीं भूत हूं जिसको तुमने शादी वाले दिन बुलाया था। अब मैं तुम्हारी बहू के अंदर हूं और तुमको लेकर जाऊंगा।”
सविता जी की तो हालत खराब वो तो हाथ-पैर जोड़ने लगीं। इधर सुधा उनसे मज़े लिए जा रही थी। सुधा ने बोला, “बताओ तुमने ये सब अपनी बहू के साथ क्यूं किया था?”
“मैं एक अमीर खानदान की बहू चाहती थी इसलिए ये स्वांग रचा था। जिससे वो परेशान होकर घर छोड़ कर चली जाए और मैं अपने बेटे की कहीं ऊंचे खानदान में शादी कर सकूं।” सुधा तुरंत सामान्य स्थिति में आ गई।
“सुधा तुम?”
“हां सासू मां…. मां क्या मैं आपको इतनी नापसंद थी कि ये नाटक रचा आपने। मैं रात दिन आपका दिल जीतने की कोशिश में लगी थी पर लगता है ये सब बेकार था।”
सविता जी को अपनी गलती का एहसास हो गया था। उन्होंने अपनी बहू से बोला, “बेटा मुझे माफ़ कर दो मैं पैसे के लालच में अंधी हो गई थी। सही ग़लत का फैसला नहीं कर पाई, पर अब नहीं…अब मुझे अपनी सारी गलतियों को सुधारना है।” और इसी के साथ उन्होंने सुधा को गले से लगा लिया।
मूल चित्र : Manu_Bahuguna from Getty Images via CanvaPro
read more...
Please enter your email address