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क्यों ये सारे नियम कानून मेरे लिए ही बने हैं…

एक स्त्री मांग भरे, मंगलसूत्र पहने, तभी लोग उसे थोड़ा बख्श देंगे, हाँ जी, किसी और की संपत्ति जो है, पुरुष इन नियमों के अधीन नहीं है, क्यों...

एक स्त्री मांग भरे, मंगलसूत्र पहने, तभी लोग उसे थोड़ा बख्श देंगे, हाँ जी, किसी और की संपत्ति जो है, पुरुष इन नियमों के अधीन नहीं है, क्यों…

देवी, त्यागमयी, सुंदर, सुशील
सती, सच्चरित्र, लज्जावान,
सारे स्त्री के गहने बना दिए,
जिन्हें पहनना उसकी मज़बूरी है।
न पहने,
तो सब, प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
पुरुष ही नहीं स्त्रियाँ भी।
ये भेदभाव, आखिर क्यों?

एक स्त्री मांग भरे, मंगलसूत्र पहने,
तभी लोग उसे थोड़ा बख्श देंगे,
हाँ जी, किसी और की संपत्ति जो है।
पुरुष इन नियमों के अधीन नहीं है,
उसके लिए कोई सिंदूर, मंगलसूत्र नहीं है।
ये भेदभाव, आखिर क्यों?

शराबी पति के मरने का दोष भी स्त्री का है,
वही कुलनाशनी है
बीमार पति को,यमराज से, वापस जो न ला पाई।
पति भले नामर्द हो, पर बेऔलाद होने का कारण,
औरत ही क्यों?
बाँझ तो स्त्री ही होती है न ?
पुरुष नहीं…
ये भेदभाव, आखिर क्यों?

बेटा पैदा होने पर खुशियाँ बरसती हैं,
मिठाइयाँ बँटती हैं।
और बेटी पैदा होने पर अँखियाँ बरसती हैं,
दुश्चिंताएँ बँटती हैं।
इतना भेदभाव, आखिर क्यों?

मूल चित्र : jessicaphoto from Getty Images via Canva Pro

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