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रश्मि चाची सास की बातों से बहुत आहत होती। ऐसा नहीं था कि वो जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन उसके संस्कार उसे बड़े का अपमान करने से रोक लेते।
“सावित्री जी अमन ने लड़की की फ़ोटो देख ली? उसे लड़की पसंद आयी कि नहीं बताइए तो। मुझे लड़की वालों को भी जवाब देना है।” राधेश्याम जी ने अपनी पत्नी से कहा।
“जी उसने तो कहा जो हम दोनों की पसंद वही उसकी भी पसंद। तो जैसा आपको ठीक लगे”, सावित्री जी ने कहा।
“ठीक है फिर मैं रिश्ते के लिए हाँ कर देता हूं। मुझे तो लड़की(रश्मि) और उसके परिवार वाले दोनों ही पसंद हैं”, राधेश्याम जी ने कहा।
कुछ महीनों बाद रश्मि और अमन की शादी धूमधाम से कर दी गयी। रश्मि संस्कारों से परिपूर्ण सांवली सलोनी मधुभाषी लड़की थी। जिसने आते ही अपने व्यवहार से घर के साथ साथ घर वालों के दिल मे भी जगह बना ली। लेकिन इन सब के बीच में सावित्री जी की देवरानी सुधा कभी कोई मौका नही छोड़ती। रश्मि को उसके रंग रूप को लेकर ताना मारने में।
सुधा हर बात में कहती, “भाभी क्या देखकर शादी की अमन की रश्मि से? कहाँ हमारा अमन दूध सा गोरा, कहाँ ये सावला रंग। मैं तो अपनी बहू दूध सी गोरी उतारूंगी। इतनी सुन्दर कि पूरा मोहल्ला देखता रह जायेगा। ताकि मेरे होने वाले पोता-पोती भी सुन्दर हों।”
सावित्री जी हर बार सुधा से कहती, “देखो सुधा मेरा मानना है कि इंसान की सूरत से ज्यादा सीरत सुंदर होनी चाहिए, जिस मामले में रश्मि एकदम खरी है। हमने रश्मि की काबिलियत और संस्कार देखकर शादी की थी। रूप और दहेज हमारी प्राथमिकता थी ही नहीं। मेरी बहु में संस्कारों की सुंदरता है। समझी सुधा? जो घर संसार चलाने के लिए सबसे जरूरी है।” लेकिन इन सब बातों का सुधा पर कोई असर नही पड़ता।
कुछ महीनों बाद ही सुधा के बेटे की भी शादी हुई। अपने कहे अनुसार सुधा ने अपने इकलौते बेटे अनुज के लिए अपनी बहु स्वाति को चुनने में धन और रूप को ही प्राथमिकता दी। स्वाति बहुत सुंदर थी और दहेज भी बहुत लेकर आयी थी। वो एक धनी परिवार की इकलौती बेटी थी। स्वाति को घर का कोई काम करना नहीं आता था और ना ही वो सीखने में कोई रुचि दिखाती थी। दिनभर बस अपने सजने सँवरने में ही व्यस्त रहती।
कुछ महीनों बाद करवाचौथ के मौके पर घर और मोहल्ले की सारी औरतें इकठ्ठा हुईं। स्वाति और रश्मि भी तैयार हो कर आयीं। लाल साड़ी में दोनों ही खूबसूरत दिख रही थीं कि तभी सुधा जी ने रश्मि को देखकर व्यंग्य करते हुए कहा, “अरे! रश्मि तुमने ये लाल रंग की साड़ी क्यों पहनी? ये रंग तो गोरे लोगों पर ही जचता है। सांवले रंग पर लाल रंग नहीं जचता।”
रश्मि चाची सास की ऐसी बातों से बहुत आहत होती। ऐसा भी नहीं था कि वो जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन उसके संस्कार उसे बड़े का अपमान करने से रोक लेते। तभी पीछे से सावित्री जी ने कहा, “बिलकुल गलत कहा तुमने सुधा। मेरी बहु तन, मन और संस्कार तीनों से ही गुणी और सुन्दर है। और रही बात लाल रंग की, तो इस पर हर किसी का समान अधिकार है, चाहे गोरा रंग हो या साँवला रंग।
मैंने पहले भी कहा है तुमसे आज एक बार फिर कहती हूं मेरी बहु में संस्कारों की सुंदरता है वरना आज वो तुम्हारी बात सुन के चुप ना रहती। और एक दिन तुमको भी इस बात का एहसास जरूर होगा। चलो बहु पूजा शुरू करो।” सबके सामने सावित्री जी का जवाब सुन के सुधा जी चुप हो गयी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। समय के साथ साथ स्वाति और सुधा में घर के कामों को लेकर झगड़े शुरू हो गए। अनुज स्वाति के रूप का ऐसा दीवाना था कि उसे सही गलत कुछ समझ ही नहीं आता। वो हर वक़्त स्वाति की ही तरफदारी करता। एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि स्वाति अनुज को लेकर अपने मायके चली गयी। और घर में सुधा जी अकेली अपना अपमान सह कर रोती रह गयी।
सुधा जी बेटे बहु के घर छोड़ जाने के गम में बेसुध पड़ी रही। तभी शाम को सावित्री जी रश्मि के साथ चाय नाश्ता लेकर सुधा के पास आयी। सुधा को चुप कराते हुए उन्होंने कहा, “अब बस भी करो सुधा रोना, जो होना था वो तो हो गया। अब अपना ख्याल रखो। ये लो चाय पियो।”
सुधा जी की नजर रश्मि पर गयी। तो रश्मि उन्हें आज सबसे सुंदर बहु दिख रही थी। तभी सुधा जी ने कहा, “सही कहा था आपने भाभी रश्मि में संस्कारों की सुंदरता है। किसी ने सही ही कहा है कि रूप की सुंदरता चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी पाख ही है। काश मैंने आपकी ये बात पहले समझ ली होती तो आज मेरा घर संसार बच जाता।”
दोस्तों उम्मीद करती हूं कि आप लोगो को मेरी ये रचना पसंद आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि संस्कार हमेशा सुंदरता पर भारी पड़ते हैं। इसलिए जब भी दामाद या बहु का चुनाव करें। तो पहली वरीयता संस्कारो को दें। सुंदरता को नहीं।
मूल चित्र : SujayGovindraj from Getty Images Signature via Canva Pro
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