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‘भारत की बुलबुल’ सरोजनी नायडू को आज याद करने के कई कारण हैं

जाहिर है सरोजनी नायडू का लालन पालन उस घर के महौल में हो रहा था जो उस वक्त देश के अधिकांश लड़कियों के लिए कल्पना से परे था।

जाहिर है सरोजनी नायडू का लालन पालन उस घर के महौल में हो रहा था जो उस वक्त देश के अधिकांश लड़कियों के लिए कल्पना से परे था।

बहुभाषाविद्द, अपने समय के मौलिक विचारक और अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित भाव से काम करने वाले अघोरनाथ चट्टोपाध्याय के घर सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ था। सरोजनी की मां सुंदर देवी अपने दौर में अंग्रेजी की अच्छी जानकारी रखने वाली महिला थीं। वह अपने पति से बांग्ला में बातचीत करती और बच्चों से हिंदुस्तानी जबान में और नौकरों से तेलुगु में। जाहिर है सरोजनी का लालन पालन उस घर के महौल में हो रहा था जो उस वक्त देश के अधिकांश लड़कियों के लिए कल्पना से परे था। विद्धान पिता और कविता लिखने वाली मां के अभिरूचियों का प्रभाव सरोजनी पर पड़ा।

सरोजिनी नायडू एक कवयित्री

मात्र 12 वर्ष के उम्र में उन्होंने “लेडी आंफ द लेक” कविता लिखी, इस कविता से हैदराबाद के निजाम इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सरोजनी को पढ़ने के लिए इंग्लैड भेजने का प्रस्ताव दिया। पहले लंदन के किंग्स कालेज और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कांलेज में उनका अध्ययन हुआ। “गोल्डन थ्रैशोल्ड” उनकी पहली कविता संग्रह थी। “बर्ड आंफ टाइम”, “ब्रोकन विंग” और “द फ़ैदर आंफ़ डान” ने उनको जाने-मानी कवयित्री के रूप में स्थापित कर दिया था।

सरोजिनी नायडू का विवाहित जीवन

भारत आने के बाद 1890 में उन्होंने ब्राह्मो विवाह अधिनियम के अनुसार अपना विवाह डां गोविंदराजुलू नायडू से किया। वह ब्राह्मण समाज से नहीं थे। उनकी चार संतानें हुई जयसूर्या(जो पिता के तरह डाक्टर और लोकसभा के सदस्य रहे), पद्मा (जो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रही), रणधीर और लीलामणि(जो विदेश सेवा) में रही। हैदराबाद में सरोजनी नायडू के मकान का नाम “गोल्डन थ्रैशोल्ड” के नाम से जाना जाता है।

कांग्रेस की प्रमुखतम नेताओं में से एक

बहुत कम लोगों को पता होगा कि सरोजनी गांधीजी के भारतीय राजनीति में आगमन से पहले से ही कांग्रेस की प्रमुखतम नेताओं में से थीं। सरोजनी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे, जिनके कहने पर सरोजनी  महात्मा गांधी 1914  में उस वक्त मिलने गई जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटते समय लंदन रुके थे।

भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू

लंदन में पढ़ रहे भारतीय छात्रों ने गांधीजी के लिए स्वागत समारोह रखा था, सरोजनी उनको लेने के लिए उनके कमरे तक गई। महात्मा गांधी का भोजन देखकर सरोजनी ने मुंह बिचकाया तो गांधीजी हंसे बिना नहीं रह सके और कहा, “ओह, निश्चिय ही तुम मदाम नायडू हो। दूसरा कौन इतना श्रद्धाहीन हो सकता है। भीतर आओ और मेरे भोजन में हाथ बंटाओ।” जाहिर है गांधीजी सरोजनी को उनकी काव्य प्रतिभा से परिचित थे। महात्मा गांधी ने ही सरोजनी नायडू को “भारत की बुलबुल” कहा था।

सरोजिनी नायडू और महात्मा गाँधी का रिश्ता

सरोजनी महात्मा गांधी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में लिखती हैं, “जिसका नाम हमारे देश में घर-घर में लिया जा रह है। वह एक छोटा सा आदमी जिसका सिर मुंडा हुआ था, फर्श पर बिछे जेक के काले कबंल पर बैठा था और जेल के दिए जाने वाले लकड़ी के प्याले में रखा हुआ कुछ उट-पंटाग सा भोजन कर रहा था।”

बाद में जब सरोजनी 1925  के कानपुर अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्षा चुनी गई तब महात्मा गांधी के काफी करीब पहुंचीं। उन्होंने छपे हुए भाषण को पढ़ने  की परंपरा को तोड़ते हुए भाषण दिया। सरोजनी को जब भी गिरफ्तार किया गया तो अधिकांश समय उनको गांधीजी और बा के साथ ही नजरबंद किया गया। एक बार तो उनकी तबीयत इतनी खराब हो गई कि उनके रिहाई के बारे में सोचा जाने लगा। सरोजनी ने मना कर दिया नजरबंदी के दौरान गांधीजी और बा के तमाम सुविधाओं का ध्यान वह स्वयं अपने निगरानी में करतीं।

भारतीय महिलाओं के उनके ख्याल नारीवादी व्याखाओं से भिन्न थे, उसमें मानवतावाद का पुट अधिक था जो उदारवादी अधिक था।

भारतीय महिला को ‘घर के सर्वोच्च पुजारी’ कहा

मतभिन्नता पर उन्होंने अपने विचारों को मौन नहीं रखा।  वे उसपर मुखर होकर बोलती रहीं। जिस समय कैथरिन मैयो की “मदर इंडिया” ने भारतीय महिलाओं के सामाजिक स्थिति पर अपनी राय रखी, उस समय सरोजनी नायडू ने भारतीय महिला को “घर के सर्वोच्च पुजारी” के रूप में प्रस्तुत किया। सरोजनी नायडू ने भारतीय महिलाओं के मताधिकार संबंधी अधिकार को जरूरी बताते हुए कहा कि “मैं यह मानती हूं कि भारतीय स्त्री जन्मजात प्र्शासक होती है भले ही उसका पति कमाता है घर में तो स्त्री ही वास्तविक शासक होती है। महिला का मताधिकार इसलिए मिलना जरूरी है क्योंकि वह अपने बच्चों में राष्ट्रवाद का आदर्श भरती है।”

पूर्व और पश्चिम के औरतों में कोई अंतर नहीं है

लंदन में अपने एक संबोधन में कहा कि “पूर्व और पश्चिम के औरतों में कोई अंतर नहीं है। तमाम अंतर के बाद सभी औरतों के नीचे एक बंधन है जो उन्हें जोड़ता है वह है नारीत्व। चूंकि नारीत्व विभाजित हो ही नहीं सकता फिर हम पूरे विश्व की महिलाओं को अलग कैसे कर सकते हैं?” जाहिर है सरोजनी पूरी दुनिया में महिलाओं के दमन को एक सूत्र में परिभाषित करती हैं।

भारत के आजादी के बाद उन्हें संयुक्त प्रांत का पहला राज्यपाल बनाया गया जो आज उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। वह हंसी करते हुए कहतीं, “वह गर्वनर नहीं गवर्नेस हैं जो मंत्रिमंडल को अनुशासित करती है।”

सरोजनी के सभी बच्चे आजीवन अविवाहित रहे, कई लोग इसका कारण सरोजनी के मातृत्व में कमी को बताते हैं। पर सरोजनी जैसी मेधावी, हाजिरजवाब, हंसोड़, भद्र, सहायता के लिए तत्पर महिला के व्यक्तित्व को देखकर यह आलोचना सही नहीं ठहरती है। उन्होंने बहुत अधिक कठोर और व्यस्त जीवन जीया जिसके कारण वह अपने परिवार को अधिक समय नहीं दे सकीं। बा के मरने के बाद आज देश में कस्तूबरा गांधी के नाम से जितनी भी शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी गतिविधियां हो रही है वह सरोजनी नायडू के श्रम का ही फल है।

महात्मा गांधी के मौत के बाद से ही सरोजनी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। फरवरी 1949 के तीसरे सप्ताह से ही उनका स्वास्थ्य में जो गिरावट आई वह कभी सुधरी ही नहीं और 2 मार्च 1949  को आजाद भारत में उन्मुक्त सांस लेने के लिए अधिक दिन तक नहीं रह सकीं। उनकी जीवन उनकी काव्य संग्रह “हैव ए ब्रोजन विंग” के तरह ही है जिसमें पक्षी अपने तमाम क्षमता के कारण पहचान तो पाती है पर उसका पंख टूट जाता है।

नोट: इस लेख को लिखने के लिए पद्मा नायडू के संस्मरण का सहारा लिया गया है।

मूल चित्र : biography.com 

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