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शादी के बाद तुम अपने घर वालों को भूल जाओ तो अच्छा रहेगा…

क्यूँ हम अपनी बेटियों को कहते हैं कि शादी के बाद तुम ससुराल को ही अपना घर मानना? क्यूँ हम उन्हें यूँ पराया कर देते हैं? 

क्यूँ हम अपनी बेटियों को कहते हैं कि शादी के बाद तुम ससुराल को ही अपना घर मानना? क्यूँ हम उन्हें यूँ पराया कर देते हैं? 

सदियों से हमने सुनना है कि शादी के बाद लड़की पराये घर की हो जाती है। पराया शब्द इस्तेमाल करके तो हम ऐसे ही पुराने रिश्ते खतम कर देते हैं। पर क्या सच में शादी नए रिश्ते की शुरूवात से ज़्यादा पुराने रिश्तों का ख़ात्मा है? क्यूँ औरतों से एसी अपेक्षा की जाती है कि वह अपने माँ बाप के घर के सारे रिश्ते भुला के अपने ससुराल को ही सिर्फ़ अपना घर मानें? क्यों कहते हैं कि शादी के बाद तुम अपने घर वालों को भूल जाओ?

अपने पाठकों से हमने इसी विषय पर उनके विचार जानने के लिए उनसे सवाल किया: शादी एक नये रिश्ते की शुरुआत से ज्यादा, पुराने रिश्ते का खात्मा है?

माँ बाप अपनी बेटियों को ससुराल के हवाले कर उसका हाथ छोड़ देते हैं। कई बार हमने सुना है कि मायके के द्वारा हस्तशेप करना उनका ससुराल में ना टिक पाने का कारण है। इसी कारण लड़की के माता-पिता उसके शादी के बाद उसके जीवन में दख़ल नहीं देना चाहते, पर कभी-कभी यही एक चूक बन जाती है और उनकी बेटियाँ कष्ट झेलती हैं और वह अनजान रह जाते हैं।

यह प्रश्न करते ही कॉमेंट्स में कई पाठकों ने अपने विचार व्यक्त किए।

चारु वत्स का कहना है

“जीवन में हर चीज बैलेंस चाहती हैं। यह सच है मायके के अत्यधिक हस्तक्षेप से भी बहुत सारी दिक्कतें आ सकती हैं और बिल्कुल नहीं होने से भी। अत्यधिक हस्तक्षेप, ससुराल वालों का भी, अच्छे खासे पति पत्नी के बीच दरार उत्पन्न कर सकता है।”

गुंजन अग्रवाल दृढ़ शब्दों में अपने विचार लिखती हैं

“जी नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है, नए रिश्ते की शुरुआत करते हुए पुराने रिश्तों में भी सामंजस्य बैठाया जा सकता है, केवल जरूरत है तो सूझबूझ और समझदारी की, जहां यह सब चीजें गायब होती हैं वहीं कलह की स्थिति उत्पन्न होती है और वहीं पर लड़की को अपनी भावनाओं का दफ़न करना पड़ता है और अपने मायके वालों से सारे रिश्तों को खत्म करने पड़ते हैं इसलिए प्रत्येक रिश्ते में आपसी सामंजस्य और सूझबूझ का होना बहुत जरूरी है।”

संगीता यादव के शब्दों में

“शादी के बाद रिश्तों को खत्म करना बिल्कुल गलत है। विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच नहीं होता बल्कि ये दो परिवारों के बीच का सम्बन्ध होता है। बेहतर होगा दोनों तरफ रिश्ते बनाये जाएं।मायका लड़की का अभिन्न अंग होता है। जिसे लड़की नहीं छोड़ सकती और ससुराल उसका अपना घर। अगर लड़की ससुराल के रिश्तों को अपना समझ के निभा रही है तो लड़के का भी फ़र्ज़ बनता है कि वो अपनी पत्नी से जुड़े मायके के रिश्तों को निभाये। उसे ये एहसास दिलाये कि शादी से रिश्ते खत्म नहीं होते। लड़की को भी चाहिए कि अपनी हर ससुराल की बात को मायके से दूर रखे। इससे सम्बन्ध बिगड़ते नहीं।”

चित्रा शिरोअन का मानना है

“अगर लड़की समझदार होगी तो दोनों घरों का बैलेंस अच्छे से बना लेती है क्योंकि परिवार उसका मायका भी है और परिवार उसका ससुराल भी है। रही बात बैलेंस बनाने की तो दोनों तरफ से पेरेंट्स को ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि बेटा आपका ही है और आपकी बेटी, वह बहू भी हमारी है। जैसे दही जमने में टाइम लगता है ऐसे ही रिश्तो का बैलेंस बनाने में टाइम लगता है। कोई नादान उम्र में तो आजकल शादी होती नहीं है और जिन्हें घर बिगाड़ना होता है वे अपने मां-बाप से नहीं रुकते हैं ना वो अपने ससुराल वालों से रुकते हैं। सिर्फ बच्चों को अच्छे संस्कार दो, चाहे बेटा हो चाहे बेटी हो। ठहरे हुए पानी में ही जीव जंतु अच्छे से ही पलते हैं। ऐसे ही परिवारों का हाल है जहां ठहराव होगा उस घर की नींव मजबूत होगी।”

मीना सिंह के अनुसार

“जी नहीं शादी के साथ एक नहीं कई नए रिश्तों की शुरुवात होती है। लड़के के लिए भी और लड़की के लिए भी। लड़कियाँ अपने स्वभाववश या फिर अपने आदर्शों के अनुरूप लड़के के परिवार में ढल जाती हैं। वहीं ज्यादातर लड़के और ससुराल वालों को सिर्फ लड़की से ही मतलब होता है, उसके परिवार और उसके रिश्तों से नहीं। यहाँ पर लड़की को अखरता है और उसके बाद स्थिति बिगड़ सकती है। बहुत जरूरी है कि लड़की आत्मनिर्भर हों ताकि वक़्त और हालात के साथ सही फैसले ले सके। क्योंकि रिश्तों को संभालना सिर्फ अकेली लड़की के हाथ में नहीं होता।”

मोनिका सिंह सलाह के रूप में कहती हैं

“रिश्तों को संजोए रखना भी एक कला है। लड़की को भी समझना होगा कि वह हर छोटी बड़ी बात मायके वालों से न कहे अपनी समझ से सभी परेशानियों का हल निकाले इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि वह सब अत्याचार चुपचाप सहती रहे। मुझे लगता है हर लड़की को इस लायक खुद को ज़रूर बनाना चाहिए कि अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए किसी पर निभर्र न रहे।”

शाहरीना शदाफ एक वाक्य में अपने विचार लिखती हैं

“दोनों के दरमियां बैलेन्स होना ज़रूरी है शादी के बाद नए रिश्ते बनते है मगर इसका ये मतलब तो नही पुरानों को भूल जाये।”

भावना गौर पराशर साफ़ शब्दों में अपने विचार व्यक्त करती हैं

“नहीं बिलकुल नहीं। शादी दो परिवारों में रिश्तों का संगम है। अगर पुराना रिश्ता खतम हो जाएगे तो नए रिश्ते का भी कोई आधार ही नहीं बचेगा। और विश्वास के धरातल पर ही रिश्तों का संगम हो अच्छा है, खतम नहीं होना चाहिये।”

शादी यथार्थ रूप से तो दो लोगों का एक नए रिश्ते में बंधने के साथ साथ दो परिवारों का भी मिलन है। पर फिर क्यूँ हम अपनी बेटियों को कहते हैं कि शादी के बाद ससुराल ही उनका घर है? क्यूँ हम उन्हें पराया कर देते हैं? क्यों ऐसा कहते हैं कि शादी के बाद तुम अपने घर वालों को भूल जाओ?

शादी के बाद लड़के तो अपने घर से पराए नहीं कर दिए जाते, वैसे ही औरत भी अपने घर के साथ साथ अपने ससुराल दोनों घर की बेटी होती है। नए रिश्ते तो बनते ही हैं पर पुराने रिश्ते भी मन में अपनी जगह बनाए रखते हैं। औरत के रिश्ते बदल जाने की जगह हमें शादी को रिश्तों की वृद्धि के रूप में मानना चाहिए।

मूल चित्र: rvimages from Getty Images Signature via Canva Pro

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Mrigya Rai

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