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शबनम हैं आज़ाद भारत की पहली महिला जिसे फांसी की सज़ा सुनाई गई है

आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा सुनाई गई है। शबनम ने इस घटना को साल 2008 अप्रैल महीने में अंजाम दिया था।

आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा सुनाई गई है। शबनम ने इस घटना को साल 2008 अप्रैल महीने में अंजाम दिया था।

आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा सुनाई गई है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में 38 वर्षीय शबनम नामक महिला को फांसी के फंदे से लटकाया जाएगा। महिला के साथ उसके प्रेमी सलीम को भी फांसी की सजा मुकर्रर हुई है, मगर महिला को फांसी दी जा रही है इसलिए यह मुद्दा गरम बना हुआ है।

शबनम पर बेहद संगीन इल्ज़ाम हैं कि उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने घर वालों को मौत के घाट उतार दिया है, जिसमें उसकी मां, पिता, दो भाई, ननद, भतीजा और एक 10 माह का बच्चा भी शामिल है। गौरतलब यह है कि इन लोगों की हत्या करने वाली शबनम भी उस वक्त अपने प्रेमी के बच्चे की मां बनने वाली थी क्योंकि उसकी गर्भ में 7 माह का बच्चा पल रहा था।

मौत की प्रक्रिया बेहद भयानक है क्योंकि शबनम ने सभी को नशीला पदार्थ दूध में मिलाकर पिला दिया था, जिसके बाद सबकी गला रेंतकर हत्या कर दी गई। शबनम ने इस घटना को साल 2008 अप्रैल महीने में अंजाम दिया था, जिसकी सजा साल 2021 में हुई है।

कौन है यह शबनम?

शबनम को जानने वाले लोगों का कहना है कि शबनम को देखकर यह हरगिज नहीं कहा जा सकता था कि वह किसी की हत्या भी कर देगी। शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल विषय में डबल एमए किया था। साथ ही वह एक गांव के स्कूल में एक टीचर की नौकरी करती थी, जहां सब लोग उसे बहुत पसंद करते थे।

क्यों उठाया शबनम ने यह कदम?

शबनम का परिवार सैफी मुस्लिम समाज से आता था जबकि सलीम पठान समुदाय से था। सलीम छठी क्लास का ड्राउपाउट विद्यार्थी था और एक नियमित वेतन अर्थात डेली बेसिस पर काम करने वाला था। वहीं शबनम के परिवार वालों के पास 30 बीघा ज़मीन थी और शबनम के पिता एक शिक्षक। दोनों परिवारों की आर्थिक हालात एक जैसे नहीं थे। साथ ही जाति समान थी, जिस कारण दोनों परिवारों के बीच वाद विवाद की स्थिति थी। इसी बात की आग के कारण शबनम ने अपने प्रेमी के साथ ऐसा घृणित कदम उठा लिया।

फांसी को लेकर तैयारियों में क्या?

हालांकि साल 2010 में ही अमरोही उत्तर प्रदेश के सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुना दी थी, मगर याचिक दायर होने के कारण यह केस लंबा खींचता चला चूंकि आज़ादी के बाद पहली बार एक महिला को फांसी की सजा मुकर्रर हुई है। वहीं मथुरा के जिला कारागार में करीब 150 साल पहले फांसी घर बनाया गया था, लेकिन आज़ादी के बाद से अब तक देश में किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई है। यह उत्तर प्रदेश का इकलौता महिला फांसी घर है। हालांकि अभी फांसी की तारीख तय नहीं हुई है इसलिए तैयारियां चल रहीं हैं, जिसमें बक्सर ज़िले से रस्सी मंगवाई जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील सार्थक चतुर्वेदी का कहना है कि शबनम अब भी चाहे तो दुबारा याचिका दायर कर सकतीं हैं। हालांकि शबनम ने खुद अपना गुनाह कबूल किया है, तब ऐसा होने की गुंजाइश बहुत कम दिखती है। ऐसे में पहली महिला होंगी शबनम जिसे फांसी दी जाएगी।

शबनम का बच्चा कहां है?

शबनम के बच्चे को एक दंपति ने अपने पास रखा है, जो पहले शबनम के दोस्त हुआ करते थे। उनका मानना है कि यह करने से वह शबनम का अहसान चुका रहे हैं। इस्लाम में बच्चा गोद लेना मान्य नहीं है इसलिए वह बच्चे की देखभाल कर रहे हैं, मगर बिना कानूनी तौर पर उसके माता-पिता बने, जिसे फोस्टर पैरेंट्स कहा जाता है।

सूची में और कौन संभावित महिलाएं?

शबनम के बाद भी दो महिलाएं हैं, जिनका नाम फांसी के फंदे पर लटकने में दर्ज है। पहला सौतेली बहनें रेणुका शिंदे और सीमा गवैत। इन पर 13 बच्चों के अपहरण करने और 5 बच्चों की हत्या का इल्जाम है।

दूसरी नाम रामश्री का है, जिसके साल 1998 में ही फांसी की सजा सुनाई गई थी, मगर बच्चे के जन्म के बाद उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। हालांकि यहां एक बात समझ से परे है कि जब वह गर्भवती थी, तब उसे फांसी की सजा कैसे सुनाई गई?

प्रेम इतना क्रूर कैसे?

बहरहाल, शबनम ने जो किया वह वाकई गलत था क्योंकि प्रेम रूई के फाहे जितना नाज़ुक होता है और प्रेम में पड़कर लोग कोमल हो जाते हैं, प्रेम लोगों को हिम्मत देता है मगर प्रेम इतना क्रूर कैसे हो गया? प्रेम को लोगों ने ही क्रूर बनाने का काम किया है। उसे जाति व्यवस्था के तराजू में बैठकर उसे नीचा दिखाया है, उसे धन प्रतिष्ठा के नाम पर नीचा दिखाया गया है। इन्हीं सब चीज़ों का परिणाम है कि हमारे समाज में ऐसी घटनाएं घटित होती हैं।

रोज़ आती हैं ऐसी घटनाएं

हकीकत यह है कि ऐसी घटनाएं यदा कदा सुनने को मिल ही जाती हैं फिर भी यह प्रेमियों की जिम्मेदारी है कि वह अपने प्रेम के लिए कानूनी तौर से लड़ें ना कि स्वयं ही इंसाफ की कलम उठा लें। अगर प्रेम करने वाले ही नफरत और द्वेष फैलाएंगे, तब प्रेम का अस्तित्व ही मिट जाएगा। समाज की जाति व्यवस्था और धन सम्पदा की व्यवस्था को प्रेम से अलग करना होगा ताकि ऐसी घटनाएं घटित ना हो। प्रेम केवल समर्पण, धैर्य और एक दूसरे से प्यार करना सिखाता है इसलिए प्रेम को क्रूरता और सामाजिक भेदभाव के धुंधले चेहरे से बचाकर रखना चाहिए।

मूल चित्र : DNA

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