कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
सोचो क्या कर पाओगे बराबरी तुम, सुबह से शाम तक मेरे उन न खत्म होने वाले कामों की, मेरी उन छोटी-छोटी दम तोड़ती ख्वाइशों की...
सोचो क्या कर पाओगे बराबरी तुम, सुबह से शाम तक मेरे उन न खत्म होने वाले कामों की, मेरी उन छोटी-छोटी दम तोड़ती ख्वाइशों की…
हाँ मानती हूँ तुम कमाते हो मुझसे ज़्यादा, पर नहीं मानती इसे प्रमाणपत्र, होने का तुम्हारे श्रेष्ठ, तुम घर चलाते हो, सिर्फ इसलिए करते हो मेरी ख्वाइशों को कैद?
सोचो क्या कर पाओगे बराबरी तुम? सुबह से शाम तक मेरे उन न खत्म होने वाले कामों की, बिना तनख्वाह, बिना छुट्टी चिंता मे घुली उन रातों की, मेरी उन छोटी-छोटी दम तोड़ती ख्वाइशों की, मेरे उन अनगिनत सवालों की, जो पूछा करती हूँ खुद से ही। क्या दें पाओगे जवाब?
घर मैं संवारू, बच्चें मैं पालूँ, और श्रेष्ठ तुम… जाओ नहीं मानती!
मूल चित्र : Krishna Studio via Unsplash
Teacher by profession and a writer by hobby. read more...
Please enter your email address