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अजन्मी बेटी का इंतजार…

हाय रे यह समाज, जो बेटे को ही वंशबेल बढ़ाने वाला समझता है और बेटी को बोझ मानता है।

हाय रे यह समाज, जो बेटे को ही वंशबेल बढ़ाने वाला समझता है और बेटी को बोझ मानता है।

कोख में पल रही कन्या को,

इंतजार है बाहर आने का।

इस दुनिया को देखने का।

अपनी माँ की गोद में,

हँसनेखिलखिलाने का।


पर
हाय रे!यह समाज,

जो बेटे को ही वंशबेल,

बढ़ाने वाला समझता है।

बेटी को बोझ मानता है।

स्वयं उसके पिता ने ही,

उस नन्ही सी कली को,

दुनिया में आने ना दिया।

कोख में ही उसे मार दिया।

माँ विलाप करती रही।

तिलतिल कर मरती रही।

पर माँबेटी के मिलन का

इंतज़ार,अधूरा ही रह गया।

अधूरा ही रह गया

मूल चित्र : Aravind Kumar Via Unsplash

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